Monday, August 29, 2016

अम्मा

                                                               
आज अम्मा बहुत उदास है | वैसे उसके उदास होने का कोई स्पष्ट कारन तो नजर नहीं आरहा है पर लगता है उन्हें बहू बेटों की याद आ रही है | अस्सी से पिच्चासी वर्ष की होंगीं अम्मा | ठीक ठीक उम्र उन्हें नहीं मालूम | अम्मा उस ज़माने की हैं  जब अधिकांश माँ बाप बिना पढ़े लिखे होते थे | कुछ समय तक तो बच्चों के जन्म की तिथि याद रखते थे परन्तु समय बीतते बीतते सब विस्मृत होजाता था | चांदी से सफेद बाल , झुर्रियों युक्त काया , वृद्धावस्था के कारण  मुरझाया चेहरा , पीछे छूट गये लम्बे अन्तराल की गवाही खुद दे रहे हैं | सुबह उठकर झाड़ू पकड़ लेना और जरूरत हो या न हो , पूरे खाली पड़े प्लाट और लान की  में सफाई करना उनकी दिन चर्या बन गयी है | और कोई काम करने की न तो उनकी उम्र है और न शारीरिक सामर्थ्य ही बची है | अगर वे कुछ काम क्र ही पातीं तो उनकी कोई भी बहू उन्हें अपने पास रखने से परहेज न करती | जब तक उनके हाथ पैर ठीक ठाक चलते थे , कहीं कोई समस्या नहीं आई | काम से उन्होंने कभी जी नहीं चुराया है , बल्कि काम के मामले में तो वे हमेशा अब्बल ही रहीं हैं |
                                   वक्त गुजरते देर नहीं लगती है | कल की ही सी तो बात है जब वे अपने गाँव में रहतीं थीं | भरा पूरा परिवार , हंसते खेलते बच्चे , गाँव में खेतीबाड़ी और पति की सरकारी नौकरी की आमदनी , सब कुछ दुरुस्त था | बड़ी बहू से तो उनका गजब का सामंजस्य था , जो घर का सारा काम काज कर  लेती थी | हाँ चूल्हे चौके के काम में कभी उनकी विशेष रूचि नहीं रही | परन्तु बाहर का बाकी काम वे ही करती थीं | पति की सरकारी नौकरी के कारन गाँव में प्रतिष्ठा थी जिसके कारन उनको भी लोग उतनी ही इज्जत देते थे |
                                  आर्थिक रूप से तो वे आज भी किसी के भरोसे नहीं हैं | सरकारी खजाने में उनका साझा है , उन्हें पारिवारिक पेंसन मिलती है जो उनके लिए पर्याप्त है | पर पढ़ी लिखी न होना अब उन्हें खल रहा है | पेंसन कितनी मिलती है , कहाँ से मिलती है , उन्हें नहीं मालूम | बीटा साल में एक दो बार बैंक लेजाकर कागज़ पर अंगूंठा लगवाता है , और बता देता है कि पेंसन मिल गयी | कितनी मिली , न कभी उसने बताया और न न उन्होंने कभी पूंछने की हिम्मत की | कैसे पूँछें कि बेटे कितनी पेंसन मिली  है , बुरा न लग जाय बेटे को कि उस पर विश्वास  नहीं है अम्मा को | सौ दो सौ  जो भी हाथ पर रख देता है , रख लेती हैं | उनको करना ही क्या है , कौनसा हाट बाजार जाना है उन्हें | पैसा खर्च करने की आदत ही नहीं रही उनकी | सौ पचास भी महीनों रखे रहते हैं उनके पास | ये तो छोटी बेटी वंदना ही है जो कभी कभी  बताती रहती है कि अम्मा तुम्हें इतने हजार मिलते हैं पेंसन के | उनकी दोनों बेटियां संपन्न हैं , इसलिए न तो उनको कभी जरूरत पडती है अम्मा से कुछ लेने की , और न देने की कभी बात आती है |
                                               अम्मा का स्वभाव बहुत सरल है | झगडा झंझट उन्हें पसंद नहीं | एक रस्ते की चली हुई हैं अम्मा | लाग लपेट नहीं जानतीं | उनका जमाना सबको साथ लेकर चलने का था | आजकल तो भाई भाई में नहीं बनती है , बाप बेटे लड़ जाते हैं , फिर औरतों का तो कहना ही क्या | वीटो अलग अलग परिवार से आतीं हैं | उनके जमाने में चार चार , छः छः औरतें एक ही छत के नीचे हिल मिलकर रह लेतीं थीं , पर आजकल तो जैसे कसम ही खाकर आती हैं , साथ न रहने की |
                                        वंदना बता रही थी कि दस साल होगये पिताजी को गुजरे | कल की सी ही बात लगती है उन्हें | उनके सामने सब ठीक था | कोई काम अधुरा छोड़कर नहीं गये वंदना के पिताजी | दोनों बेटियों और दोनों बेटों की शादी अपने सामने ही कर गये थे | वैसे अम्मा का काम उन्हें कभी पसंद नहीं आया | हमेशा कमी ही नजर आती थी उन्हें | पर उस नोंक झोंक का भी अपना एक आनंद था | अब उनकी कमी खलती है | कभी कभी तो अम्मा को वे दिन बहुत याद आते हैं , पर किससे कहें और क्या कहें , कौन सुनने वाला है उनकी बात | गाँव में जब तक थीं , साथ की बड़ी बूढियों के साथ बतिया लेती थीं \ अब तो वह भी नहीं रहा | वैसे गाँव में आज भी है सब कुछ | खेती बारी , घर बार | खेती को उठाने पर कुछ पैसा भी आता है , जिसे दोनों बेटे आपस में बाँट लेते हैं | घर पक्का बना है , जिसमें बिजली पानी की व्यवस्था भी है | घर के सामने दालान और चबूतरा है , जिस पर कभी आने जाने और बैठने वालों का ताँता सा लगा रहता था | पर आज सब ऐसी ही पड़ा है , खाली व सूना सा | गाँव में कोई रहने वाला ही  नहीं है | कौन रहे |.....  बेटियों की शादी होगयी , वर्षों पहले दोनों बेटे शहर में जाकर बस गये | गाँव का घर द्वार खाली पड़ा है , किसी की बाट जोहता सा | कौन रहने आ रहा है वहां | बेटे , नाती पोते कोई तो गाँव रहने नहीं आ सकते | सबके अलग अलग घर व कारोबार हैं |
                                                     बड़े बेटे के यहाँ रहते रहते भी बोरियत होने लगती है उन्हें | शहरों का रंग ढंग उन्हें पसंद नहीं है | यहाँ कोई किसी के पास नहीं बैठता है | गाँव की बात अलग थी , वहां तो कई औरतें और बच्चे आजाते थे उनके पास | उनके साथ बात चीत करने में समय गुजर जाता था | पर शहर में तो अकेले अकेले बैठे समय बीतता ही नहीं है | पढी लिखी होतीं तो पढने लिखने में कुछ समय गुजार लेतीं | टीवी देखना उन्हें अच्छा नहीं लगता है | आजकल टीवी पर न जाने क्या क्या उल्टा सीधा दिखाते रहते हैं | उन्हें तो यह सब अच्छा नहीं लगता है | भू बेटे अपने कामों में लगे रहते हैं , नाती पोते अपने कामों में | उनके पास बैठकर उनसे बातें करने का समय किसके पास है | ..... बिना पढ़े लिखे लोगोंका मनोविज्ञान भी अलग ही होता है | उन्हें दीं दुनिया से अधिक मतलब तो होता नहीं | सहवाग निन्यानवे पर आउट हो जाय या डबल सेंचुरी लगा दे , उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता , क्योंकि न तो उन्हें क्रिकित की जानकारी है और न फुटबाल की | न शेयर मार्किट के बढने घटने का कोई असर है और न कश्मीर में किसी आतंकी वारदात होने का | अम्मा तो काफी दिन से बच्चों के साथ शहर में रह रहीं हैं इसलिए कुछ जानने समझने भी लगी हैं , परन्तु गावों में कुछ व्यक्ति तो अपनी पूरी जिंदगी गाँव में ही बिता देते हैं , बिना कहीं आये जाए | बहुत हुआ तो पास के कसबे तक चले गये या गोवर्धन की परिक्रमा क्र आये , बस |
                                            अम्मा ने अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहा | जो खाने को मिल दया , खा लिया और पहनने को मिल गया पहन लिया | कभी कोई शिकायत नहीं की किसी से | अपने अधिकार की बात करना या किसी काम में मीन मेख निकलने की कभी आदत ही नहीं रही उनकी | उन्हें दूसरों की पसंद नापसंद का बहुत ख्याल रहता है | इसलिए सदा डरती सी रहीं हैं दूसरों से | वही पुराणी आदत आज भी बनी हुई है उनकी | यहाँ तक की बहुओं से कुछ कहने भी डर लगता है | चाहे जो उनका मजाक बनता रहता है , परन्तु इस सबसे उन पर कोई असर नहीं पड़ता , वे अपने हिसाब से जिन्दगी जीतीं हैं | उनकी दिनचर्या आज भी व्यवस्थित है | सुबह पांच बजे बिस्तर छोड़ देना और फिर दैनिक कार्य , कुल्ला दातुन , नाहना धोना , नियमित रूप से आज भी कराती चली आरही हैं | साफ सफाई उन्हें बहुत पसंद है \ इसी का परिणाम है कि अम्मा कभी बीमार नहीं पडती हैं | उन्हें याद नहीं कि पिछली बार कब बीमार पड़ी थीं | अब तो जिसको देखो वही बीमारी पाले पड़ा है |
                           अम्मा बताती हैं कि उनके जमाने में गेहूं चने की रोटी बहुत स्वादिष्ट हुआ करती थी | गेहूं तो मालदार लोगों को ही नसीब होता था | अधिकतर लोग मोटे अनाज की रोटियां खाते थे | ग्रामीण परिवारों में तो गेंहू की रोटियां या पकवान किसी रिश्तेदार के आने पर ही बनते थे | गुर्च्नी या बेझर की रोटी सामान्यतया बनायीं जाती थी | अब तो न जाने क्या क्या खाने लगे हैं लोग , उन्हें नहीं पता \ एक बार पोती ने उन्हें बताया था कि बड़े होटलों में तो खाना बहुत मंहगा मिलता है , एक दो आदमी का ही हजारों का बिल बना देता हैं | उन्हें यह सुनकर अचम्भा होता है कि आखिर हजार रूपये का कोई कैसे खालेगा  | उनके ज़माने में तो हजार रूपये में पूरे गाँव की दावत हो जाती थी |
           अम्मा को यह बात अजीब सी लगती है कि आजकल लोग बहुत  स्वार्थी हो गये हैं | वे जब व्याहकर आई थीं तो ससुराल में उन्हें भरा पूरा परिवार मिला था | दो जेठ जिठानी और उनके कई कई बच्चे | सब लोग शामिल ही रहते थे | एक दो साल बाद अचानक किसी बीमारी से सभी जेठ जिठानियां राम को प्यारे हो गये | तब उनकी आठ लड़कियां और कई लड़कों की परवरिश , शादी व्याह भी वंदना के पिताजी ने ही किये थे | उन्हें यद् है कि वंदना के पिताजी द्वारा अपने भाइयों के बच्चों के लिए ये सब करने में उन्होंने कभी कोई बाधा नहीं डाली थी और न कभी कोई शिकायत की थी | आज के जमाने में तो यह स्वप्न जैसा लगता है | आजकल तो नई बहू आते ही अपने पति पर अलग होजाने का दबाब डालने लगती है जैसेशादी के बाद  अन्य परिवारी जनों से उसके पति का कोई सम्बन्ध ही न रह गया हो | वह भूल जाती है कि उसके पति पर अन्य परिवारी जनों का भी कुछ हक बनता है , जिन्होंने उसके पति को पलने पोषने में अपने खून पसीने की कमाई और कीमती समय को लगाया था |मानवीय संबंधों में अपनत्व की भावना का घटना ही आज की पारिवारिक विघटन की स्थिति के लिए जिम्मेदार है |
                                            अम्मा पिछले छः माह से अपनी बेटी वंदना  के घर पर है  पर उनका मन बेटों में ही लगा रहता है | बेटी के घर पर कोई मजदूर काम करने आये या कामवाली चौका बर्तन के लिए आये , अम्मा मौका मिलते ही उनसे बतियाने लगती हैं  और यह बताना नहीं भूलतीं की उनके कितने बेटे हैं और कौनसा बेटा आजकल क्या करता है | अभी पिछले दिनों की बात है दो तीन मजदूर पुताई का कम करने आये थे , अम्मा अवसर निकालकर उनके पास बैठ गयीं और अपने बेटों की पूरी कहानी बताने लगीं | उनकी बैटन में बेटों की कोई बुराई शामिल नहीं थी बल्कि एक से बढ़कर एक बड़ाई किये जा रही थीं की कौनसा बीटा किस पद पर है और किस बेटे के कितने बच्चे हैं , वे क्या क्या कर रहे हैं आदि आदि | अंत में यह बताना नहीं भूलतीं कि बेटी के घर तो वे कुछ दिन के लिए घूमने  आयीं हैं , एक दो दिन में चली जायेंगीं | किसी बेटे की बुराई की बात अम्मा की जुबान पर आती ही नहीं है , हाँ बहुओं की बुराई वे कभी कभी डरते डरते कर लेतीं हैं | अम्मा को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि एक बेटे ने तो लगभग तीन साल से उनकी कोई खैर खबर नहीं ली है , यहाँ तक कि फोन पर  भी बात नहीं की है | अम्मा उसकी सबसे बड़ी प्रशंसक हैं | कहती हैं ,” हम़ा औ बिजन्दरू भौतु अच्छौ ऐ ...... मेई भौतु चिंता रखतुऐ..... परि ग्वापै टाइम नाइ आइबे कौ “ | दूसरा बीटा अम्मा को अपने पास रख तो लेता है पर उसकी पत्नी खूब खरी खोटी सुनती है अम्मा को | बेचारी अम्मा सुनने के अलावा कर ही क्या सकती है | अम्मा का स्वभाव ही ऐसा है कि वे किसी से कुछ कह नहीं पातीं हैं | बहुओं से तो इल्कुल भी नहीं | परेशां होकर अम्मा कभी गाँव में अकेले रहने चली जाती हैं , कभी बेटियों के पास अथवा अपने मैके चली जाती हैं जहाँ अब उनका कोई भाई या भाभी जीवित नहीं है केवल उनके बच्चे रहते हैं |
                                            पिछले कई साल से अम्मा अपने बड़े बेटे जगबीर के पास रह रहीं थीं कि बेटे की पत्नी बीमारी के कारण अस्पताल में भरती हो गयी | वहां उसकी तंग का ऑपरेशन होना था | अम्मा भी बहू बेटे के साथ हॉस्पिटल आगयी वहां बेटी वंदना के अपनी भाभी को देखने जाने पर अम्मा उसके साथ चली आयीं |  उस बात को लगभग छः महीने होने को हैं , अम्मा तब से बेटी के पास ही है | इस बीच बड़ा बीटा दो बार अम्मा को लिवाने की औपचारिकता निभाने आचुका है |
                                                        पहली बार दो महीने बीतने पर आया था | बेटे के आने पर अम्मा का उत्साह देखने लायक था | अम्मा में एक दम नये जोश का संचार दिखाई देने लगा था | उनकी ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी | इसका कारन यह नहीं था कि अम्मा को बेटे के घर पर किसी बड़े स्वागत की आशा थी या वहां उनकी कोई विशेष आवभगत होने की सम्भावना थी , बल्कि उत्साह का कारण बेटे का लिवाने आना मात्र था क्योंकि जब बेटे की बहू हॉस्पिटल में भारती थी तो हॉस्पिटल से बेटी के साथ  
आने के बाद बहू को फिर हॉस्पिटल देखने जाने पर अम्मा की खूब छीछालेदर हुयी थी | हुआ यह था कि अम्मा के मुंह से भूल से छोटी बहू की प्रशंसा की बात निकल गयी थी | फिर क्या था बीमारी की हालत में भी बड़ी बहू ने अम्मा को खूब खरी खोटी सुनायीं थी और यह भी खा था कि वही भूभर डालेगी इस डोकरी पर इसका और कहीं ठिकाना नहीं है | उनका बेटा भी वहां उपस्थित था जो मूकदर्शक बना यह सब देखता और सुनता रहा था | इस घटना के बाद वह पुनः बेटी के साथ आगयी थी और अम्मा को बेटे के लिवाने की आशा समाप्त सी हो गयी थी | पर जब बेटा लिवाने आगया तो अम्मा को मानो संजीवनी मिल गयी थी |
                                              खैर अम्मा बेटे के साथ तो नहीं गयीं , परन्तु बेटे के आने से ही अम्मा को बड़ा संबल मिल गया था | ये अलग बात थी की बेटा मन से अम्मा को लेने नहीं आया था , केवल लोक लाज के कारण औपचारिकता निभाने आया था | उसकी इस मनस्थिति को भांपकर बेटी ने अम्मा को और कुछ दिनों के लिए अपने पास ही रख लिया था | लेकिन अम्मा बेटे के लिवाने आजाने मात्र से इतनी प्रसन्न थी कि उनकी बौडी लेंग्वेज ही बदल गयी थी | अम्मा के हाव भाव यह बता रहे थे कि अब वे निराश्रित नहीं हैं , उनका बेटा उनके साथ है , जैसे कह रही हों कि वे बिना बात के ही ण जाने क्या क्या सोचने लगी थी | उनको क्या पता था कि बेटा सुरक्षात्मक पारी खेलने में लगा था | जब वह आश्वस्त होगया कि अब अम्मा उसके साथ  नहीं जा रहीं हैं , तो शेखी बघारने के अंदाज में वंदना से कहने लगा कि हम मना थोड़े ही करते हैं , अम्मा जहाँ भी जिसके साथ रहना चाहे रहे | आखिर वह अम्मा तो सभी की है , बेटों की भी और बेटियों की भी | पर अम्मा है बहुत बुरी , मेरे बच्चों को कभी एक पैसा भी नहीं देती है , इसलिए मेरे सिवाय मेरे घर पर अम्मा को अपने पास रखने के पक्ष में नहीं रहता है | अब मेरी तो माँ है इसलिए रखना मजबूरी है | उस समय मन में आया कि इससे पूंछा जाय कि जब अम्मा की पूरी पेंसन तुम्र्ख लेते हो तो अम्मा किसी को कहाँ से कुछ देगी | परन्तु यह सोचकर कि इसका अन्यथा कुछ अर्थ न लगाया जाय , यह नहीं कहा |
                                           आज दूसरी बार जगबीर लगभग चार महीने बाद फिर आया है , अचानक प्रकट होने के अंदाज में | आते ही अम्मा से न जाने क्या कह दिया है कि अम्मा बिना देरी के अपना बैग संवारने लगी है | मुझे लग रहा है कि फिर पुरानी कहानी दुहरायी जाएगी , क्योंकि वह अम्मा को अपने साथ लेजाने से रहा | वंदना घर पर नहीं है , बाजार से सब्जी लेने गयी है | उसके आने के बाद ही कोई बात चलेगी | मैं इन मामलों में तटस्थ रहता हूँ क्योंकि न तो मुझे अम्मा के रुक्जाने से कोई परेशानी है और न उनके चले जाने से कोई दुःख | बल्कि मैंने ही वंदना को अपनी अम्मा को अपने साथ रख लेने के लिए उत्साहित किया था | जगबीर इधर उधर की बात करता रहा | मैंने भी जानबूझकर अम्मा का विषय नहीं छेड़ा | आखिरकार वह अम्मा की बात पर आ ही गया | ........”  सही बात तो यह है कि मैं तो अपना फर्ज निभाने आ जाता हूँ , जबकि मेरे परिवार का अन्य कोई सदस्य यह नहीं चाहता कि डोकरी मेरे घर पर रहे |”  ........ यह तो बड़े दिल की बात है ..... मैंने कटाक्ष करने के अंदाज में कहा | अब डोकरी किस मतलब की है | कोई काम तो होता नहीं है अब | जब तक काम कराती थी , तब तक तो बेचारी बहुएं बड़े अधिकार के साथ रखती ही थीं | अब कैसे रखें ..... | वार्तालाप चल ही रहा था कि वंदना भी आगयी |
                                       मेरे द्वारा चाय आदि के लिय कहने पर जगबीर अचानक जल्दी दिखाने  लगा | बोला मुझे शीघ्र जाना है , चाय नहीं पियूँगा | बात फिर अम्मा के विषय में ही होने लगी | वंदना बोली “ जोगेंदर का फोन आया था , उसने मुझसे कहा है कि जीजी इधर आरही हो तो अम्मा को भी साथ लेते आना | वंदना ने यह भी बताया कि उसे गुरगांव किसी काम से जाना है , तुम कहो तो अम्मा को भी साथ ले जाऊं | अम्मा जोगेंदर के पास रह आएगी |.......... “ तो अम्मा फिर वहीं रहे | तीन साल से मेरे पास है तब तो उसने या उसकी पत्नी ने कभी अम्मा से बात भी नहीं की | ....... देख लेना एक महीने में छुडवा देगी उसकी बहू ...... बहुत मक्कार है , मैं उसे जनता हूँ “ जगबीर रहस्योदघाटन करता सा बोला |
वह आक्रोशित सा फिर बोला “ अम्मा जा क्यों रही है , लिवाने आया है क्या | इस तरह बिना लिवाने आने पर उसके घर जाना ठीक नहीं है , फिर आगे अम्मा की इच्छा ..... पर ये समझ ले कि ऐसा न हो कि दो महीने बाद ही लौटकर आ जाए ..... फिर मैं नहीं रखने का .... चाहे जहाँ रहें | “
                           अब तक तो अम्मा चुप थी | पर अब बोलना जरूरी लगने लगा था , क्योंकि अम्मा नहीं चाहती थीं कि जगबीर को ऐसा लगे कि अम्मा जोगेंदर के पास जाना चाहती हैं | यद्यपि दिल से वे जोगेंदर के पास जाने की सुनकर ही बहुत उतावली थी जाने के लिए | ....... “ नाइ बेटा , मई तो बिलकुल न जाउंगी ते बिना कहे ....... सौ बेर बुलायवे आवैगौ तौ जाउंगी “ |
                           अंत में यह हुआ कि वंदना ने जैसे ही औपचारिकता निभाने के लिए यह कहा कि अम्मा को और अभी यहाँ रुक लेने दो , तो जगबीर को जैसे बिन मांगे मुराद मिल गयी हो , वह तुरंत इस प्रस्ताव पर राजी हो गया | और दो मिनट में ही बिना चाय पिए ही चला गया | उसके जाते समय विजयी होने जैसा भाव था | अम्मा ने दो तीन बार न जाने क्या क्या आशीष दिए और जब तक वह दिखाई देता रहा , गेट पर ही खडी रही |
                               जगबीर के जाने के बाद वंदना ने अम्मा से कहा | “ अम्मा ठीक ही तो कह रहा था जगबीर | तुम्हें बिना बुलाये जोगेंदर के घर नहीं जाना चाहिए | जोगेंदर लिवाने आये तब ही जाना |
    “ नाइ लाली मैं तौ चलूंगी ते साथ , मे काजें तौ दोनों एकु जैसे हें , मोइ का कन्नौ है जाते ‘ अम्मा एक दम पलती मरते हुए बोली |
                                       असल बात यह है कि अम्मा किसी के सामने चाहे जो कहदे , पर वास्तविकता यह है कि यदि अम्मा के दिल को खोलकर  देखा जाय तो उसमें जोगेंदर , जगबीर अथवा उनके बेटों के आलावा कुछ भी नहीं मिलेगा , इतना तय है |
                      एक दिन शाम को में आफिस से आया तो अम्मा लान में चारपाई पर कुछ उदास सी ध्यान मुद्रा में बैठी थीं | पूंछने पर वंदना ने बताया कि आज सुभ से ही अम्मा मोहन के यहाँ जाने के लिए व्यग्र हैं | मोहन , अम्मा का नाती यानि वंदना का भतीजा , हमारे बगल वाली कालानी में ही रहता है | कई महीने से अम्मा हमारे घर पर हैं पर उनके नाती ने कभी उन्हें देखने आने की आवश्यकता नहीं समझी | लेकिन अम्मा उससे मिलने के लिए बेचैन हैं | आखिर वंदना उन्हें शाम को नाती से मिलाने के लिए ले गयी | जब रात के आठ साड़े आठ बज गये तो मुझे लगा कि शायद अम्मा को नाती ने आने नहीं दिया है , वंदना अकेली आती ही होगी | पर ये क्या ये तो माँ बेटी दोनों चली आरही हैं | अम्मा जब कमरे में आगयीं तो मैंने कुरेदने के अंदाज में कहा , अब तो मिल आयीं नाती से , खूब आवभगत की होगी नाती ने |
   अम्मा दोनों हाथ इस अंदाज में ऊपर करते हुए , मानो वे तो ऐसे ही वंदना के कहने पर चली गयीं हों , बोलीं .... सबु ऐसे ई हें , कोई घाटि नाइ , मेंतौ कह दई तू ऐ सौ तेरौ बापु हूँ ऐसौ “ |
         अरे क्या बात हो गयी अम्मा , वह लड़का तो बहुत अच्छा है |
“ नाइ मोइ पसंद नाइ , मैंने पेन्सिल निकारि वे की कही , सो ग्वाने तौ साफु नाई कद्दई “ अम्मा नाराजगी दिखाते हुए बोली | अम्मा के दूसरे कमरे में जाने के बाद वहां वंदना आगयी | तो मैंने जानना चाहा कि अम्मा क्यों नाराज हैं , मोहन के घर पर ऐसा क्या हो गया | वंदना आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोली कि ऐसा तो कुछ नहीं हुआ मोहन के घर | बल्कि नाती के खूब उलटी सीढ़ी सुनाने के बाबजूद अम्मा भी अम्मा ने कई बार सिर पर हाथ फिर फिर कर आशीर्वाद दिया था और न जाने क्या क्या बन जाने और तनखा बढ़ जाने का आशीर्वाद देकर आयीं हैं | ...... मुझे लगा कि अम्मा इतनी सीढ़ी और न समझ नहीं हैं जितना हम लोग समझते हैं |
                  वंदना कभी कभी इस बात पर नाराज होजाती है कि अम्मा में अपने पराये का भेद बहुत अधिक है | अपने अर्थात बेटे और बेटों का परिवार , बाकी सब उनके लिए पराये हैं | बेटियों को तो पराया धन मानने की बात वह बचपन से सुनती और मानती  आयीं हैं | ऊपर से दिखने के लिए वे चाहे जो कहदें परन्तु केवल अपने बेटों और नाती पोतों को ही अपना मानतीं हैं | उनके व्यव्हार में यह बात हर बार स्पष्ट दिखायी दे जाती है | उनका मन्ना है कि , जो कुछ भी जमीन जायदाद ,गहने या उनको मिलने वाली पेंसन पर केवल बेटों का ही हक होता है | बेटे उनको अपने पास रखें या न रखें , उनके इस हक पर इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है | अम्मा की यह सोच इतनी गहरी है कि इसे कोई बदल नहीं सकता है  |
                               एक बार अम्मा का मन लेने के उद्देश्य से वंदना ने उनसे कहा कि अम्मा तुम्हें दस हजार से अधिक पेंसन मिलती है , इसे तुम अपने बेटों के आलावा गाँव में  किसी को भी देने लगोगी तो वह तुम्हें वह ख़ुशी ख़ुशी अपने पास रखने को तैयार हो जायेगा , फिर तुम ऐसा क्यों नहीं करती हो | .....
अम्मा तपाक से बोलीं , “ नाइ लाली , पेन्सिल तौ जगबीर और जोगिन्दर की है , वेई लिंगे ... औरे कैसे दे दिन्गी ...... मोहि का कन्नौ है पेन्सिल फेंसिल ते , में तौ भतीजेनु कह दई है , भूआ खूब रह तू हमाये पास ... हमनु नाइ लेनी तेई पेन्सिल ...... और मरेगी तौ पूआऊ कद्दिंगे ... चीज ऊ ते छोरनु देदिंगे “ |
तो अम्मा की दिली इच्छा तो यह है कि बेटे अपने पास रखें या न रखें , वे खिन भी रहलें , पर जमीन जायदाद और गहने ( शरीर पर पहने हुए ) , पेंसन आदि सभी बेटों को ही मिलनी चाहिए |
                         अंत में तय हुआ कि एक बार छोटे बेटे जुगिंदर को फोन करके पूंछ लिया जाय कि वह अम्मा को लिवाने कब आएगा | अम्मा का उसके पास जाने का बहुत मन जो है |
  फोन जुगिंदर ने ही उठाया | वंदना ने उसे बताया कि अम्मा का उसके पास आने का मन है और यह कि जगबीर अब अम्मा को नहीं रखना चाहता है | फोन का स्पीकर ओन था जिससे दोनों ओर का वार्तालाप सुनाई दे | उधर से हूँ हाँ होती रही | अचानक फोन पर महिला के बात करने का स्वर आने लगा क्योंकि फोन जुगिंदर की बहू रानी ने ले लिया था | उसने कहा ‘ जीजी हमसे तो सच्ची बात आती है , अम्मा जहाँ चाहें वहां रहें , उनकी मर्जी | यहाँ आना चाहतीं तो जरूर आजातीं | अम्मा को रथ थोड़े ही भेजेंगे बुलाने को | .... साफ है की अम्मा यहाँ आना ही नहीं चाहती हैं “ |  और दूसरी तरफ से रिसीवर रखने की आवाज आई | फिर कई बार फोन मिलाने का प्रयास करने पर भी फोन नहीं  मिला |
                                                आज अम्मा को तीन साल होगये हैं यहाँ रहते हुए | बेटी का दिल नहीं स्वीकारता कि अम्मा को अपनी तरफ से कहीं छोड़कर आया जाय |अब  बेटों के फोन आने भी बंद हो चुके हैं | पता चला है की जमीन व मकान को बेटे आपस में बाँट चुके हैं | पेंसन अम्मा के खाते में बैंक में जमा हो रही है अम्मा को यह पता है | खाते से पेंसन के पैसे निकलने के लिए न तो कभी अम्मा ने कहा और न कभी हमने ही इस बात की चर्चा की , हाँ जीवित रहने का सबूत ट्रेजरी में देने के लिए साल में एक बार चले जाते हैं और संभवत बेटे इसका पता क्र लेते होंगे | पर अम्मा इतने पर भी कभी अम्मा बेटों से नाराजगी की बात कभी जुबान पर नहीं लैटिन हैं और न उनकी इस मान्यता पर कोई असर पीडीए है कि पेंसन पर जगबीर और जुगिन्द्र का ही हक बनता है |     
                                                                      


आसाराम और आस्मुहम्मद

                                                      
                                                  आसाराम और आस मुहम्मद दो मित्र हैं जो दो पडौसी  गावों के रहने वाले हैं  | आसाराम के घर पर  शादी समारोह हो या  दशठोन  की दावत , आस मुहम्मद न केवल उपस्थित रहता है बल्कि सक्रिय  भागीदारी भी करता है | इसी प्रकार आस मुहम्मद के घर पर उसके गाँव में होने वाले प्रत्येक आयोजन में आसाराम का रहना भी अनिवार्य है | दोनों की मित्रता बचपन से ही चल रही है जो दोनों गाँव के लोगों के अतिरिक्त आसपास के गाँवों में भी उदाहरण  बन चुकी है | किसी भी सार्वजनिक आयोजन में इन दोनों को साथ साथ देखा जा सकता है क्योंकि दोनों गावों में से किसी में भी होने वाले  हरेक आयोजन में इन दोनों का होना प्रायः निश्चित सा है | यहाँ तक कि आसाराम के सभी रिश्तेदार आस मुहम्मद को और आस मुहम्मद के सभी रिश्तेदार आसाराम को पहिचानते  हैं |  आसाराम का गाँव हिन्दुओं का है जबकि आस  मुहम्मद के गाँव में सभी मुसलमान हैं |
                                             कई बार ऐसे अवसर आये हैं जब आसाराम के गाँव में उसके घर पर  होने वाले फंक्शन में लोग आपस में बात  करने में ऐसा कुछ  कह जाते हैं जो किसी भी मुसलमान को सुनने में अच्छा  न लगे पर  आस मुहम्मद ऐसी बातों  को सुनकर भी अनसुना कर देता है | इसी तरह जब आसाराम आस मुहम्मद के गाँव में होने वाले जलसों में होता है तो वहां उपस्थित लोग भी आसराम के समक्ष इसी प्रकार की स्थिति पैदा कर देते हैं , पर वह भी उसे भीड़ की मानसिकता समझकर उपेक्षित कर  देता है | लोगों की यह आदत होती है कि वे दूसरों की आलोचना में बड़ी रूचि लेते हैं और यदि बात धर्म की हो रही हो तो अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानकर प्रायः दूसरे धर्म की आलोचना करते हैं | आसाराम और आस मुहम्मद अलग अलग धर्मों के हैं इसलिए उन्हें इस तरह की स्थिति का कई बार सामना करना पड़ता है पर वे अपनी परिपक्व सोच के चलते उससे प्रभावित नहीं होते |  दोनों मित्र एक दूसरे की भावनाओं को भलीभांति समझते हैं इसलिए उनमें कभी मत वैभिन्य नहीं होता है | वैसे दोनों गाँव के लोगों में भी आपसी भाईचारा है और एक दूसरे के काम आने में अथवा खेती किसानी के काम में आपस में सहयोग करने में कोई परहेज नहीं है | हिन्दुओं के त्यौहारों जैसे होली दिवाली पर पडौस के गाँव के मुसलमान भी शामिल होते हैं और होली पर खूब होली के रंगों में रंग जाते हैं | बल्कि होली की टोली जब गाँव में निकलती है तो ढोलक बजाने का जिम्मा मुसलमानों के गाँव के सुल्तान पर ही होता है क्योंकि वह ढोलक बजाने में पारंगत है | हर वर्ष होने वाली राम लीला में आसाराम राम की भूमिका निभाता है  और आस मुहम्मद लक्ष्मण की भूमिका निभाता है | लक्ष्मण परशुराम संवाद में तो आस मुहम्मद द्वारा निभायी जाने वाली भूमिका को लोग बेहद पसंद करते हैं | उस समय कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता कि इस भूमिका को निभाने वाला हिन्दू न होकर एक मुसलमान युवक है | ईद के पर्व पर हिन्दू लोग अपने मुसलमान मिलने वालों के घर जाकर उनकी ख़ुशी में शामिल होते हैं और बड़े  चाव से ईद पर बनी  सिमई खाते हैं | मंदिर के सामने के मैदान में हर वर्ष ईद का मेला लगता है जिसमें हिन्दू लोग भी उत्साह से सहभागी बनते हैं |     
                                             दोनों गावों के मध्य एक बड़ी पोखर है जिसके चारों  तरफ खुली परती जमीन पड़ी है | उसी मैदान में एक प्राइमरी पाठशाला , पंचायत भवन व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र  है | ये सभी सुविधाएँ दोनों गाँवों के लिए साझा सुविधाएँ हैं | स्कूल में दोनों गाँवों के बच्चे साथ साथ पढ़ते हैं और आगे पड़े मैदान में क्रिकिट, कबड्डी और फुटबॉल  आदि खेल भी खेलते हैं | तालाब  में जब वरसात का पानी भर जाता है तो दोनों गाँव के बच्चे उसमें तैराकी सीखते हैं |  उसी मैदान के एक किनारे पर प्राचीन शिवमंदिर बना हुआ है जिसमें हिन्दुओं के गाँव के लोग पूजा पाठ करने आते हैं | बगल के गाँव के मुसलमान भी मंदिर के चबूतरे पर बैठे रहते  हैं | मंदिर में कोई आयोजन होता है तो प्रसाद के वितरण के समय  मुसलमान भी प्रसाद ग्रहण करने में संकोच नहीं करते हैं | हाँ  कोई मुसलमान मंदिर के अन्दर नहीं जाताहैं  और न पूजा पाठ में  भाग लेता है | दोनों गाँव के लोगों की सकल सूरत व बोली चाली  में भी कोई खास फर्क नहीं है | सभी लोग देखने में एक जैसे ही लगते हैं फिर वह हिन्दू हो या मुसलमान |  जो मुसलमान लम्बी दाडी रखते हैं या गोल टोपी पहन  लेते हैं वही  पहिचान में आते हैं कि वे हिन्दू नहीं मुसलमान  हैं | बड़े बूढ़े बताते हैं कि पहले उस गाँव के लोग भी हिन्दू ही थे जिन्होंने मुसलमान धर्म अपना लिया था | धर्म परिवर्तन का क्या कारण  था इस विषय में कई किवदंतियां प्रचलित हैं पर इस बिंदु पर कभी कोई गम्भीर चर्चा नहीं करता है |
                                                                पर पिछले दस बीस साल से धीरे धीरे दोनों गावों की मारी हालत व जनसंख्या घनत्व में अंतर आता गया है,  जो अब साफ साफ दिखने लगा है | मुस्लिम आबादी वाले गाँव में गरीबी और अशिक्षा अधिक है |  एक पड़े लिखे वयोवृद्ध व्यक्ति बताते हैं कि चालीस पचास वर्ष पहले दोनों गावों में सभी परिवारों में पांच  से लेकर सात आठ तक बच्चे होना सामान्य था  पर अब शिक्षा के प्रसार के बाद हिन्दुओं के गाँव में तो परिवार दो तीन बच्चों तक सीमित होने लगे हैं पर मुस्लिम आबादी वाले गाँव में ऐसा नहीं हुआ है  | साक्षरता व शिक्षा का प्रतिशत हिन्दुओं के गाँव में काफी सुधरा है | दूसरी ओर मुस्लिम आबादी वाले गाँव में साक्षरता व शिक्षा का प्रतिशत हिन्दुओं के गाँव से काफी कम है | हर परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण खेती किसानी करने वाले परिवार मजदूर परिवरों में बदलने लगे हैं | हिन्दुओं के गाँव में भी खेती बंट जाने से परिवारों की आर्थिक गतिविधि पर असर पड़ा है पर मुसलमानों के गाँव में यह प्रभाव  स्पष्ट दिखाई देने लगा है  | निरक्षर मुस्लिम माँ बाप बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी नहीं समझते और कच्ची उम्र में ही उन्हें छोटे मोटे धन्दों में लगा देते हैं | मुसलमानों के जो बच्चे स्कूल आते भी हैं उनमे से काफी बच्चे प्राइमरी के बाद ही पढाई लिखाई छोड़ देते हैं |
                                                 आस मुहम्मद और आसाराम दोनों ग्रेजुएट हैं और शिक्षा विभाग में प्राइमरी के टीचर हैं | कई बार वे दोनों मित्र बैठकर इस बिंदु पर चर्चा भी करते हैं कि आखिर मुसलमानों का गाँव शिक्षा व आधुनिकता की दौड़ में पीछे क्यों छूटता जा रहा है | आस मुहम्मद क्योंकि पढ़ा लिखा है इसलिए उसने तो अपने बच्चों की संख्या दूसरों की तुलना में सीमित रखी है तथा अपने सभी बच्चों को शिक्षित भी करा रहा है | आस मुहम्मद आसाराम से कोई बात छुपता नहीं है | वह यह स्वीकार करता है कि शिक्षा का प्रसार कम होपने के कारण  उसके धर्म के लोगों में दकियानूसी  कुछ अधिक है | उसे स्वीकार करने में संकोच नहीं होता कि गाँव की मस्जिद का मौलवी जो खुद मदरसे का पढ़ा है , कोई विधिवत शिक्षित व्यक्ति नहीं है | उसने लोगों के मन में यह बात बिठाल दी है कि इस्लाम में बच्चों की पैदावार रोकना हराम है | आस मुहम्मद लोगों को समझाने का प्रयास भी करता है पर वे आस मुहम्मद जैसे पढ़े लिखे लोगों के समझाने पर भी नहीं समझते | मौलवी ऐसे लोगों को  दीनभ्रष्ट बताकर लोगों को  उनसे दूर रहने के लिए कह देता है | आसाराम ने भी अपने मित्र आस मुहम्मद के साथ मिलकर उसके गाँव के लोगों को समझाने का प्रयास किया है पर चाहकर भी वे  गाँव के अशिक्षितऔर  अनपढ़ लोगों की सोच नहीं बदल पा रहे हैं | मौलवी ने गाँव की मस्जिद के पास ही एक कमरे में मदरसा चालू कर दिया है जिससे प्राइमरी स्कूल में आने वाले मुस्लिम बच्चों की संख्या और कम हो गयी है |  
                                                        एक बार आसाराम को किसी निजी कार्य से तीन चार दिन के लिए गाँव से बाहर जाना पड़ता है | वह वहां से  जब  गाँव वापस आता है तो गाँव की स्थ्तित देखकर दंग  रह जाता है | गाँव के बाहर बने प्राइमरी स्कूल में पुलिस वालों की भीड़ दिखाई देती है | सामने मैदान में पुलिस की कई गाड़ियाँ खडी हैं , एक पीएसी का ट्रक भी खड़ा दिखाई देता है | सडक के किनारे बनी मोती सिंह की दुकान जली हुई दिखती  है | सडक पर कई जगह फटे कपड़ों के टुकड़े पड़े हैं | सडक और उसके आस पास की जमीन  कई जगह रक्त से लाल हो गयी है | शिव मंदिर के बाहर भी पुलिस तैनात  है | अन्य  दिनों स्कूल और उसके सामने का  मैदान बच्चों के शोर गुल से जीवंत रहता था पर  वहां आज अजीब सी स्तब्धता है | गाँव के लोग कम ही दिखाई  दे रहे हैं | जो हैं भी वे डरे सहमे से हैं | आसाराम एक व्यक्ति के पास जाकर प्रश्नभरी नजरों से देखता है तो वह आसाराम को पिछले दो तीन दिनों में घटी घटना का जो विवरण देता है उसे जानकर वह हतप्रभ रह जाता है |
                                          हुआ यह था कि जिस दिन आसाराम गाँव से बाहर गया था उसी रात को दोनों गावों के मध्य पोखर पर बने शिव मंदिर में किसी ने गाय के  गोस्त के टुकड़े रख  दिए थे | जब अगली सुबह औरतें और आदमी शिव मंदिर में पूजा करने  के लिए गये तो मंदिर में मांस पड़ा  देखकर अचंभित होगये और पूजा पाठ भूलकर शोर मचाने  लगे | मंदिर में लोगों को चिल्लाते देखकर किसी उन्हौनी की आशंका में आस पास उपस्थित लोग भी मंदिर की ओर दौड़ने लगे | मंदिर में मांस मिलने की खबर पूरे गाँव में फ़ैल गयी | मंदिर पर लोगों की भीड़ बढ़ने लगी | लोग तरह तरह की आशंका व्यक्त करने लगे | कोई बोला यह तो हमारे देवता का अपमान है  किसी ने जान बूझकर शिव मंदिर को अपवित्र किया है  | जितने लोग उतनी बातें | तभी किसी ने खबर फैलादी कि यह तो मुसलमानों का काम है | वे मंदिर को अपवित्र करके मन्दिर को  यहाँ से हटवाना चाहते हैं और मंदिर की जमीन पर कब्ज़ा करना चाहते हैं | किसी ने याद दिलाया कि कैसे इस घटना के कुछ दिन पूर्व मुसलमानों के गाँव के लोगों ने उसी मैदान में मंदिर के बराबर में मस्जिद बनाने का प्रयास भी किया था जिसेउस समय लोगों को  समझा बुझाकर टाल दिया गया था | अब तो कुछ लोगों ने दोनों घटनाओं को जोडकर मुसलमानों की स्पष्ट साजिश होने का निष्कर्ष निकाल लिया | इस बात को लेकर लोग उत्तेजित होने लगे और बदला लेने की बात करने लग |
                                          उधर मुसलमानों के गाँव में बनी मस्जिद में सूअर का मांस पाए जाने पर पूरे गाँव के मुसलमान इकट्ठे हो गये थे  और किसी हिन्दू की करतूत मानकर इस्लाम की तौहीन करने का आरोप लगाने लगे थे  | इसी दौरान किसी ने मंदिर पर हिन्दुओं की भीड़ इकट्ठी होने की खबर वहां एकत्रित लोगों को बता दी | अविश्वास और आशंका की भावना बलवती होने लगी और भीड़ में से किसी ने इस्लाम खतरे में होना बताकर अल्ला हो अकबर का नारा उछाल  दिया | लोगों में इस अपमान का बदला लेने की आवाज उठने लगी | फिर  तो  अल्ला हो अकबर के नारों के साथ भीड़ मंदिर की ओर बढने लगी | कुछ अति उत्साही लोग भागकर अपने घरों से  लाठी और बल्लम भाले भी निकाल कर  ले आये  | मंदिर पर तो भीड़ पहले से इकट्ठी थी ही , दूसरी तरफ से मुसलमानों की भीड़ आते देख लोगों को विस्वास होगया कि इस में जरूर  मुसलमानों की ही साजिश है  |  उन्होंने  औरतों और बच्चों को वहां से घर भेज  दिया और पुरुष लोग  लाठी डंडे आदि हथियार लेकर लड़ने को तैयार हो गये | दोनों ओर की भीड़ पर जूनून सा सवार होगया था | उत्तेजना और क्रोध में मनुष्य का विवेक नष्ट होजाता है यही हुआ | दोनों ओर की उन्मादी भीड़ में से किसी ने एक दूसरे से कुछ भी जानने की आवश्यकता नहीं समझी |  परिणाम यह हुआ कि मंदिर के सामने मैदान में दोनों ओर की उन्मादी भीड़ के बीच  भयंकर दंगा शुरू होगया | लोग धर्मांध हो एक दूसरे पक्ष की भीड़ पर टूट पड़े |  किसी का हाथ टूटा , किसी के पैर में फ्रैक्चर हुआ और किसी का सर फटा | वही लोग जो कल तक एक दूसरे के साथ उठते बैठते थे , काम करते थे , खाते पीते थे  आज एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये थे | शिक्षा के मंदिर के सामने का मैदान वहशी भीड़ के संघर्ष का अखाड़ा बन गया था | दोनों ओर के लोगों के खून से कई जगह की जमीन रक्त रंजित होने लगी थी | उन्मादी लोगों की भीड़ बिना कुछ सोचे समझे मरने मारने पर आमादा थी जैसे उनके सोचने समझने की शक्ति ही समाप्त हो गयी हो |
                                         आस मुहम्मद  उस दिन आसाराम के काम से ही उसके घर पर गया था | जब उसे इस घटना का पता चला तो वह दौड़ा दौड़ा घटनास्थल पर  आया | दोनों गाँव के लोगों को इस तरह लड़ता देखकर वह हतप्रभ रह गया |  उसने दोनों तरफ के लोगों को समझाने का भरसक प्रयास किया , उनके हाथ पैर जोड़े , पैरों में पड़ा, रोकने की हर कोशिस की    पर बहशी भीड़ में  उसकी किसी ने नहीं सुनी | इसी बीच बचाव करने में  उसके पेट में किसी ने बल्लम से प्रहार कर  दिया और वह घायल होकर  बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा | इसी दौरान  किसी ने पास के पुलिस थाने  को खबर करदी | गनीमत रही की पुलिस जल्दी ही घटना स्थल पर आगयी और लोगों को झगडा बंद करने के लिए ललकारा | उसका असर न होने पर  पुलिस ने  हवाई फायर किये जिससे  भीड़ तितर बितर होगयी | और पुलिस झगडा बंद करने में कामयाब होगयी |  तब तक कई लोग घायल हो चुके थे जिन्हें पुलिस वालों ने पास के अस्पताल पहुँचाया | कस्बे का  अस्पतालथा जिसमें इतने लोगों की चिकित्सा करने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी | घायलों का काफी खून बह चूका था  जिसके कारण पांच लोगों ने खून अधिक  बह जाने और खून चड़ने की त्वरित व्यवस्था न हो पाने के कारण  दम  तोड़ दिया |  मरने वालों में  दो लोग  एक गाँव के और तीन लोग दूसरे गाँव के थे | कई लोग गंभीर घायल थे जिनमें आस मुहम्मद भी शामिल था |
                                                                 घटना का विवरण सुनकर  आसाराम बहुत दुखी हुआ | उसे पश्चाताप हो रहा था कि घटना के  दिन वह गाँव में क्यों नहीं रहा | उसे लग रहा था कि वह होता तो आस मुहम्मद के साथ मिलकर जरूर लोगों को समझा लेता और यह दुखद घटना टल सकती थी | उसने स्वप्न  में भी  नहीं सोचा था कि आपसी भाई चारे से रहने वाले पडौसी गावों के लोग इस तरह जानवर बन जायेंगे | पर हुआ वही जो नियति को मंजूर था |   अब उसने सोच विचारकर  निश्चय किया कि उसे क्या करना चाहिए और क्या  करना है |
                                                        आसाराम पुलिस अधिकारीयों के पास गया|  अपना परिचय देकर पुलिस वालों से बात की तथा अपना उद्देश्य बताया | पुलिस वालों की मदद से दोनों गाँवों के समझदार लोगों को बुलाया तथा उनसे बात की | उन लोगों को बताया कि मंदिर और मस्जिद दोनों में मांस डालने का काम किसी शरारती असामाजिक तत्व का काम था जो दोनों गाँव के लोगों के आपसी मेल मिलाप भाई चारे को  भंग करना चाहता था | झगडे के समय तो लोगों की बुद्धि कुंद हो गयी थी पर जब पुलिस के हस्तक्षेप से दंगा बंद होगया था तो दोनों पक्ष के लोगों को यह बात पता चल चुकी थी कि मंदिर और मस्जिद दोनों में मांस के टुकड़े रखकर किसी घ्रणित मानसिकता के व्यक्ति ने ही यह षड्यंत्र किया था | इसलिए अपनी भूल से सब लोग पहले ही अवगत हो चुके थे | इसलिए जब दोनों पक्ष के समझदार लोग आपस में मिले तो उन्हें समझाने में आसाराम को अधिक मेहनत नहीं करनी पडी | गयी  दोनों गाँव के पन्द्र्ष बीस लोगों की एक सद्भावना समिति बनायीं जो आसाराम की अगुआई में  घायलों को देखने हॉस्पिटल पहुंची और लोगों की चिकित्सा का उचित प्रबंध करवाया | आस मुहम्मद के विषय में डाक्टरों ने बताया कि इनकी चोट घटक तो नहीं है पर खून बह जाने के कारण खून की कमी होगयी है अतः  तुरंत खून चढाने की आवश्यकता है  | संयोग से आस मुहम्मद और आसाराम दोनों का खून एक ही ग्रुप का था | आसाराम ने खून देकर अपने मित्र आस मुहम्मद की जान बचायी |

                                                   अब हॉस्पिटल में भारती सभी लोग स्वस्थ होकर वापस आ चुके हैं | अनजाने और बिना सोचे विचारे निर्णय लेने से दोनों गांवों के मध्य जो अविश्वास पैदा हुआ था उसे आसाराम और आस मुहम्मद ने कई बार लोगों को एक जगह इकठ्ठा करके और मीटिंग करायी है जिससे पुनः पुराणी स्थित वापस आने लगी है |   इस घटना के बाद जो  समिति बनी थी  वह न केवल दोनों  गाँव के झगड़ों का समाधान करती है बल्कि  जन कल्याण के अन्य काम भी अपने हाथ में लिए हैं | गाँव की गलियों की साफ सफाई करने , शौचालयों का निर्माण करवाने और परिवार को सीमित रखने की शिक्षा भी लोगों को इसी समिति के लोग देते हैं जिसे गाँव वालों ने मानकर विकास के कई काम किये भी हैं | मुस्लिम आबादी वाले गगनव में भी परिवार नियोजन व पढाई लिखाई का महत्व लोग समझने लगे हैं जिसका उनके जीवन पर प्रभाव पड़ने लगा है |       

Wednesday, August 17, 2016

Prahasan

आज रात्रि मैंने एक  विचित्र सपना  देखा क़ि मुझे मच्छरों की बोली समझने की शक्ति प्राप्त हो गयी है । मुझे बाहर से मच्छरों की आवाज का शोर सुनाई दे रहा था और लग रहा था जैसे आस पास कोई बड़ी सभा हो रही हो । देखा क़ि मेरे किचिन गार्डन में मच्छरों की एक मीटिंग   चल रही है । वक्ता  लोग अपनी अपनी उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं । मलेरिया फ़ैलाने से लेकर डेंगू फ़ैलाने तक सबका व्यौरा पेश किया जा रहा है । तभी एक वक्ता अपने द्वारा फैलाये गए डेंगू का स्कोर बताते हुए मूंछों पर ताव देता है और ऐसे मच्छरों को पद्मश्री जैसे किसी सम्मान को देने की मांग करने लगता है । उसके इस प्रस्ताव का उपस्थित मच्छरों के भीड़ ध्वनिमत से जोशीला समर्थन करती है  । इसके बाद मंच पर आकर संचालक  घोषणा करता है   क़ि अब मीटिंग में अध्यक्ष महोदय द्वारा  इस साल की उपलब्धियों का विवरण प्रस्तुत किया जायेगा । सभी से शांति बनाये रखने की अपील करता है  । तभी एक नेतानुमा मच्छर अपनी लिखित रिपोर्ट हाथ में लिए प्रकट होता है और अपना सम्बोधन प्रारम्भ करता है ।
             भाइयो और बहनो हमारे संगठन द्वारा इस वर्ष रूटीन कार्यों के अतिरिक्त एक विशेष अभियान चलाया गया है । कुछ वर्ष पूर्व ही खोजी गयी डेंगू नामक ब्रह्मोस मिज़ाइल का  प्रयोग राजधानी दिल्ली में प्राथमिकता से  करने का महत्वाकांक्षी निर्णय लिया  गया है । हमारे मच्छर संगठन को यह डिसीजन इसलिए लेना पड़ा क्योंकि  दिल्ली की केंद्रीय सरकार में एक ऐसा आदमी  प्रधानमंत्री बन गया है जो हमारी कौम के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है ।  यह आदमी   सब जगह साफ़ सफाई  रखने की सलाह देता है और इसके लिए पूरे मानव समाज में जागरूकता लाने की बात करता है  यदि उसकी बात लोगों ने मानली तो समझो हमारी मच्छर जाति के समक्ष गंभीर समस्या उत्पन्न हो जायेगी यहां तक क़ि हमारी जाती का  अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा । इससे पहले जो पार्टी सत्ता में थी उसने ऐसे आदमी को प्रधानमंत्री बनाया था जो ऐसी छोटी मोटी  बातों की कोई चिंता नहीं करता था परिणाम ये था क़ि फैसले भी फटाफट होते थे । बस  पत्रावली हाईकमान से टिक होकर आई तो समझो प्रधान मंत्री के भी  दस्तखत  होगये । हाईकमान भी रॉयल किस्म का था उनका काम होता  रहे फिर रोग फैले या गन्दगी  उनको कोई मतलब नहीं रहता था । मानवों का यह नया नेता तो खुद साफ़ सफाई करने लगता है झाडू हाथ में उठा लेता  है और फिर सबसे अपने आस पास सफाई रखने की बात करता है । आप लोग सोचिये अगर ऐसा होगया तो हम मच्छरों को तो मुंह छुपाने की जगह भी नहीं मिलेगी । इसलिए हमने तय किया है क़ि आक्रामक रुख अपनाया जाय जिसके तहत डेंगू मिसाइल से सुसज्जित हमारे  सभी खतरनाक कमांडो राजधानी दिल्ली में ही डेंगू फ़ैलाने का कार्य करें । और हमें यह बताते हुए हर्ष हो रहा है क़ि इसके बहुत अच्छे परिणाम सामने आये हैं तथा दिल्ली में चारों ओर  हमारा डंका बज रहा है । दिल्ली के राजनीतिक हालात भी हम मच्छरों के पक्ष में हैं क्योंकि केंद्र सरकार और राज्य सरकार एक दूसरे को ही दोषी ठहराने में लगी रहतीं हैं उन्हें बचाव करने में विशेष रूचि नहीं है । उसने यह भी घोषणा की क़ि हमारा अगला लक्ष्य  बिहार होगा क्योंकि लोगों के चुनाव में व्यस्त होजाने पर वहां डेंगू फ़ैलाना आसान रहेगा और हमारे मच्छर लोग अपना काम निर्बाधरुप से करते रहेंगे ।
           इसके बाद डेंगू फ़ैलाने में सर्वाधिक सफल मच्छरों का स्वागत किये जाने का कार्यक्रम  शुरू होगया । उनको मंच पर  बुला बुलाकर प्रशस्तिपत्र दिए गए । जिस मच्छर ने सबसे अधिक लोगों में डेंगू फैलाया था उसे स्वर्णपदक देकर उसकी उपलब्धि की सराहना करने के पश्चात् उससे अपने अनुभव व तरीके सबको बताने के लिए कहा गया जिससे उसके अनुभव का अन्य  मच्छर लाभ उठाकर अधिक प्रभावी हो सकें  । अपने अनुभव साझा करते हुए उस  पुरुष्कृत मच्छर का कहना था क़ि मनुष्यों को हमारी यह गोपनीय बात क़ि डेंगू का मच्छर रात में नहीं काटता है लीक होगयी थी जिससे वे दिन में सतर्क रहने लगे थे  । पर उसने रात के अँधेरे में ही कई मनुष्यों का शिकार किया और मनुष्यों की सतर्कता को नाकाम कर दिया । प्यार और दुश्मनी में सब जायज होता है यह मनुष्यों का बनाया हुआ ही नियम है जिसका प्रयोग उसने उन्हीं के विरुद्ध किया था  । सभा में उपस्थित मच्छर समुदाय ने उसकी बुद्धिमत्ता और प्रतिउत्पन्नमति की करतलध्वनि से भूरि भूरि प्रसंशा की थी ।
                   नींद खुलने पर मैं काफी समय तक समझ ही नहीं पाया था क़ि यह सब क्या हो रहा था । इस घटना की पुष्टि हेतु मैं अपने  गार्डन की ओर दौड़ा जाकर देखा तो वहां  पर ऐसा कुछ भी दिखाई नही दिया था ।