Saturday, November 26, 2011

गजल

असली धर्म
सबको हो स्वीकार धर्म जो आज वही अपनाओ
ऐसा धर्म बनाओ मिल जुल ऐसा धर्म बनाओ

पंडित करता  अपनी पूजा पढे नमाज नमाज़ी
सभी उसी मालिक के वंदे क्या पंडित क्या काजी
सबके दाता से शुभ आशिष दोनों ही पाजाओ

नियम धरम सब मानव निर्मित उसके लिए बने हैं
अपने अपने अलग नियम ले क्यों इस तरह तने हैं
समझा बुझा सभी रूठों को एक साथ लेआओ

पूजा पद्धति अलग अलग है  रहती है रहने दो
अल्ला राम मसीह कहे कोई कहता है कहने दो
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में सांझी ज्योति जलाओ

होली तीज दिवाली जिसकी उसे मना लेने दो
ईद मुहर्रम  क्रिसमसड़े यदि आता है आने दो
अपनी खीर खिलाकर उसको उसकी सिमई खाओ

Monday, March 21, 2011

सुप्रभात

सुप्रभात
भोर की हलचल उनींदी चित्त को भाति रही
विगत की स्म्रति मधुरिमा खीचकर लाती रही

अरुणोदय की लालिमा का दृश्य अद्भुत दिख रहा
चिड़ियों के कलरव की प्रतिध्वनि अनवरत आती रही

इन्द्र धनुषी छटा प्रस्तुत कर गया नभ में प्रभात
नवदंपति को दे निराशा निशा भी जाती रही

भानुरथ पथ पर चला तो कुमुदिनी भी खिल गई
आहट मन को प्रिय मिलन की रह रह सहलाती रही

छिटकते से ऑस के कण अश्रुवत झड़ने लगे
कक्ष शयनित कामिनी तब अनुचित कहलाती रही

होली गीत

होली की पूर्वसंध्या पर प्रस्तुत है स्वरचित ये होली गीत
गोरी पै मस्ती होली कीविनाश का आमंत्रण
भूकंप जनित सुनामी
आई लेकर विनाश
उगते सूरज के देश जापान में
बिन बुलाये मेहमान की तरह
अत्यधिक विकास बन गया जनक
अत्यधिक विनाश का
भूकंप ने डहा दिये परमाणु रियक्टर
परमाणु विद्युत रूपी वरदान
बन गया अभिशाप
उगते सूरज के देश जापान में
क्षतिग्रस्त रियक्टरों से निकलता विकरण
विनाश के आगमन का संकेत
तो क्या मानव स्वयं ही खोद रहा है
विनाश का भयावह गर्त
जिसमें गिरकर समाप्त तो नहीं होने वाला
मानव सभ्यता का अस्तित्व
पहाड़ की ढलान से गिरते चौपहिये की तरह
क्या मनुष्य चल पड़ा है विनाश की डगर पर
परमाणु ऊर्जा रूपी भस्मासुर कर न दे भस्म
जीती जागती मानव सभ्यता को
परमाणु बम परमाणु रियक्टर कहीं नृत्य तो नहीं
भस्मासुर का
सिर पर आने को तो नहीं हाथ उसका
विनाश का आमंत्रण
, होली की
सुधि भूली भीगी चोली की ,होली की

ये सब हुरिहारे मस्ती में
ये दस्तक दे रहे बस्ती में
आगई बहार रंगोली की , होली की

कोई रंग गुलाल लगाय रह्यौ
कोई भरि गुब्बारे लाय रह्यौ
लेली सुधि भौजी भोली की , होली की


कोई लड्डू गुजिया खाय रह्यौ
कोई घोटिके भंग चढाय रह्यौ
जिय भौजाई मुंह बोली की , होली की

ब्रिज की होली के रंग न्यारे
कभी बरसाने भी जा प्यारे
लठमार देख आ होली की ,होली की

योगेश्वर कृष्ण का ध्यान करो
वृज के रसिया का मान करो
ब्रिज गोपी बंसी बोली की , होली की
विनाश का आमंत्रण
भूकंप जनित सुनामी
आई लेकर विनाश
उगते सूरज के देश जापान में
बिन बुलाये मेहमान की तरह
अत्यधिक विकास बन गया जनक
अत्यधिक विनाश का
भूकंप ने डहा दिये परमाणु रियक्टर
परमाणु विद्युत रूपी वरदान
बन गया अभिशाप
उगते सूरज के देश जापान में
क्षतिग्रस्त रियक्टरों से निकलता विकरण
विनाश के आगमन का संकेत
तो क्या मानव स्वयं ही खोद रहा है
विनाश का भयावह गर्त
जिसमें गिरकर समाप्त तो नहीं होने वाला
मानव सभ्यता का अस्तित्व
पहाड़ की ढलान से गिरते चौपहिये की तरह
क्या मनुष्य चल पड़ा है विनाश की डगर पर
परमाणु ऊर्जा रूपी भस्मासुर कर न दे भस्म
जीती जागती मानव सभ्यता को
परमाणु बम परमाणु रियक्टर कहीं नृत्य तो नहीं
भस्मासुर का
सिर पर आने को तो नहीं हाथ उसका
विनाश का आमंत्रण

जापानी संकट

विनाश का आमंत्रण
भूकंप जनित सुनामी
आई लेकर विनाश
उगते सूरज के देश जापान में
बिन बुलाये मेहमान की तरह
अत्यधिक विकास बन गया जनक
अत्यधिक विनाश का
भूकंप ने डहा दिये परमाणु रियक्टर
परमाणु विद्युत रूपी वरदान
बन गया अभिशाप
उगते सूरज के देश जापान में
क्षतिग्रस्त रियक्टरों से निकलता विकरण
विनाश के आगमन का संकेत
तो क्या मानव स्वयं ही खोद रहा है
विनाश का भयावह गर्त
जिसमें गिरकर समाप्त तो नहीं होने वाला
मानव सभ्यता का अस्तित्व
पहाड़ की ढलान से गिरते चौपहिये की तरह
क्या मनुष्य चल पड़ा है विनाश की डगर पर
परमाणु ऊर्जा रूपी भस्मासुर कर न दे भस्म
जीती जागती मानव सभ्यता को
परमाणु बम परमाणु रियक्टर कहीं नृत्य तो नहीं
भस्मासुर का
सिर पर आने को तो नहीं हाथ उसका
विनाश का आमंत्रण