भाई चारा
भूरे व मुन्ना की जान पहिचान विचित्र परिस्थिति में हुई थी | हुआ यह था कि जब पहलीबार मुन्ना काम की खोज में कसबे में आया तो नयी जगह को देख भौचक था | उसकी कोई न तो उस कसबे में जान पहिचान थी और न कोई रिश्तेदारी | वह तो हालातों का मारा घरवालों से लड़ भिड़कर चला आया था |
वह बारहवीं तक अपने गांव के पास के कालेज में पढ़ा था और पढ़ने के मामले में वह काफी होशियार भी मना जाता था , परन्तु आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण घरवाले उसकी आगे की पढाई जारी नहीं रखवा पाए थे तथा छोटी उम्र में ही उसकी शादी करके वे अपना फर्ज पूरा करना मान बैठे थे | शादी शुदा होने पर अपने साथ बीबी बच्चों की भी जरूरतें पूरी करने में आर्थिक तंगी आढे आने लगी थी | घर की मारी हालत ऐसी न थी कि उसे उसके निजी खर्चों के लिए कुछ मिल पाता , घरवालों से झगडा होने का मुख्य कारण भी यही था |
घर से चलते समय उसने सोचा था कि कोई ना कोई काम मिल ही जायेगा और उसकी दिनचर्या चल निकलेगी | एक दो दिन यहीं रेलवे स्टेसन पर रात गुजार चुका था पर लाख कोशिश के बाबजूद उसे कोई काम नहीं मिल पाया था | अब उसकी अंटी भी ढीली होने लगी थी | काम की तलाश में वह ऐसे ही घूम रहा था कि उसने देखा सड़क पर एक आदमी को कई मुस्टंडे पीट रहे हैं | पिटनेवाला बेचारा स्वयं को उनसे अपनी रक्षा कर पाने में असमर्थ पा रहा था परन्तु आस पास उपस्थित भीड़ और आने जाने वाला कोई भी व्यक्ति उसकी सहायता के लिए आगे नहीं आ रहा था | मुन्ना ने जब यह देखा तो अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार उस व्यक्ति के बचाव में कूद पड़ा | थोड़ी देर की हाथापाई के बाद उस को वह बचाने में सफल हो गया | मुस्तंडे मुन्ना के आगे बेबस होकर भूरे को छोड़ कर भाग खड़े हुए थे | किसी एकदम अनजान व्यक्ति के द्वारा अपनी जान जोखिम में डालकर उसके बचाव करने से भूरा बहुत प्रभावित हुआ था और आभार व्यक्त करते हुए उसके बारे में जानकारी की थी | अंत में यह पता लगने पर कि उसकी जान पहिचान का यहाँ कोई नहीं है और वह काम की तलास में कसबे में आया है , उसे अपने घर लेगया था |
वह दिन है कि आज दोनों की दोस्ती गहराती गयी है | यहाँ तक कि अब तो उनके परिवार एक दूसरे से इतने घुल मिल गये है कि परिवार में खुशी या गम का कोई भी मौका हो मुन्ना व भूरे साथ साथ ही दिखाई देते हैं | उनकी दोस्ती की कसबे में मिसाल दी जाने लगी है | लोग यह जानने में भूल कर जाते है कि मुन्ना मुन्ना सिंह है या मुन्ने खान और भूरे जिसका पूरा नाम भूरे खान है , उसको भूरे सिंह समझ बैठते हैं |
मुन्ना को याद है कि जब वह भूरे के साथ उसके घर पहुंचा था तो घर के लोगों का पहनावा खासकर औरतों के बुरखे को देखकर वह जान पाया था कि भूरे हिंदू नहीं मुसलमान है और अनजाने में ही उसने मुसलमान की सहायता की है | पर उसका दिल यह मानने को तैयार नहीं था कि ऐसा करके उसने कोई गलत काम किया है | उसे लग रहा था कि उसमें और भूरे में कोई फर्क नही है बल्कि भूरे भी उसकी ही तरह हाड मांस का बना इंसान है | फिर भूरे की आत्मीयता और सहायता करने के एवज में दिखाई गयी सज्जनता उसे अपने निर्णय को उचित मानने के लिए प्रेरित कर रही थी | उसके अपने गाँव में कोई मुसलमान नहीं था और उसने दूसरों से मुसलमानों के बारे में जितना सुना था वह उसके दिमाग में था | परन्तु भूरा और उसके घरवालों का अच्छा व्यवहार उसकी पुरानी धारणा को गलत सिद्ध कर रहा था | उसका कसबे में अन्य कहीं ठिकाना भी नहीं था इसलिए मन में कुछ दुविधा की स्थिति होने के बाबजूद वह भूरे के उसी के घर रुकने के आग्रह को अस्वीकार नहीं कर पाया था |
देखो मुन्ना ये तुम्हारी भाभी जान हैं , वह मेरी अम्मी जान और बैठक में बैठे अब्बा जान हैं ......... भूरे ने जब अपनी पत्नी , मम्मी और पिताजी से उसका परिचय कराया था तो उसके हाथ अनायास ही अभिवादन के लिए जुड गये थे | भाभी जान ने चाय का प्याला पकडाते हुए उसके घर परिवार के विषय में पूछने पर वह कोई झूट नहीं बोल पाया था | और देखते ही देखते दो चार दिन में ही भूरे की माँ उसे अपनी अम्मी जान सी ही लगने लगी थी | भूरे ने उसे अपनी जान पहिचान के एक कारखाने में काम दिलवा दिया था जिसे वह मेहनत से करने लगा था | दो चार महीने बाद ही कुछ कमाई करके जब वह अपने गाँव गया तो अपनी पत्नी व बच्चों के साथ ही लौटकर आया था | भूरे ने गाँव जाने से पहले ही उसे पडौस की एक कलौनी में किराये पर मकान दिलवा दिया था जिसमें उसका परिवार रहने लगा था |
मुन्ना को याद है कि जब भूरा के संपर्क में आने के बाद पहलीबार वह अपने गाँव गया और अपने परिवार वालों और जान पहिचान वालों को अपने दोस्त भूरा के मुस्लिम होने के बारे में बताया तो किसी की भी पहली प्रतिक्रिया अच्छी नहीं थी | हिंदू समाज में मुसलमानों के सम्बन्ध कई प्रकार के पूर्वाग्रह हैं जो सच्ची झूंटी सुनी सुनाई बातों पर आधारित हैं | यद्यपि यह सच नहीं है क्योंकि अच्छे और बुरे लोग हर समाज में होते हैं अतः पूरे समाज के लिए एक जैसी अवधारणा बना लेना अक्सर गलत ही होता है | मुसलमानों के प्रति हिंदुओं की ऐसी सोच के पीछे कुछ ऐतिहासिक घटनाओं का भी हाथ है पर वे उन विदेशी आक्रांताओं के विषय में ही सही है जो देश में लूट पाट करने के उद्देश्य से ही आये थे | आज के अधिकांश मुस्लमान इस देश की मिटटी से पैदा हुए हैं और इस देश की ही संतान हैं और अधिकांश के पूर्वज भी हिन्दुस्तानी ही थे | जो विदेशी मूल के भी हैं वे भी शदियों से इसी देश में रहते रहते पूरी तरह हिन्दुस्तानी होचुके है | अतः अब यह देश जितना हिंदुओं का है उतना ही मुसलमानों का भी है | मुन्ना भूरे व उसके परिवार वालों के अच्छे व्यवहार को देख चुका था और उससे पूरी तरह प्रभावित था अतः जब कोई भी उनके प्रति शंका जाहिर करता तो मुन्ना उसे उनके वर्ताव के विषय में बताकर और उनकी अच्छाइयां गिनाकर उन्हें निरुत्तर कर देता था |
भूरे के पांच बच्चे थे जिनमें उम्र का बहुत कम अंतर था | बल्कि हर एक सवा साल के बाद भूरे की पत्नी माँ बन जाती थी | जल्दी जल्दी बच्चे होने और घर कि मारी हालत ठीक न होने के कारण भूरे की पत्नी जवानी में ही बूढी सी दिखाई देने लगी थी | अपनी पत्नी के माध्यम से जब एक बार उसे यह मालूम हुआ कि भाभी जान तो उम्र में उसकी पत्नी से भी एक दो साल छोटी हैं तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ | उसने अधिक बच्चे होने और जल्दी जल्दी बच्चे होने से उत्पन्न बुरे परिणामों के विषय में भूरे से बात की और यह मानते हुए कि भूरे शायद पढ़ा लिखा नहीं है उसने इस स्थिति को शिक्षा के अभाव से जोड़ते हुए उसे समझाया | परन्तु जब उसने जाना कि भूरे भी मैट्रिक तक पढ़ा है तो उसने उससे इस विषय में खुलकर बात की | अपनी पत्नी से कहकर भाभी जान को भी जल्दी जल्दी और अधिक बच्चे होने की हानियों के बारे में समझाया | किसी तरह भूरे व उसकी पत्नी तो इस बात को मान गये कि परिवार का छोटा होना और बच्चों में तीन चार साल का अंतर होना अच्छी बात है , परन्तु भूरे की अम्मी यह मानने को तैयार न थी | उनका कहना था कि इस्लाम में बच्चों को रोकना नाजायज है और यह कि बच्चे तो अल्ला की नेमत होते हैं और जो अल्ला के विधान में दखल देता है वह दोजख का भागी होता है ...... आदि आदि |
एक दिन अवसर देखकर मुन्ना ने भूरे से इस बिंदु पर फिर बात की और कहा कि वह यह बताए कि किस धार्मिक ग्रन्थ में ऐसा लिखा है कि परिवार नियोजन इस्लाम के खिलाफ है | उसने यह भी कहा कि उसने इसी उद्देश्य से कुरान पूरी पढकर देखी है उसमें ऐसा कोई उल्लेख उसे नहीं मिला है | भूरे खुद इतना पढ़ा लिखा था उसने भी कुरान को अच्छी तरह पढकर देखा परन्तु ऐसी कोई बात कुरआन में लिखी नहीं मिली | अब तो वह इस बात से आश्वस्त होगया कि उसके समाज में कई बातें केवल अन्धविश्वास के रूम में प्रचलितN हो गयीं हैं जबकि धार्मिक उपदेशों में ऐसा कहीं नहीं है | उसने अपने अब्बा जान को विश्वास में लेकर अम्मी जान को भी समझा लिया और सरकारी अस्पताल जाकर पत्नी का परिवार नियोजन का आपरेशन करा लिया | फिर तो वह परिवार नियोजन के लाभों से अन्य लोगों को भी समझाने लगा और इसके बाद उसने कई मिलने वालों मुसलमान भाइयों को समझाकर आपरेशन के लिए राजी किया |
मुन्ना व भूरे दोनों प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति बन चुके थे और सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगे थे | दोनों ने मिलकर प्लास्टिक के डिब्बे बनाने की एक छोटी फैक्ट्री लगा ली थी जिसके लिए बैंक से ऋण ले लिया था | इस प्रकार दोनों मित्रों के परिवार शांति व सुखपूर्वक रहने लगे थे | उन दोनों की दोस्ती लोगों के लिए मिसाल बन गयी थी |
भूरे व मुन्ना की जान पहिचान विचित्र परिस्थिति में हुई थी | हुआ यह था कि जब पहलीबार मुन्ना काम की खोज में कसबे में आया तो नयी जगह को देख भौचक था | उसकी कोई न तो उस कसबे में जान पहिचान थी और न कोई रिश्तेदारी | वह तो हालातों का मारा घरवालों से लड़ भिड़कर चला आया था |
वह बारहवीं तक अपने गांव के पास के कालेज में पढ़ा था और पढ़ने के मामले में वह काफी होशियार भी मना जाता था , परन्तु आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण घरवाले उसकी आगे की पढाई जारी नहीं रखवा पाए थे तथा छोटी उम्र में ही उसकी शादी करके वे अपना फर्ज पूरा करना मान बैठे थे | शादी शुदा होने पर अपने साथ बीबी बच्चों की भी जरूरतें पूरी करने में आर्थिक तंगी आढे आने लगी थी | घर की मारी हालत ऐसी न थी कि उसे उसके निजी खर्चों के लिए कुछ मिल पाता , घरवालों से झगडा होने का मुख्य कारण भी यही था |
घर से चलते समय उसने सोचा था कि कोई ना कोई काम मिल ही जायेगा और उसकी दिनचर्या चल निकलेगी | एक दो दिन यहीं रेलवे स्टेसन पर रात गुजार चुका था पर लाख कोशिश के बाबजूद उसे कोई काम नहीं मिल पाया था | अब उसकी अंटी भी ढीली होने लगी थी | काम की तलाश में वह ऐसे ही घूम रहा था कि उसने देखा सड़क पर एक आदमी को कई मुस्टंडे पीट रहे हैं | पिटनेवाला बेचारा स्वयं को उनसे अपनी रक्षा कर पाने में असमर्थ पा रहा था परन्तु आस पास उपस्थित भीड़ और आने जाने वाला कोई भी व्यक्ति उसकी सहायता के लिए आगे नहीं आ रहा था | मुन्ना ने जब यह देखा तो अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार उस व्यक्ति के बचाव में कूद पड़ा | थोड़ी देर की हाथापाई के बाद उस को वह बचाने में सफल हो गया | मुस्तंडे मुन्ना के आगे बेबस होकर भूरे को छोड़ कर भाग खड़े हुए थे | किसी एकदम अनजान व्यक्ति के द्वारा अपनी जान जोखिम में डालकर उसके बचाव करने से भूरा बहुत प्रभावित हुआ था और आभार व्यक्त करते हुए उसके बारे में जानकारी की थी | अंत में यह पता लगने पर कि उसकी जान पहिचान का यहाँ कोई नहीं है और वह काम की तलास में कसबे में आया है , उसे अपने घर लेगया था |
वह दिन है कि आज दोनों की दोस्ती गहराती गयी है | यहाँ तक कि अब तो उनके परिवार एक दूसरे से इतने घुल मिल गये है कि परिवार में खुशी या गम का कोई भी मौका हो मुन्ना व भूरे साथ साथ ही दिखाई देते हैं | उनकी दोस्ती की कसबे में मिसाल दी जाने लगी है | लोग यह जानने में भूल कर जाते है कि मुन्ना मुन्ना सिंह है या मुन्ने खान और भूरे जिसका पूरा नाम भूरे खान है , उसको भूरे सिंह समझ बैठते हैं |
मुन्ना को याद है कि जब वह भूरे के साथ उसके घर पहुंचा था तो घर के लोगों का पहनावा खासकर औरतों के बुरखे को देखकर वह जान पाया था कि भूरे हिंदू नहीं मुसलमान है और अनजाने में ही उसने मुसलमान की सहायता की है | पर उसका दिल यह मानने को तैयार नहीं था कि ऐसा करके उसने कोई गलत काम किया है | उसे लग रहा था कि उसमें और भूरे में कोई फर्क नही है बल्कि भूरे भी उसकी ही तरह हाड मांस का बना इंसान है | फिर भूरे की आत्मीयता और सहायता करने के एवज में दिखाई गयी सज्जनता उसे अपने निर्णय को उचित मानने के लिए प्रेरित कर रही थी | उसके अपने गाँव में कोई मुसलमान नहीं था और उसने दूसरों से मुसलमानों के बारे में जितना सुना था वह उसके दिमाग में था | परन्तु भूरा और उसके घरवालों का अच्छा व्यवहार उसकी पुरानी धारणा को गलत सिद्ध कर रहा था | उसका कसबे में अन्य कहीं ठिकाना भी नहीं था इसलिए मन में कुछ दुविधा की स्थिति होने के बाबजूद वह भूरे के उसी के घर रुकने के आग्रह को अस्वीकार नहीं कर पाया था |
देखो मुन्ना ये तुम्हारी भाभी जान हैं , वह मेरी अम्मी जान और बैठक में बैठे अब्बा जान हैं ......... भूरे ने जब अपनी पत्नी , मम्मी और पिताजी से उसका परिचय कराया था तो उसके हाथ अनायास ही अभिवादन के लिए जुड गये थे | भाभी जान ने चाय का प्याला पकडाते हुए उसके घर परिवार के विषय में पूछने पर वह कोई झूट नहीं बोल पाया था | और देखते ही देखते दो चार दिन में ही भूरे की माँ उसे अपनी अम्मी जान सी ही लगने लगी थी | भूरे ने उसे अपनी जान पहिचान के एक कारखाने में काम दिलवा दिया था जिसे वह मेहनत से करने लगा था | दो चार महीने बाद ही कुछ कमाई करके जब वह अपने गाँव गया तो अपनी पत्नी व बच्चों के साथ ही लौटकर आया था | भूरे ने गाँव जाने से पहले ही उसे पडौस की एक कलौनी में किराये पर मकान दिलवा दिया था जिसमें उसका परिवार रहने लगा था |
मुन्ना को याद है कि जब भूरा के संपर्क में आने के बाद पहलीबार वह अपने गाँव गया और अपने परिवार वालों और जान पहिचान वालों को अपने दोस्त भूरा के मुस्लिम होने के बारे में बताया तो किसी की भी पहली प्रतिक्रिया अच्छी नहीं थी | हिंदू समाज में मुसलमानों के सम्बन्ध कई प्रकार के पूर्वाग्रह हैं जो सच्ची झूंटी सुनी सुनाई बातों पर आधारित हैं | यद्यपि यह सच नहीं है क्योंकि अच्छे और बुरे लोग हर समाज में होते हैं अतः पूरे समाज के लिए एक जैसी अवधारणा बना लेना अक्सर गलत ही होता है | मुसलमानों के प्रति हिंदुओं की ऐसी सोच के पीछे कुछ ऐतिहासिक घटनाओं का भी हाथ है पर वे उन विदेशी आक्रांताओं के विषय में ही सही है जो देश में लूट पाट करने के उद्देश्य से ही आये थे | आज के अधिकांश मुस्लमान इस देश की मिटटी से पैदा हुए हैं और इस देश की ही संतान हैं और अधिकांश के पूर्वज भी हिन्दुस्तानी ही थे | जो विदेशी मूल के भी हैं वे भी शदियों से इसी देश में रहते रहते पूरी तरह हिन्दुस्तानी होचुके है | अतः अब यह देश जितना हिंदुओं का है उतना ही मुसलमानों का भी है | मुन्ना भूरे व उसके परिवार वालों के अच्छे व्यवहार को देख चुका था और उससे पूरी तरह प्रभावित था अतः जब कोई भी उनके प्रति शंका जाहिर करता तो मुन्ना उसे उनके वर्ताव के विषय में बताकर और उनकी अच्छाइयां गिनाकर उन्हें निरुत्तर कर देता था |
भूरे के पांच बच्चे थे जिनमें उम्र का बहुत कम अंतर था | बल्कि हर एक सवा साल के बाद भूरे की पत्नी माँ बन जाती थी | जल्दी जल्दी बच्चे होने और घर कि मारी हालत ठीक न होने के कारण भूरे की पत्नी जवानी में ही बूढी सी दिखाई देने लगी थी | अपनी पत्नी के माध्यम से जब एक बार उसे यह मालूम हुआ कि भाभी जान तो उम्र में उसकी पत्नी से भी एक दो साल छोटी हैं तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ | उसने अधिक बच्चे होने और जल्दी जल्दी बच्चे होने से उत्पन्न बुरे परिणामों के विषय में भूरे से बात की और यह मानते हुए कि भूरे शायद पढ़ा लिखा नहीं है उसने इस स्थिति को शिक्षा के अभाव से जोड़ते हुए उसे समझाया | परन्तु जब उसने जाना कि भूरे भी मैट्रिक तक पढ़ा है तो उसने उससे इस विषय में खुलकर बात की | अपनी पत्नी से कहकर भाभी जान को भी जल्दी जल्दी और अधिक बच्चे होने की हानियों के बारे में समझाया | किसी तरह भूरे व उसकी पत्नी तो इस बात को मान गये कि परिवार का छोटा होना और बच्चों में तीन चार साल का अंतर होना अच्छी बात है , परन्तु भूरे की अम्मी यह मानने को तैयार न थी | उनका कहना था कि इस्लाम में बच्चों को रोकना नाजायज है और यह कि बच्चे तो अल्ला की नेमत होते हैं और जो अल्ला के विधान में दखल देता है वह दोजख का भागी होता है ...... आदि आदि |
एक दिन अवसर देखकर मुन्ना ने भूरे से इस बिंदु पर फिर बात की और कहा कि वह यह बताए कि किस धार्मिक ग्रन्थ में ऐसा लिखा है कि परिवार नियोजन इस्लाम के खिलाफ है | उसने यह भी कहा कि उसने इसी उद्देश्य से कुरान पूरी पढकर देखी है उसमें ऐसा कोई उल्लेख उसे नहीं मिला है | भूरे खुद इतना पढ़ा लिखा था उसने भी कुरान को अच्छी तरह पढकर देखा परन्तु ऐसी कोई बात कुरआन में लिखी नहीं मिली | अब तो वह इस बात से आश्वस्त होगया कि उसके समाज में कई बातें केवल अन्धविश्वास के रूम में प्रचलितN हो गयीं हैं जबकि धार्मिक उपदेशों में ऐसा कहीं नहीं है | उसने अपने अब्बा जान को विश्वास में लेकर अम्मी जान को भी समझा लिया और सरकारी अस्पताल जाकर पत्नी का परिवार नियोजन का आपरेशन करा लिया | फिर तो वह परिवार नियोजन के लाभों से अन्य लोगों को भी समझाने लगा और इसके बाद उसने कई मिलने वालों मुसलमान भाइयों को समझाकर आपरेशन के लिए राजी किया |
मुन्ना व भूरे दोनों प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति बन चुके थे और सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगे थे | दोनों ने मिलकर प्लास्टिक के डिब्बे बनाने की एक छोटी फैक्ट्री लगा ली थी जिसके लिए बैंक से ऋण ले लिया था | इस प्रकार दोनों मित्रों के परिवार शांति व सुखपूर्वक रहने लगे थे | उन दोनों की दोस्ती लोगों के लिए मिसाल बन गयी थी |