1. बोझिल पल
सुबह
के पांच बजे जब मोबाईल की घंटी बजी तो सुनकर आश्चर्य और आशंका
की मिश्रित अनुभूति हुई थी | सुबह के समय इतने
तडके किसी का फोन आना ही अपने आप में एक आकस्मिकता और संदेह पैदा करने वाली घटना
होती है | सामान्यतः ऐसी घंटी तभी बजती है जब या तो किसी मित्र या सम्बन्धी के साथ
कही सुबह सुबह जाने का प्रोग्राम हो या
किसी से जल्दी जगाने के लिए फोन करके याद दिलाने का आग्रह किया गया हो | अन्य परिस्थिति
में तो किसी आकस्मिकता का ही संकेत मिलता है | और हुआ भी ऐसा ही .....फोन मेरठ से था जिसके द्वारा बेटे ने तुरंत आने के लिए
कहा था | जो परिस्थिति बताई गयी थी उस प्रकार की परिस्थिति में हडबडाहट सी पैदा हो
जाना स्वाभाविक होता है और व्यक्ति , क्या ले जाना है क्या नहीं लेजाना है , यह
सोचने में भी कठिनाई अनुभव करने लगता है | हमारे साथ भी यही हुआ और उस समय जो कुछ सूझा उसे ही एक ब्रीफकेस में डालकर अपनी गाड़ी निकालकर चलने लगे | सफर लंबा था तथा बिना वाहन चालक के पहुँच पाना भी कठिन लग रहा था तभी समधी जी का फोन आया कि यदि अभी नहीं चले हों तो अलीगढ
होते हुए जाने का प्रोग्राम बना लें जिससे
अपनी गाड़ी वहीं छोड़कर वहां से जारहे लोगों के साथ उनकी गाडी से ही उसी जा
सकें क्योंकि वहां से जो लोग जारहे थे उनके पास बड़ी गाडी थी तथा वहां चालक भी था
अतः बिना अधिक सोच विचार किये ही समधी जी के परामर्श के अनुरूप ही
अलीगढ की ओर चल दिए थे और अपनी गाडी अलीगढ छोड़कर समधी जी
के कहे अनुसार उनकी गाडी से ही मेरठ के लिए चल दिए थे |
बुलंदशहर भी नहीं पहुँच पाए थे कि डाक्टर द्वारा आपरेशन
से डिलीवरी कराये जाने की अपरिहार्यता की सूचना मिलगई थी | थोड़ी देर बाद
रास्ते में ही पता चल गया था कि प्रसव के निर्धारित समय के
पूर्व ही आपरेशन से लड़का पैदा हुआ है जिसे तत्काल बच्चों के हास्पिटल में लेजाया
गया है | समाचार तात्कालिकरूप से राहत पहुंचानेवाला था , परन्तु मेरठ शीघ्रातिशीघ्र पहुँच जाने की तत्परता थी | रास्ते
में एक ढाबे पर रुककर चाय पीने के बाद पुनः चल दिए थे और लगभग ग्यारह बजे हास्पिटल पहुँच गए थे | बच्चे की माँ
की सकुशल होने की स्थिति जानने के पश्चात नवजात शिशु की हालत जानने हेतु बच्चों
के हास्पिटल की ओर दौड लिए थे क्योंकि बच्चे को एम्बुलेंस से दूसरे हास्पिटल
लेजाया गया था | शिशु को आई सी यू में रखा गया था जिसके आक्सीजन लगी थी तथा ह्रदय
की धडकन , ब्लड प्रेसर आदि नापने के लिए यंत्र लगे हुए थे | बच्चा रो नहीं रहा था
परन्तु हाथ पैर हिलाने से पता चल रहा था कि उसके शरीर में हलचल है और अपनी साँस भी ले रहा है | यद्यपि साँस
सामान्य से अधिक जल्दी जल्दी आ जा रही थी जो चिंताजनक थी | आई सी यू में लगभग दस
बारह शिशु भर्ती थे जिनके परिवारीजन भी वहां उपस्थित थे | कुल मिलाकर वातावरण बड़ा
तनाव भरा था | लोग बदहवास से हास्पिटल में आते और अपने अपने मरीज के बारे में जानने के बाद
उसकी स्थिति के अनुरूप प्रतिक्रिया करते हुए प्रसन्न या दुखी हो रहे थे | जिनके
बच्चे पहले से भर्ती थे और उनकी हालत सुधर रही थी वे कुछ तनावमुक्त और प्रसन्न
मुद्रा में दिख रहे थे पर जिनके शिशु अभी अभी भर्ती हुए थे या जिनकी हालत सुधर नहीं
पाई थी वे तनावग्रस्त व दुखी लग रहे थे |
दूसरे
दिन लगभग ग्यारह बजे पुनः हास्पिटल पहुँचने पर पता चला कि हमारे बच्चे को आई सी यू
में दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया है तथा अब उसे वेंटिलेटर पर रखा गया है अर्थात अब वह
अपनी खुद कि साँस नहीं ले पारहा है | यह
नयी स्थिति हमारे लिए अधिक चिंता का विषय थी | वेंटीलेटर पर ले लेने का सीधा सा
मतलब यह था कि उसकी हालत सुधारने के बजाय और बिगड गयी है | अब तक कई रिश्तेदार और
सम्बन्धियों को लड़के का जन्म होने की सूचना किसी माध्यम से मिल चुकी थी और उनके
बधाई के फोन आने लगे थे , पर परिस्थिति बधाई स्वीकार करने लायक न थी और न बधाई सुनने
में अच्छी लग रही थी परन्तु एकदम अस्वीकार करना भी उचित नहीं लग रहा था और न
ऐसा करने के लिए अंतर्मन तैयार हो रहा था | इसी बीच दोपहर दो बजे मुख्य डाक्टर ने
ताजा आई एक्स रे रिपोर्ट के आधार पर बताया कि बच्चे के फेंफडे पूर्णरूप से विकसित नहीं हुए हैं और एक्स रे में पूरी तरह सफ़ेद आये हैं
जिसके इलाज के लिए दवाइयां दी हैं उनका
प्रभाव होने पर ही स्थिति सुधरेगी | पहले से भर्ती बच्चों के अभिभावकों द्वारा यह
बताये जाने पर कि इस डाक्टर की ख्याति
बहुत अच्छी है और इसके यहाँ आने का मतलब है कि बच्चा ठीक होकर ही निकलेगा, बड़ी
राहत मिली थी |
अस्पतालों का माहौल अलग ही
होता है | वहां आकर लगता है कि जैसे पूरी
दुनियां ही परेशान और बीमार है | दिनमें कई बार एम्बुलेंस के सायरन की आवाज तेजी से सुनाई देती और परेशान
हैरान लोग उसमें से निकलकर ऊपर की मंजिल पर स्थित आकस्मिक वार्ड में आते तुरंत नये मरीज को भर्ती किया जाता और मरीजों
की संख्या में एक और वृद्धि हो जाती | थोड़ी देर में ही उस मरीज से सम्बंधित अन्य
रिश्तेदारों और परिचितों के आने का सिलसिला शुरू हो जाता | लोग बदहवास से घबराए
हुए आते और कुछ घंटों में ही उसी परिवेश का हिस्सा बन जाते | यह क्रम पूरे दिन देर
रात तक चलता रहता | किसी दिन आईसीयू के
सभी स्टैंड भर जाते और कभी कुछ स्थान खाली होजाते | बीमार और नवजात शिशुओं का आना
, ठीक होकर डिस्चार्ज होजाना अथवा जनरल वार्ड में स्थानांतरित होजाना, रोजाना की
सामान्य घटना थी | सुबह नौ बजे व शाम को रात नौ बजे मुख्य चिकित्सक की विजिट होती थी जिसके बाद आई सी यु में भर्ती सभी
मरीजों के विषय में उनके सम्बन्धियों को ब्रीफ किया जाता था |जिन मरीजों की हालत
में सुधार हो जाता था उनके सम्बन्धियों के चेहरों पर ख़ुशी झलकने लगाती थी परन्तु
जिनको कोई सकारात्मक सुचना नहीं मिलती थी वे और गंभीर हो जाते थे | वैसे एक डाक्टर व एक दो सहायक हर समय आईसीयू में देखभाल करते रहते थे
तथा दवा , इंजेक्सन आदि देते रहते थे |
कुल मिलाकर सरकारी अस्पतालों की तुलना में देखरेख बहुत अच्छी थी |
महिलायें आदमियों से
अधिक संवेदनशील होती हैं और यदि महिला बच्चे की दादी हो तो उसके दुःख का आप अनुमान
नहीं लगा सकते | बच्चे की दादी रात में बच्चे की माँ अर्थात अपनी नवप्रसूता
पुत्रबधू के पास दूसरे अस्पतालमें रहती और सुबह होते ही बच्चों के हास्पिटल में
आईसीयू के बाहर आकार बैठ जाती | उन्हें हाइपर टेंसन की भी शिकायत रहती है अतः यह
डर लगा रहता था कि कहीं उनकी हालत न बिगड
जाय | घर से भोजन आता तो वह खाने को तैयार ही नहीं होती थीं | हम पुरुष लोग तो
दुखी मन से ही सही कुछ खा लेते थे पर उनको
लाख समझाने के बाबजूद वे खाना नहीं खाती थीं | कई बार मै उनको हास्पिटल से बाहर
निकलकर आसपास पैदल घुमाने के बहाने ले जाता और आग्रह करके मौसमी का एक गिलास जूस पिलवा देता |
रात में हास्पिटल में
एक या दो लोग देखभाल के लिए छोड़कर शेष लोग घर चले जाते थे और अगले दिन तडके ही
आजाते थे | दूसरे दिन रात नौ बजे बताया गया कि शाम को कराये गए एक्स रे में फेफड़ों में कुछ सुधार के संकेत हैं और एक्स रे में अब हल्का
कालापन आया है परन्तु वेंटीलेटर का न हटना चिंता का विषय है | डाक्टर की इस रिपोर्ट को क्या समझा जाय यह समझ में नहीं
आरहा था परन्तु आशावादी मन इसे बच्चे की हालत में
सुधार के रूप में लेने के लिए
प्रेरित कर रहा था | अगले दिन सुबह बताया गया कि फेफड़ों में तो काफी सुधर है परन्तु यूरिन कम आने
के कारण किडनी के ठीक से कार्य न करने की समस्या गभीर दिखायी दे रही है | उसी दिन दोपहर मुख्य
चिकित्सक ने हमें अलग से बुलाकर बच्चे की हालत के बारे में बताया और फेफड़ों को एक्टिव करने के लिए इंजेक्सन से सर्फैक्टेंट
देने की
बात बताई जो अंतिम विकल्प के रूप में मजबूरी में दिया जाना था | इसी बीच दो बार ब्लड बैंक से ब्लड भी मंगाया गया | अगले दिन सर्फेक्टेंट
की एक और खुराक दी गयी पर हालत सुधर नहीं रही थी
| इसी प्रकार दो तीन दिन गुजर गए पर न तो वेंटीलेटर हटा और न अन्य कोई
सुधार होता नजर आया | धीरे धीरे स्थिति और अधिक गंभीर होती गयी और हम लोगों का
तनाव बढ़ता गया | उसी हास्पिटल में और जितने भी बच्चे भर्ती थे सभी की हालत में
सुधार होरहां था तथा उन्हें एक एक करके आई
सी यू से निकाला जा रहा था , परन्तु हम अकेले ऐसे लोग थे जिन्हें कोई अच्छी खबर सुनाने
को नहीं मिल रही थी |
बच्चे के
हास्पिटल में एडमिट होने के दूसर दिन मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार के बेटे का फोन आया
जो बच्चे के संभवतः समय से पहले पैदा होने
की खबर सुनकर बधाई देते हुए आगे की हालत जानना चाह रहा था | मेरे द्वारा बच्चे के
हास्पिटल में एडमिट होने की सुचना पर तथा आईसीयू में वेंटिलेटर पर होने की खबर पर अधिक कुछ नहीं बोला और मम्मी
पापा को बता देने की कहकर फोन काट दिया | इसके बाद हमलोग हास्पिटल में बच्चे की
देखभाल में व्यस्त होगये पर मेरे उस नजदीकी रिश्तेदार का कोई फोन नहीं आया | पांच
दिन बाद जब बच्चे के न ठीक होपाने और जीवित न रहने की खबर किन्ही माध्यम से उसके
पास पहुंची तो फोन की घंटी बजने लगी | फोन आने के कुछ समय पूर्व ही मैंने अपनी पत्नी
को बताया था कि देखना अब अमुक रिश्तेदार
और उसकी पत्नी का फोन आने ही वाला होगा और हुआ भी वही | क्योंकि अब उनके फोन करने
लायक खबर बन चुकी थी ...... पहले तो बात
करने पर हास्पिटल आने की स्थिति आसकती थी
........ वे अपना काम छोड़कर कैसे आते ........ पर अब तो फोन करके संवेदना व्यक्त
करना लाजमी हो गया था | हमने गुस्से की बजह से फोन नहीं उठाया तो वे रात में ही
कार से ढाई सौ किलो मीटर की यात्रा करके वहीं पहुँच गए ....... संवेदना व्यक्त
करने का अवसर भला कैसे जाने देते |.........
नवजात शिशु का
मामा बच्चे का एक और बहुत करीबी रिश्तेदार
हमारे साथ ही देखभाल के लिए आया था जिसके साथ उसकी पत्नी भी थी | हम जिस दिन आये
थे तो सीधे उस हास्पिटल में पहुंचे थे जहां नवप्रसूता भर्ती थी | बच्चे के मामा मामी वहीं रह गए थे और
हम लोग बच्चे के विषय में जानने हेतु तुरंत बच्चों के हास्पिटल चले गये थे | बच्चे का मामा प्रकट तौर पर पूरी तरह हमारे
संकट की घड़ी का सहायक बन कर गया था परन्तु न तो वह बच्चे को देखने उस हास्पिटल में गया था जहाँ वह भर्ती था और न किसी दुःख या शोक के चिन्ह उसके चेहरे पर
खोजने पर भी नहीं दिखाई पड़ते थे | वह पूरे दिन घर पर ही रहता था | इस प्रकार वह
शान से घर पर ही रहकर हमारी “ सहायता “ कर रहा था | बच्चों के हास्पिटल में किसी काम से उसे यदि बुलाया गया या उसे आना पड़ा तो बच्चे
को देखने के लिए या उसकी हालत जानने के लिए , आईसीयू तक , जो कि हास्पिटल में
तीसरी मंजिल पर था , जाने लायक सवेदना उसमें नहीं थी | हद तो तब हुयी जब उसे घर से
फोन करके गाड़ी से तुरंत हास्पिटल आने के
लिए कहा गया तो वह आराम से काफी विलम्ब से आया और साथ में सजी धजी पत्नी और अपने
बेटे को मौल में घुमाने का प्रोग्राम बना
कर आया |बच्चा कई दिन से वेंटीलेटर पर था और हम सब लोग उसकी गंभीर हालत के कारण काफी दुखी व परेशान थे परन्तु बच्चे के उस सगे मामा ने हास्पिटल
आने के बाबजूद बच्चे के पास जाकर उसे देखना भी आवश्यक नहीं समझा | उसकी पत्नी भी
कार में ही बैठी रही वह भी बच्चे को देखने
निकलकर नहीं गयी | उनकी यह असंवेदनशीलता देखकर बहुत क्रोध व क्षोभ उत्पन्न हो रहा
था तथा उन्हें डांटकर भगा देने कि इच्छा हो रही थी परन्तु समय की
नजाकत भांपकर चुप रहना ही उचित समझा | .... हद तो तब हो गयी जब बच्चे के बहुत अधिक
गंभीर होने की हालत होने वाले दिन भी वे
सज्जन और उनकी पत्नी मॉल में जाकर खरीदारी कर रहे थे | कोई व्यक्ति इतना
असंवेदनशील भी हो सकता है कि अपने नजदीकी
रिश्तेदार , चाहे वह नवजात शिशु ही क्यों न हो , की गंभीर हालत की उपेक्षा कर मॉल
में खरीदारी कर सकता है ....... पहली बार जाना |
अब तक हास्पिटल में भर्ती अन्य बच्चों के तीमारदारों से जान पहिचान हो चुकी थी और वे भी हमारे बच्चे की
स्थिति में सुधार होने न होने के प्रति संवेदनशीलता दिखाने लगे थे | हम लोगों को
आशा बंधाते थे कि हमारा बच्चा भी शीघ्र ही ठीक हो जायेगा | बच्चे का कौन क्या लगता
है इसकी जानकारी भी उन्होंने प्राप्त करली थी तथा मानवता के नाते हमें बुरा न लगे
यह सोचकर अपने बच्चों के ठीक होजाने की खुशी भी अधिक खुलकर नहीं प्रकट करते थे
......... बल्कि जब उन्हें बच्चे के और अधिक सीरियस होने की जानकारी हुयी तो स्थिति
को भापकर अधिक पूंछ ताछ करना भी बंद कर
दिया था |एक गाड़ी और ड्राइवर हास्पिटल में
ही रख रखा था जिससे किसी दवाई आदि की आवश्यकता पड़ने पर बिना विलब के उसे लाया जा
सके | दो तीन लोग हर समय आईसीयू के बाहर हास्पिटल में रहते थे और किसी दवाई के
मगाए जाने पर या हास्पिटल के भूतल में स्थित पैथोलोजी से जांच करने हेतु ब्लड
आदि का सेम्पल लेजाने की कहने पर तुरंत
जाकर जांच आदि करवाते थे | एक पल के लिए भी ऐसा नहीं होता था की अटेंड करने के लिए
वहां कोई न रहे हालत में फिरभी सुधार न
होने पर अब अपने अपने इष्टदेवों को याद करना और उनसे मन्नत माँगना शुरू कर दिया था
पर कोई उपाय कारगर होता नहीं दिख रहा था | .....
अब हम लोग तीमारादारी के प्रति उत्साह की कमी अनुभव करने लगे थे और
जैसे कोई व्यक्ति लड़ाई हार जाने पर उसके बादके परिणामों पर विचार करने लगता है उसी प्रकार उन
परिस्थितिओं की कल्पना करने लगे थे जो आगे झेलनी पड़ सकती थीं | मेरा मत था कि अब प्रसूता को हास्पिटल लाकर बच्चे को दिखाने में कोई लाभ नहीं है क्योंकि कई दिनों तक
हास्पिटल में भर्ती रहने के बाद उसी दिन छुट्टी मिली थी ऐसी हालत में उलटे किसी विषम स्थिति का सामना करना पड़ सकता है | परन्तु मेरी इस बात से अन्य लोग सहमत
नहीं थे और प्रसूता को हास्पिटल लाकर एक बार दिखा देना ही उचित मान रहे थे | एस प्रकार की
परिस्थितियों में अन्य लोगों से सहमत न
होते हुए भी उनकी बात को अस्वीकार कर पाना उचित नहीं लगता है अतः अंत में बहुमत की बात मानकर ऐसा ही किया गया |
मुख्य चिकित्सक द्वारा हमें अपने
कक्ष में बुलाकर बताया गया कि मरीज की हालत अब क्रिटीकल होचुकी है और उसके कई अंग
खराब हो चुके हैं ...... कि अब वह नो रिटर्न की स्थिति में पहुँच चुका है .....|
हमारे द्वारा अन्य विकल्पों पर विचार करने व अन्यत्र किसी बड़े अस्पताल में लेजाने
की बात कहने पर चिकित्सक का कहना था कि ऐसी परिस्थति होती तो वह खुद व्यवस्था करा
देते | शायद उनको सही स्तिथि का पता था परन्तु खुलकर कुछ बता नहीं रहे थे | हमारे
द्वारा चांस लेने के उद्देश्य से अपोलो आदि बड़े और मंहगे हास्पिटल में लेजाने की
बात कहने पर बड़े डाक्टर साहब ने खा था कि यदि एक प्रतिशत अब बच्चा जीवित भी बाख जाय
तो उसका कौन सा अंग काम करेगा और कौनसा नहीं यह ख पाना संभव नहीं है | यह भी हो
सकता है की उसे पूरी जिंदगी वेंटीलेटर पर
ही बितानी पड़े | बच्चे के पिता के मन में कहीं अन्य जगह लेजाने की इच्छा दिखाई दे
रही थी परन्तु संकोचवश स्पष्ट नहीं कह पा रहा था | अन्य कई लोग भी उसका समर्थन सा
करते दिख रहे थे | बच्चे की दादी कितने भी पैसे खर्च कर देने के लिए तैयार थी और
मुझे इस तरह का संकेत देकर सलाह दे रही थी | इधर चिकित्सक न तो वेंटी लेटर हटा रहे थे और न खुलकर
सही हालत बता रहे थे | ..... मेरे यह पूंछने पर कि क्या बच्चा
अभी जीवित है तो वे उसका गोलमोल जबाब दे
रहे थे | बड़ी विषम स्थिति थी ..... ठीक होने का कोई चांस नहीं बचा था पर ......|
हम दुविधा में थे कि जीवित रहते यहाँ से कैसे और कहाँ लेजाएँ .......| आईसीयू में
अंदर जाकर देखने की ड्यूटी पर उपस्थित चिकित्सक अनुमति नहीं दे रहे थे ....| बाहर से ग्लास से
झांकने पर बच्चे के शरीर में किसी प्रकार की कोई हलचल या मूवमेंट दिखाई नहीं दे
रही थी |.........
कई घंटे इसी दुविधा की
स्थिति में गुजर चुके थे ...... समाचारपत्रों में पढ़ी बातें कि अपने धन लाभ के उद्देश्य से डाक्टर कई दिनों तक
मरे हुए व्यक्तियों को भी वेंटिलेटर पर रखे रहते हैं , दिमाग में कौध रही थीं
|..... डाक्टर लिखित सहमति लेकर ही वेंटिलेटर हटाने को तैयार थे | ऐसे में क्या
करें ..... बच्चे का मोह यह करने देने से रोक रहा था तथा दिल सोच रहा था कि कहीं कोई चमत्कार होजाए और ...... इसी दुविधा में सुबह से शाम होने को आ गई
|..... अब हास्पिटल के माहौल को झेल पाना असह्य होरहा था ..... मरीज के ठीक होजाने की आशा में तो आदमी महीनों तक हास्पिटल में रह सकता
है परन्तु जब नो रिटर्न की स्थिति आचुकी थी तो समय बहुत भारी पड़ने लगता है ..........|
अपने परिवार में भी कई डाक्टरों के होते हुए भी इस विषम स्थिति में फंसे थे की कुछ
निर्णय नहीं ले पा रहे थे क्योंकि वे भी वहां तुरंत नहीं आ सकते थे | मैंने पुनः बड़े डाक्टर के पास जाकर
अपना परिचय दिया तथा अपने परिवार में भी कई डाक्टर होने की बात बताई | इस पर बड़े
डाक्टर ने फोन पर हमारे डाक्टर साहब से बात करने और पूरी स्तिथि उन्हें समझा देने
की सहमती दी .... आखिर अपने डाक्टर साहब से फोन पर बात कराई गयी .. डाक्टर अपने
पेशेगत अनुभव और विषम परिस्थितिओं में भी
संयत रह पाने की शक्ति के कारण वास्तविक
स्थिति को अधिक स्पष्ट रूप से कह पाने की हालत में होते हैं अतः जब उन्होंने सचाई
बताई तो यह समझने में देर नहीं लगी कि हास्पिटल के चिकित्सक बिना औपचारिकता पूरी
किये यानी हमसे ही यह लिखवाये बिना कि
वेंटिलेटर हटाने से हम न केवल सहमत हैं बल्कि हटाने की लिखित मांग भी कर रहे हैं ,
इसी तरह कई दिनों तक उसे लगाए रहेंगे और दिखाने के लिए टेस्ट आदि भी कराते रहेंगे तथा दवा भी देते रहेंगे |...... बुजुर्ग होने के नाते मैंने
ही पहल करते हुए इसका हल निकाला तथा लिखित
अनुमति देकर वेंटीलेटर हटवाया |
अनजान
शहर और अपनी गाड़ी में बच्चे की निर्जीव बौडी को लिए अंतिम आश्रय यानी मोक्षधाम को
खोजते कुल सात व्यक्ति गाड़ी में थे जिसमें दो महिलाएं थीं | ....... संकट की घडी में मनुष्य
विवेकशून्य होजाता है यह सुना तो था पर आज
उसका प्रत्यक्ष सामना हो रहा था | उसी शहर में कई ऐसे व्यक्ति थे जो हमारे काफी
करीबी थे और दसियों सालों से उसी शहर में रह रहे थे पर व्यस्तता और शोकपूर्ण
मनस्थिति के कारण उनको इस घटना के विषय में सूचित ही नहीं कर पाए थे और अब इस समय
उनको बताने में झिझक हो रही थी |.....आखिर हिम्मत
करके किसी से पूंछने पर मोक्षधाम पडौस में ही होने की जानकारी मिली |
...... और उस अंतिम स्थान पर सामने आयीं नग्न सच्चाइयों का सामना करते हुए किसी
तरह अंतिम कार्य भी पूर्ण किया |.....उस समय स्थान और परिस्थिति के अनुसार विचार
पूरी तरह विरक्तता की ओर लेजाने वाले थे ..... लग रहा था कि सब बकवास हैं जिंदगी
मात्र एक भुलावा है ...... हम सब लोग इसी अंतिम यात्रा की राह में हैं और धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ रहे हैं
फिर भी ........|
वैसे तो जो होना होता है वह
होता ही है और हम सब भाग्यवादी होने के नाते उसे स्वीकार भी करते हैं परन्तु इस
घटना के पीछे जो प्रकट कारण था उससे बच्चे की दादी बेहद दुखी और क्षुब्ध थी | जैसा
कि सामान्यतः देखा जाता है दादी को पोते की चाहना अपनी पुत्रबधू से भी कुछ अधिक
होती है और जब उसे बहु के गर्भवती होने की खबर मिलती है तो वह देखभाल में कोई कमी
रह जाने देना नहीं चाहती | पुत्रबधू अन्य शहर में बेटे के साथ रहती थी इसलिए दादी
की दिली इच्छा थी कि प्रसवपूर्व देखभाल
सर्वोत्तम हो और उसके लिए वह पुत्रबधू के
पास जाकर रहे परंतु बहु सास को अपने पास आने का अवसर ही नहीं दे रही थी | अपनी तरफ से तो बहु
कभी फोन करके अपनी कुशलता कभी भी नहीं बताती थी इसलिए सास ने बहु के स्वास्थ्य के विषय में नियमितरुप से
पूंछताछ करने के साथ साथ उससे यह भी
अपेक्षा की थी कि वह अपना वजन अधिक न बढ़ने दे तथा खान पान पर नियंत्रण रखे परन्तु
बहु ने न केवल सास की बातों की उपेक्षा की
थी बल्कि उनको अपने पास आने भी नहीं दिया था और
पूंछे जाने पर हर बार सबकुछ सामान्य होना बताया था | यह तो हमारे जाने पर
और लेडी डाक्टर से बात करने पर पता चला था कि बहु को एक दो महीने पूर्व भी
हास्पिटल में भर्ती होना पड़ा था और उसने डाक्टर के निर्देशों की भी घोर अवहेलना की
थी | तबियत ख़राब होजाने वाली बात बहु ने अपने मायके बालों को तो बताई थी परन्तु
अपनी सास को उसका संकेत भी नहीं दिया था | आजकल बहुओं के अपने मायके वालों के
प्रति अतिरिक्त झुकाव व ससुराल वालों अर्थात अपने पति के माँ –बाप के प्रति उपेक्षा
का भाव कुछ अधिक ही बढ़ता जा रहा है | आपरेशन से प्रसव के बाद बच्चे के गंभीर
स्तिथि में आईसीयू में होने के बाबजूद बहू मोबाइल पर लगातार बात हँस हँस कर बात
किये जारही थी तथा बधाईयाँ स्वीकार कर रही थी जबकि बच्चे की स्थिति ठीक न होने की
जान कारी उसे थी उसका यह आचरण उसके लापरवाह होने व अगंभीर होने का प्रमाण था | इस प्रकार बहु का जो व्यवहार रहा था वह
दुखी व क्रोधित करने वाला था तथा बच्चे की गंभीर हालत के लिए काफी हद तक जिम्मेदार
था | एक भरे पूरे परिवार की बेटी होने के बाबजूद उसका ऐसा आचरण अचंभित करने वाला
था |
उसी शहर में अपने लोकल निवास पर लौटकर
पहुचते न पहुँचते परिचितों और रिश्तेदारों के फोन पर फोन आने शुरू हो गए थे
....... कोई हमारे भाग्य को हीन बता रहा था तो कोई उचित चिकिसा न दे पाने की बात
कह रहा था | कोई किसी बड़े हॉस्पिटल जैसे अपोलो या फोर्टिस में दिल्ली न लेजाने के
लिए कोस रहा था ....... न जाने कैसे बच्चे के जीवित न रहने की खबर पूरे रिश्तेदारों
और परिचितों में इतनी शीघ्र पहुँच चुकी थी
और कोई भी संवेदना व्यक्त करने के इस मौके पर पीछे नहीं रहना चाहता था | जो लोग पिछले एक
सप्ताह में यह खबर नहीं जान पाए थे कि नवजात शिशु गंभीर हालत में हास्पिटल में
भर्ती है या जिनके पास एक फोन करके बच्चे
की राजी खुशी पूछने तक का समय नहीं था वे
सभी अब एकदम सक्रिय हो गए थे और सही
स्तिथि जानना चाह रहे थे | कई रिश्तेदार तुरंत वहां आने को आतुर थे | किसी तरह
हिम्मत करके उनको न आने के लिए कहना पड़ा क्योकि पहले से ही मानसिक रूप से इतने
परेशान थे कि आने वालों की बकवास को झेलने
की शक्ति नहीं बची थी .......आखिर परेशान
होकर अपने मोबाईल बंद करलेने को बाध्य होना पड़ा |
पत्नी को वहीं छोड़कर दो तीन
दिन बाद मै अपने मूल निवास लौटकर आया तो
पत्नी ने पूरी हिदायत दी थी कि अनावश्यक
रूप से किसी कुछ मत बताना क्योंकि लोगों के तरह तरह के प्रश्न और उनके विश्लेषण को
झेलने की मनस्थिति नहीं थीं |...........मैं अकेला घर पर था कि
अपने एक पडौसी अचानक घर पर आगये ......उन्हें इस घटना के बारे
में कहीं से कुछ पता चल गया था.| इधर उधर की बात होती रही पर मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया | वे
सज्जन तरह तरह के प्रश्न करके खबर जानना चाह
रहे थे परन्तु मैं जान बूझकर बात
को टाल रहा था ....उसी समय मेरे एक अन्य
मित्र आगये जिनको पूरी घटना की पहले से जानकारी थी और उस घटना के विषय में उसी उपस्थिति व्यक्ति के
सामने बातचीत शुरू करदी ...... अब पूरी बात बताना मजबूरी होगयी थी ....सबंध कुछ ऐसे थे कि उनसे अपनी पत्नी या अन्य
किसी व्यक्ति को न बताने के लिए भी नहीं कहा जा सकता था | आखिर वही हुआ जि--सकी
आशंका थी ......| थोड़ी देर बाद ही पडोसी
और परिचितों का आगमन शुरू होगया | जितने व्यक्ति उतनी बातें | कोई पहले से
ठीक से देखभाल न करने का निष्कर्ष निकाल रहा था तो कोईं प्रसूता को अकेले दूसरे
शहर में अकेले रहने देने के लिए कोस रहा
था | लोग विचित्र विचित्र उदहारण और घटनाओं का जिक्र करते हुए हमारी गलती से हमें
अवगत करा रहे थे | हाँ एक बात और .... कोई भी यह बताने और पता लगाने में गलती नहीं
कर रहा था कि बहू का पिछला बच्चा भी आपरेशन से हुआ था और यह भी आपरेशन से ही हुआ
था .... मुझसे कहलवाकर इसकी पुष्टि करलेना चाहते थे और यह भी याद दिला देना चाहते
थे कि अब आगे उसका क्या मतलब है ....... | पहला बच्चा भी आपरेशन से होने की
बात मुझे याद नहीं थी परन्तु उनलोगों
को एकदम स्पष्ट याद था और जैसे यह उनका फर्ज होगया हो कि लगातार दो बच्चे आपरेशन से होने का क्या मतलब
था वे इसकी गंभीरता और भविष्य के परिणामों
को न केवल मुझे बता दें बल्कि मुझे याद भी
दिला दें .....कहीं ऐसा न हो कि उसकी
गम्भीरता से अनजान रहकर उसके दुष्परिणाम से होने वाले संभावित तनाव से मै बचा रहूँ | एक सज्जन ने तो हद ही करदी जब उसने उदाहरण देते हुए यह याद दिलाया कि जो ज्यादा दंद वंद करते हैं उनके
साथ ऐसा ही होता है कि संतान के लिए तरस
जाते हैं ...... यद्यपि ऐसी कोई परिस्थिति
नहीं थी क्योंकि न तो बहुत अधिक सपत्ति अर्जित
कर लेने का मामला था और न उसके उपभोग करने
वालों की कमी | भरा पूरा परिवार होने के
साथ साथ भविष्य की संभावनाओं की भी कमी नहीं थी पर तथाकथित शुभचिंतक महोदय ने
बहुत अधिक संपत्ति अर्जित कर लेने की परिस्थिति का आकलन अपने आप ही कर लिया था अपरोक्ष रूप से मेरे दुर्भाग्य को
कोस रहे थे | अब ऐसे शुभचिंतकों को क्या
कहा जाय अथवा उनको किस भाषा में उत्तर दिया जाय | .....खैर समय की नजाकत और हालात को देखते हुए सहन कर लेना ही उचित समझा | उसी
समय गाँव से छोटे भाई का लगातार फोन आरहा था जिसे मैं जानबूझकर नहीं सुन्रह था
परन्तु कई मिस काल आने पर मुझे बात करनी पडी | पता चला की गाँव से पंद्रह बीस
महिलाएं ट्रेक्टर से संवेदना व्यक्त करने के लिए आनेको तैयार हा रही हैं | मैं यह
जान कर परेशान होगया क्योंकि उनके आने पर क्या दृश्य होने वाला था वह मैं अच्छी
तरह जानता था | अतः जैसे तैसे उनको आने से यह कह कर रोका कि घर पर कोई महिला नहीं
है और मैं अकेला ही आया हूँ | फिर मैंने किसी न किसी बहाने सभी रिश्तेदारियों में
बात करके वहां से संभावित संवेदना व्यक्त करने वालों को अपने अकेले ही घर पर होने
की सूचना देकर किसी तरह टाला | इस घटना से लोगों की मानसिकता और संवेदनहीनता आदि
के विषय में जो कटु व दुखद अनुभव हुए वह
पूरे जीवन भुलाये नहीं जा सकेंगे यह निश्चित है |
महाराज सिंह