Saturday, November 26, 2011

गजल

असली धर्म
सबको हो स्वीकार धर्म जो आज वही अपनाओ
ऐसा धर्म बनाओ मिल जुल ऐसा धर्म बनाओ

पंडित करता  अपनी पूजा पढे नमाज नमाज़ी
सभी उसी मालिक के वंदे क्या पंडित क्या काजी
सबके दाता से शुभ आशिष दोनों ही पाजाओ

नियम धरम सब मानव निर्मित उसके लिए बने हैं
अपने अपने अलग नियम ले क्यों इस तरह तने हैं
समझा बुझा सभी रूठों को एक साथ लेआओ

पूजा पद्धति अलग अलग है  रहती है रहने दो
अल्ला राम मसीह कहे कोई कहता है कहने दो
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में सांझी ज्योति जलाओ

होली तीज दिवाली जिसकी उसे मना लेने दो
ईद मुहर्रम  क्रिसमसड़े यदि आता है आने दो
अपनी खीर खिलाकर उसको उसकी सिमई खाओ