आज अम्मा बहुत उदास है | वैसे उसके उदास होने का कोई स्पष्ट
कारन तो नजर नहीं आरहा है पर लगता है उन्हें बहू बेटों की याद आ रही है | अस्सी से
पिच्चासी वर्ष की होंगीं अम्मा | ठीक ठीक उम्र उन्हें नहीं मालूम | अम्मा उस ज़माने
की हैं जब अधिकांश माँ बाप बिना पढ़े लिखे
होते थे | कुछ समय तक तो बच्चों के जन्म की तिथि याद रखते थे परन्तु समय बीतते
बीतते सब विस्मृत होजाता था | चांदी से सफेद बाल , झुर्रियों युक्त काया ,
वृद्धावस्था के कारण मुरझाया चेहरा , पीछे
छूट गये लम्बे अन्तराल की गवाही खुद दे रहे हैं | सुबह उठकर झाड़ू पकड़ लेना और
जरूरत हो या न हो , पूरे खाली पड़े प्लाट और लान की में सफाई करना उनकी दिन चर्या बन गयी है | और
कोई काम करने की न तो उनकी उम्र है और न शारीरिक सामर्थ्य ही बची है | अगर वे कुछ
काम क्र ही पातीं तो उनकी कोई भी बहू उन्हें अपने पास रखने से परहेज न करती | जब
तक उनके हाथ पैर ठीक ठाक चलते थे , कहीं कोई समस्या नहीं आई | काम से उन्होंने कभी
जी नहीं चुराया है , बल्कि काम के मामले में तो वे हमेशा अब्बल ही रहीं हैं |
वक्त गुजरते
देर नहीं लगती है | कल की ही सी तो बात है जब वे अपने गाँव में रहतीं थीं | भरा
पूरा परिवार , हंसते खेलते बच्चे , गाँव में खेतीबाड़ी और पति की सरकारी नौकरी की
आमदनी , सब कुछ दुरुस्त था | बड़ी बहू से तो उनका गजब का सामंजस्य था , जो घर का
सारा काम काज कर लेती थी | हाँ चूल्हे
चौके के काम में कभी उनकी विशेष रूचि नहीं रही | परन्तु बाहर का बाकी काम वे ही
करती थीं | पति की सरकारी नौकरी के कारन गाँव में प्रतिष्ठा थी जिसके कारन उनको भी
लोग उतनी ही इज्जत देते थे |
आर्थिक रूप से तो वे आज
भी किसी के भरोसे नहीं हैं | सरकारी खजाने में उनका साझा है , उन्हें पारिवारिक
पेंसन मिलती है जो उनके लिए पर्याप्त है | पर पढ़ी लिखी न होना अब उन्हें खल रहा है
| पेंसन कितनी मिलती है , कहाँ से मिलती है , उन्हें नहीं मालूम | बीटा साल में एक
दो बार बैंक लेजाकर कागज़ पर अंगूंठा लगवाता है , और बता देता है कि पेंसन मिल गयी |
कितनी मिली , न कभी उसने बताया और न न उन्होंने कभी पूंछने की हिम्मत की | कैसे
पूँछें कि बेटे कितनी पेंसन मिली है ,
बुरा न लग जाय बेटे को कि उस पर विश्वास
नहीं है अम्मा को | सौ दो सौ जो भी
हाथ पर रख देता है , रख लेती हैं | उनको करना ही क्या है , कौनसा हाट बाजार जाना
है उन्हें | पैसा खर्च करने की आदत ही नहीं रही उनकी | सौ पचास भी महीनों रखे रहते
हैं उनके पास | ये तो छोटी बेटी वंदना ही है जो कभी कभी बताती रहती है कि अम्मा तुम्हें इतने हजार
मिलते हैं पेंसन के | उनकी दोनों बेटियां संपन्न हैं , इसलिए न तो उनको कभी जरूरत
पडती है अम्मा से कुछ लेने की , और न देने की कभी बात आती है |
अम्मा का स्वभाव बहुत सरल है | झगडा झंझट उन्हें पसंद नहीं | एक रस्ते की
चली हुई हैं अम्मा | लाग लपेट नहीं जानतीं | उनका जमाना सबको साथ लेकर चलने का था |
आजकल तो भाई भाई में नहीं बनती है , बाप बेटे लड़ जाते हैं , फिर औरतों का तो कहना
ही क्या | वीटो अलग अलग परिवार से आतीं हैं | उनके जमाने में चार चार , छः छः
औरतें एक ही छत के नीचे हिल मिलकर रह लेतीं थीं , पर आजकल तो जैसे कसम ही खाकर आती
हैं , साथ न रहने की |
वंदना
बता रही थी कि दस साल होगये पिताजी को गुजरे | कल की सी ही बात लगती है उन्हें |
उनके सामने सब ठीक था | कोई काम अधुरा छोड़कर नहीं गये वंदना के पिताजी | दोनों
बेटियों और दोनों बेटों की शादी अपने सामने ही कर गये थे | वैसे अम्मा का काम
उन्हें कभी पसंद नहीं आया | हमेशा कमी ही नजर आती थी उन्हें | पर उस नोंक झोंक का
भी अपना एक आनंद था | अब उनकी कमी खलती है | कभी कभी तो अम्मा को वे दिन बहुत याद आते
हैं , पर किससे कहें और क्या कहें , कौन सुनने वाला है उनकी बात | गाँव में जब तक
थीं , साथ की बड़ी बूढियों के साथ बतिया लेती थीं \ अब तो वह भी नहीं रहा | वैसे
गाँव में आज भी है सब कुछ | खेती बारी , घर बार | खेती को उठाने पर कुछ पैसा भी
आता है , जिसे दोनों बेटे आपस में बाँट लेते हैं | घर पक्का बना है , जिसमें बिजली
पानी की व्यवस्था भी है | घर के सामने दालान और चबूतरा है , जिस पर कभी आने जाने
और बैठने वालों का ताँता सा लगा रहता था | पर आज सब ऐसी ही पड़ा है , खाली व सूना
सा | गाँव में कोई रहने वाला ही नहीं है |
कौन रहे |..... बेटियों की शादी होगयी ,
वर्षों पहले दोनों बेटे शहर में जाकर बस गये | गाँव का घर द्वार खाली पड़ा है ,
किसी की बाट जोहता सा | कौन रहने आ रहा है वहां | बेटे , नाती पोते कोई तो गाँव
रहने नहीं आ सकते | सबके अलग अलग घर व कारोबार हैं |
बड़े बेटे के यहाँ रहते रहते भी बोरियत होने लगती है उन्हें | शहरों का रंग
ढंग उन्हें पसंद नहीं है | यहाँ कोई किसी के पास नहीं बैठता है | गाँव की बात अलग
थी , वहां तो कई औरतें और बच्चे आजाते थे उनके पास | उनके साथ बात चीत करने में
समय गुजर जाता था | पर शहर में तो अकेले अकेले बैठे समय बीतता ही नहीं है | पढी
लिखी होतीं तो पढने लिखने में कुछ समय गुजार लेतीं | टीवी देखना उन्हें अच्छा नहीं
लगता है | आजकल टीवी पर न जाने क्या क्या उल्टा सीधा दिखाते रहते हैं | उन्हें तो
यह सब अच्छा नहीं लगता है | भू बेटे अपने कामों में लगे रहते हैं , नाती पोते अपने
कामों में | उनके पास बैठकर उनसे बातें करने का समय किसके पास है | ..... बिना पढ़े
लिखे लोगोंका मनोविज्ञान भी अलग ही होता है | उन्हें दीं दुनिया से अधिक मतलब तो
होता नहीं | सहवाग निन्यानवे पर आउट हो जाय या डबल सेंचुरी लगा दे , उनकी सेहत पर
कोई फर्क नहीं पड़ता , क्योंकि न तो उन्हें क्रिकित की जानकारी है और न फुटबाल की |
न शेयर मार्किट के बढने घटने का कोई असर है और न कश्मीर में किसी आतंकी वारदात
होने का | अम्मा तो काफी दिन से बच्चों के साथ शहर में रह रहीं हैं इसलिए कुछ
जानने समझने भी लगी हैं , परन्तु गावों में कुछ व्यक्ति तो अपनी पूरी जिंदगी गाँव
में ही बिता देते हैं , बिना कहीं आये जाए | बहुत हुआ तो पास के कसबे तक चले गये
या गोवर्धन की परिक्रमा क्र आये , बस |
अम्मा ने अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहा | जो खाने को मिल दया , खा लिया और
पहनने को मिल गया पहन लिया | कभी कोई शिकायत नहीं की किसी से | अपने अधिकार की बात
करना या किसी काम में मीन मेख निकलने की कभी आदत ही नहीं रही उनकी | उन्हें दूसरों
की पसंद नापसंद का बहुत ख्याल रहता है | इसलिए सदा डरती सी रहीं हैं दूसरों से |
वही पुराणी आदत आज भी बनी हुई है उनकी | यहाँ तक की बहुओं से कुछ कहने भी डर लगता
है | चाहे जो उनका मजाक बनता रहता है , परन्तु इस सबसे उन पर कोई असर नहीं पड़ता ,
वे अपने हिसाब से जिन्दगी जीतीं हैं | उनकी दिनचर्या आज भी व्यवस्थित है | सुबह
पांच बजे बिस्तर छोड़ देना और फिर दैनिक कार्य , कुल्ला दातुन , नाहना धोना ,
नियमित रूप से आज भी कराती चली आरही हैं | साफ सफाई उन्हें बहुत पसंद है \ इसी का
परिणाम है कि अम्मा कभी बीमार नहीं पडती हैं | उन्हें याद नहीं कि पिछली बार कब
बीमार पड़ी थीं | अब तो जिसको देखो वही बीमारी पाले पड़ा है |
अम्मा बताती हैं कि उनके जमाने में गेहूं चने की रोटी बहुत स्वादिष्ट हुआ
करती थी | गेहूं तो मालदार लोगों को ही नसीब होता था | अधिकतर लोग मोटे अनाज की
रोटियां खाते थे | ग्रामीण परिवारों में तो गेंहू की रोटियां या पकवान किसी
रिश्तेदार के आने पर ही बनते थे | गुर्च्नी या बेझर की रोटी सामान्यतया बनायीं
जाती थी | अब तो न जाने क्या क्या खाने लगे हैं लोग , उन्हें नहीं पता \ एक बार
पोती ने उन्हें बताया था कि बड़े होटलों में तो खाना बहुत मंहगा मिलता है , एक दो
आदमी का ही हजारों का बिल बना देता हैं | उन्हें यह सुनकर अचम्भा होता है कि आखिर
हजार रूपये का कोई कैसे खालेगा | उनके ज़माने में तो हजार रूपये में पूरे गाँव की दावत हो
जाती थी |
अम्मा को यह बात अजीब सी
लगती है कि आजकल लोग बहुत स्वार्थी हो गये
हैं | वे जब व्याहकर आई थीं तो ससुराल में उन्हें भरा पूरा परिवार मिला था | दो
जेठ जिठानी और उनके कई कई बच्चे | सब लोग शामिल ही रहते थे | एक दो साल बाद अचानक
किसी बीमारी से सभी जेठ जिठानियां राम को प्यारे हो गये | तब उनकी आठ लड़कियां और
कई लड़कों की परवरिश , शादी व्याह भी वंदना के पिताजी ने ही किये थे | उन्हें यद्
है कि वंदना के पिताजी द्वारा अपने भाइयों के बच्चों के लिए ये सब करने में
उन्होंने कभी कोई बाधा नहीं डाली थी और न कभी कोई शिकायत की थी | आज के जमाने में
तो यह स्वप्न जैसा लगता है | आजकल तो नई बहू आते ही अपने पति पर अलग होजाने का
दबाब डालने लगती है जैसेशादी के बाद अन्य
परिवारी जनों से उसके पति का कोई सम्बन्ध ही न रह गया हो | वह भूल जाती है कि उसके
पति पर अन्य परिवारी जनों का भी कुछ हक बनता है , जिन्होंने उसके पति को पलने
पोषने में अपने खून पसीने की कमाई और कीमती समय को लगाया था |मानवीय संबंधों में
अपनत्व की भावना का घटना ही आज की पारिवारिक विघटन की स्थिति के लिए जिम्मेदार है |
अम्मा
पिछले छः माह से अपनी बेटी वंदना के घर पर
है पर उनका मन बेटों में ही लगा रहता है |
बेटी के घर पर कोई मजदूर काम करने आये या कामवाली चौका बर्तन के लिए आये , अम्मा
मौका मिलते ही उनसे बतियाने लगती हैं और
यह बताना नहीं भूलतीं की उनके कितने बेटे हैं और कौनसा बेटा आजकल क्या करता है |
अभी पिछले दिनों की बात है दो तीन मजदूर पुताई का कम करने आये थे , अम्मा अवसर निकालकर
उनके पास बैठ गयीं और अपने बेटों की पूरी कहानी बताने लगीं | उनकी बैटन में बेटों
की कोई बुराई शामिल नहीं थी बल्कि एक से बढ़कर एक बड़ाई किये जा रही थीं की कौनसा
बीटा किस पद पर है और किस बेटे के कितने बच्चे हैं , वे क्या क्या कर रहे हैं आदि
आदि | अंत में यह बताना नहीं भूलतीं कि बेटी के घर तो वे कुछ दिन के लिए घूमने आयीं हैं , एक दो दिन में चली जायेंगीं | किसी
बेटे की बुराई की बात अम्मा की जुबान पर आती ही नहीं है , हाँ बहुओं की बुराई वे
कभी कभी डरते डरते कर लेतीं हैं | अम्मा को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि एक बेटे ने
तो लगभग तीन साल से उनकी कोई खैर खबर नहीं ली है , यहाँ तक कि फोन पर भी बात नहीं की है | अम्मा उसकी सबसे बड़ी
प्रशंसक हैं | कहती हैं ,” हम़ा औ बिजन्दरू भौतु अच्छौ ऐ ...... मेई भौतु चिंता
रखतुऐ..... परि ग्वापै टाइम नाइ आइबे कौ “ | दूसरा बीटा अम्मा को अपने पास रख तो
लेता है पर उसकी पत्नी खूब खरी खोटी सुनती है अम्मा को | बेचारी अम्मा सुनने के
अलावा कर ही क्या सकती है | अम्मा का स्वभाव ही ऐसा है कि वे किसी से कुछ कह नहीं
पातीं हैं | बहुओं से तो इल्कुल भी नहीं | परेशां होकर अम्मा कभी गाँव में अकेले
रहने चली जाती हैं , कभी बेटियों के पास अथवा अपने मैके चली जाती हैं जहाँ अब उनका
कोई भाई या भाभी जीवित नहीं है केवल उनके बच्चे रहते हैं |
पिछले कई साल से अम्मा
अपने बड़े बेटे जगबीर के पास रह रहीं थीं कि बेटे की पत्नी बीमारी के कारण अस्पताल
में भरती हो गयी | वहां उसकी तंग का ऑपरेशन होना था | अम्मा भी बहू बेटे के साथ
हॉस्पिटल आगयी वहां बेटी वंदना के अपनी भाभी को देखने जाने पर अम्मा उसके साथ चली आयीं
| उस बात को लगभग छः महीने होने को हैं ,
अम्मा तब से बेटी के पास ही है | इस बीच बड़ा बीटा दो बार अम्मा को लिवाने की
औपचारिकता निभाने आचुका है |
पहली बार दो महीने बीतने पर आया था | बेटे के आने पर अम्मा का उत्साह देखने
लायक था | अम्मा में एक दम नये जोश का संचार दिखाई देने लगा था | उनकी ख़ुशी छुपाये
नहीं छुप रही थी | इसका कारन यह नहीं था कि अम्मा को बेटे के घर पर किसी बड़े
स्वागत की आशा थी या वहां उनकी कोई विशेष आवभगत होने की सम्भावना थी , बल्कि
उत्साह का कारण बेटे का लिवाने आना मात्र था क्योंकि जब बेटे की बहू हॉस्पिटल में
भारती थी तो हॉस्पिटल से बेटी के साथ
आने के बाद बहू को फिर हॉस्पिटल देखने जाने पर अम्मा की खूब
छीछालेदर हुयी थी | हुआ यह था कि अम्मा के मुंह से भूल से छोटी बहू की प्रशंसा की
बात निकल गयी थी | फिर क्या था बीमारी की हालत में भी बड़ी बहू ने अम्मा को खूब खरी
खोटी सुनायीं थी और यह भी खा था कि वही भूभर डालेगी इस डोकरी पर इसका और कहीं
ठिकाना नहीं है | उनका बेटा भी वहां उपस्थित था जो मूकदर्शक बना यह सब देखता और
सुनता रहा था | इस घटना के बाद वह पुनः बेटी के साथ आगयी थी और अम्मा को बेटे के
लिवाने की आशा समाप्त सी हो गयी थी | पर जब बेटा लिवाने आगया तो अम्मा को मानो संजीवनी
मिल गयी थी |
खैर अम्मा बेटे के साथ तो नहीं गयीं , परन्तु बेटे के आने से ही अम्मा को
बड़ा संबल मिल गया था | ये अलग बात थी की बेटा मन से अम्मा को लेने नहीं आया था ,
केवल लोक लाज के कारण औपचारिकता निभाने आया था | उसकी इस मनस्थिति को भांपकर बेटी
ने अम्मा को और कुछ दिनों के लिए अपने पास ही रख लिया था | लेकिन अम्मा बेटे के
लिवाने आजाने मात्र से इतनी प्रसन्न थी कि उनकी बौडी लेंग्वेज ही बदल गयी थी |
अम्मा के हाव भाव यह बता रहे थे कि अब वे निराश्रित नहीं हैं , उनका बेटा उनके साथ
है , जैसे कह रही हों कि वे बिना बात के ही ण जाने क्या क्या सोचने लगी थी | उनको
क्या पता था कि बेटा सुरक्षात्मक पारी खेलने में लगा था | जब वह आश्वस्त होगया कि
अब अम्मा उसके साथ नहीं जा रहीं हैं , तो
शेखी बघारने के अंदाज में वंदना से कहने लगा कि हम मना थोड़े ही करते हैं , अम्मा
जहाँ भी जिसके साथ रहना चाहे रहे | आखिर वह अम्मा तो सभी की है , बेटों की भी और
बेटियों की भी | पर अम्मा है बहुत बुरी , मेरे बच्चों को कभी एक पैसा भी नहीं देती
है , इसलिए मेरे सिवाय मेरे घर पर अम्मा को अपने पास रखने के पक्ष में नहीं रहता
है | अब मेरी तो माँ है इसलिए रखना मजबूरी है | उस समय मन में आया कि इससे पूंछा जाय
कि जब अम्मा की पूरी पेंसन तुम्र्ख लेते हो तो अम्मा किसी को कहाँ से कुछ देगी |
परन्तु यह सोचकर कि इसका अन्यथा कुछ अर्थ न लगाया जाय , यह नहीं कहा |
आज
दूसरी बार जगबीर लगभग चार महीने बाद फिर आया है , अचानक प्रकट होने के अंदाज में |
आते ही अम्मा से न जाने क्या कह दिया है कि अम्मा बिना देरी के अपना बैग संवारने
लगी है | मुझे लग रहा है कि फिर पुरानी कहानी दुहरायी जाएगी , क्योंकि वह अम्मा को
अपने साथ लेजाने से रहा | वंदना घर पर नहीं है , बाजार से सब्जी लेने गयी है |
उसके आने के बाद ही कोई बात चलेगी | मैं इन मामलों में तटस्थ रहता हूँ क्योंकि न
तो मुझे अम्मा के रुक्जाने से कोई परेशानी है और न उनके चले जाने से कोई दुःख |
बल्कि मैंने ही वंदना को अपनी अम्मा को अपने साथ रख लेने के लिए उत्साहित किया था |
जगबीर इधर उधर की बात करता रहा | मैंने भी जानबूझकर अम्मा का विषय नहीं छेड़ा |
आखिरकार वह अम्मा की बात पर आ ही गया | ........”
सही बात तो यह है कि मैं तो अपना फर्ज निभाने आ जाता हूँ , जबकि मेरे परिवार
का अन्य कोई सदस्य यह नहीं चाहता कि डोकरी मेरे घर पर रहे |” ........ यह तो बड़े दिल की बात है ..... मैंने
कटाक्ष करने के अंदाज में कहा | अब डोकरी किस मतलब की है | कोई काम तो होता नहीं
है अब | जब तक काम कराती थी , तब तक तो बेचारी बहुएं बड़े अधिकार के साथ रखती ही थीं
| अब कैसे रखें ..... | वार्तालाप चल ही रहा था कि वंदना भी आगयी |
मेरे
द्वारा चाय आदि के लिय कहने पर जगबीर अचानक जल्दी दिखाने लगा | बोला मुझे शीघ्र जाना है , चाय नहीं
पियूँगा | बात फिर अम्मा के विषय में ही होने लगी | वंदना बोली “ जोगेंदर का फोन
आया था , उसने मुझसे कहा है कि जीजी इधर आरही हो तो अम्मा को भी साथ लेते आना |
वंदना ने यह भी बताया कि उसे गुरगांव किसी काम से जाना है , तुम कहो तो अम्मा को
भी साथ ले जाऊं | अम्मा जोगेंदर के पास रह आएगी |.......... “ तो अम्मा फिर वहीं
रहे | तीन साल से मेरे पास है तब तो उसने या उसकी पत्नी ने कभी अम्मा से बात भी
नहीं की | ....... देख लेना एक महीने में छुडवा देगी उसकी बहू ...... बहुत मक्कार
है , मैं उसे जनता हूँ “ जगबीर रहस्योदघाटन करता सा बोला |
वह आक्रोशित सा फिर बोला “ अम्मा जा क्यों रही है , लिवाने
आया है क्या | इस तरह बिना लिवाने आने पर उसके घर जाना ठीक नहीं है , फिर आगे
अम्मा की इच्छा ..... पर ये समझ ले कि ऐसा न हो कि दो महीने बाद ही लौटकर आ जाए .....
फिर मैं नहीं रखने का .... चाहे जहाँ रहें | “
अब तक तो अम्मा चुप थी | पर अब बोलना जरूरी लगने लगा था , क्योंकि अम्मा
नहीं चाहती थीं कि जगबीर को ऐसा लगे कि अम्मा जोगेंदर के पास जाना चाहती हैं |
यद्यपि दिल से वे जोगेंदर के पास जाने की सुनकर ही बहुत उतावली थी जाने के लिए |
....... “ नाइ बेटा , मई तो बिलकुल न जाउंगी ते बिना कहे ....... सौ बेर बुलायवे
आवैगौ तौ जाउंगी “ |
अंत में यह हुआ कि वंदना ने जैसे ही औपचारिकता निभाने के लिए यह कहा कि
अम्मा को और अभी यहाँ रुक लेने दो , तो जगबीर को जैसे बिन मांगे मुराद मिल गयी हो ,
वह तुरंत इस प्रस्ताव पर राजी हो गया | और दो मिनट में ही बिना चाय पिए ही चला गया
| उसके जाते समय विजयी होने जैसा भाव था | अम्मा ने दो तीन बार न जाने क्या क्या
आशीष दिए और जब तक वह दिखाई देता रहा , गेट पर ही खडी रही |
जगबीर के जाने के
बाद वंदना ने अम्मा से कहा | “ अम्मा ठीक ही तो कह रहा था जगबीर | तुम्हें बिना
बुलाये जोगेंदर के घर नहीं जाना चाहिए | जोगेंदर लिवाने आये तब ही जाना |
“ नाइ लाली मैं तौ
चलूंगी ते साथ , मे काजें तौ दोनों एकु जैसे हें , मोइ का कन्नौ है जाते ‘ अम्मा
एक दम पलती मरते हुए बोली |
असल बात
यह है कि अम्मा किसी के सामने चाहे जो कहदे , पर वास्तविकता यह है कि यदि अम्मा के
दिल को खोलकर देखा जाय तो उसमें जोगेंदर ,
जगबीर अथवा उनके बेटों के आलावा कुछ भी नहीं मिलेगा , इतना तय है |
एक दिन शाम को में आफिस से आया तो अम्मा लान में चारपाई पर कुछ उदास सी
ध्यान मुद्रा में बैठी थीं | पूंछने पर वंदना ने बताया कि आज सुभ से ही अम्मा मोहन
के यहाँ जाने के लिए व्यग्र हैं | मोहन , अम्मा का नाती यानि वंदना का भतीजा ,
हमारे बगल वाली कालानी में ही रहता है | कई महीने से अम्मा हमारे घर पर हैं पर
उनके नाती ने कभी उन्हें देखने आने की आवश्यकता नहीं समझी | लेकिन अम्मा उससे
मिलने के लिए बेचैन हैं | आखिर वंदना उन्हें शाम को नाती से मिलाने के लिए ले गयी |
जब रात के आठ साड़े आठ बज गये तो मुझे लगा कि शायद अम्मा को नाती ने आने नहीं दिया
है , वंदना अकेली आती ही होगी | पर ये क्या ये तो माँ बेटी दोनों चली आरही हैं |
अम्मा जब कमरे में आगयीं तो मैंने कुरेदने के अंदाज में कहा , अब तो मिल आयीं नाती
से , खूब आवभगत की होगी नाती ने |
अम्मा दोनों हाथ
इस अंदाज में ऊपर करते हुए , मानो वे तो ऐसे ही वंदना के कहने पर चली गयीं हों ,
बोलीं .... सबु ऐसे ई हें , कोई घाटि नाइ , मेंतौ कह दई तू ऐ सौ तेरौ बापु हूँ ऐसौ
“ |
अरे क्या
बात हो गयी अम्मा , वह लड़का तो बहुत अच्छा है |
“ नाइ मोइ पसंद नाइ , मैंने पेन्सिल निकारि वे की कही , सो
ग्वाने तौ साफु नाई कद्दई “ अम्मा नाराजगी दिखाते हुए बोली | अम्मा के दूसरे कमरे
में जाने के बाद वहां वंदना आगयी | तो मैंने जानना चाहा कि अम्मा क्यों नाराज हैं ,
मोहन के घर पर ऐसा क्या हो गया | वंदना आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोली कि ऐसा तो
कुछ नहीं हुआ मोहन के घर | बल्कि नाती के खूब उलटी सीढ़ी सुनाने के बाबजूद अम्मा भी
अम्मा ने कई बार सिर पर हाथ फिर फिर कर आशीर्वाद दिया था और न जाने क्या क्या बन
जाने और तनखा बढ़ जाने का आशीर्वाद देकर आयीं हैं | ...... मुझे लगा कि अम्मा इतनी
सीढ़ी और न समझ नहीं हैं जितना हम लोग समझते हैं |
वंदना कभी कभी इस बात पर नाराज होजाती है कि अम्मा में अपने पराये का भेद
बहुत अधिक है | अपने अर्थात बेटे और बेटों का परिवार , बाकी सब उनके लिए पराये हैं
| बेटियों को तो पराया धन मानने की बात वह बचपन से सुनती और मानती आयीं हैं | ऊपर से दिखने के लिए वे चाहे जो कहदें
परन्तु केवल अपने बेटों और नाती पोतों को ही अपना मानतीं हैं | उनके व्यव्हार में
यह बात हर बार स्पष्ट दिखायी दे जाती है | उनका मन्ना है कि , जो कुछ भी जमीन
जायदाद ,गहने या उनको मिलने वाली पेंसन पर केवल बेटों का ही हक होता है | बेटे
उनको अपने पास रखें या न रखें , उनके इस हक पर इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है | अम्मा
की यह सोच इतनी गहरी है कि इसे कोई बदल नहीं सकता है |
एक बार अम्मा का
मन लेने के उद्देश्य से वंदना ने उनसे कहा कि अम्मा तुम्हें दस हजार से अधिक पेंसन
मिलती है , इसे तुम अपने बेटों के आलावा गाँव में
किसी को भी देने लगोगी तो वह तुम्हें वह ख़ुशी ख़ुशी अपने पास रखने को तैयार
हो जायेगा , फिर तुम ऐसा क्यों नहीं करती हो | .....
अम्मा तपाक से बोलीं , “ नाइ लाली , पेन्सिल तौ जगबीर और
जोगिन्दर की है , वेई लिंगे ... औरे कैसे दे दिन्गी ...... मोहि का कन्नौ है
पेन्सिल फेंसिल ते , में तौ भतीजेनु कह दई है , भूआ खूब रह तू हमाये पास ... हमनु
नाइ लेनी तेई पेन्सिल ...... और मरेगी तौ पूआऊ कद्दिंगे ... चीज ऊ ते छोरनु देदिंगे
“ |
तो अम्मा की दिली इच्छा तो यह है कि बेटे अपने पास रखें या
न रखें , वे खिन भी रहलें , पर जमीन जायदाद और गहने ( शरीर पर पहने हुए ) , पेंसन
आदि सभी बेटों को ही मिलनी चाहिए |
अंत में तय हुआ कि एक बार छोटे बेटे जुगिंदर को फोन करके पूंछ लिया जाय कि
वह अम्मा को लिवाने कब आएगा | अम्मा का उसके पास जाने का बहुत मन जो है |
फोन जुगिंदर ने ही
उठाया | वंदना ने उसे बताया कि अम्मा का उसके पास आने का मन है और यह कि जगबीर अब
अम्मा को नहीं रखना चाहता है | फोन का स्पीकर ओन था जिससे दोनों ओर का वार्तालाप
सुनाई दे | उधर से हूँ हाँ होती रही | अचानक फोन पर महिला के बात करने का स्वर आने
लगा क्योंकि फोन जुगिंदर की बहू रानी ने ले लिया था | उसने कहा ‘ जीजी हमसे तो
सच्ची बात आती है , अम्मा जहाँ चाहें वहां रहें , उनकी मर्जी | यहाँ आना चाहतीं तो
जरूर आजातीं | अम्मा को रथ थोड़े ही भेजेंगे बुलाने को | .... साफ है की अम्मा यहाँ
आना ही नहीं चाहती हैं “ | और दूसरी तरफ
से रिसीवर रखने की आवाज आई | फिर कई बार फोन मिलाने का प्रयास करने पर भी फोन नहीं मिला |
आज अम्मा को तीन साल होगये हैं यहाँ रहते हुए | बेटी का दिल नहीं स्वीकारता
कि अम्मा को अपनी तरफ से कहीं छोड़कर आया जाय |अब बेटों के फोन आने भी बंद हो चुके हैं | पता चला
है की जमीन व मकान को बेटे आपस में बाँट चुके हैं | पेंसन अम्मा के खाते में बैंक
में जमा हो रही है अम्मा को यह पता है | खाते से पेंसन के पैसे निकलने के लिए न तो
कभी अम्मा ने कहा और न कभी हमने ही इस बात की चर्चा की , हाँ जीवित रहने का सबूत
ट्रेजरी में देने के लिए साल में एक बार चले जाते हैं और संभवत बेटे इसका पता क्र
लेते होंगे | पर अम्मा इतने पर भी कभी अम्मा बेटों से नाराजगी की बात कभी जुबान पर
नहीं लैटिन हैं और न उनकी इस मान्यता पर कोई असर पीडीए है कि पेंसन पर जगबीर और
जुगिन्द्र का ही हक बनता है |