23 दिसंबर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्म दिवस है । वे अपनी ईमानदारी , स्पष्टवादिता , दृढ़ता , और ग्रामीण भारत के हितों के कट्टर प्रवक्ता के रूप में जाने जाते थे । मध्य जातियों के लोगों को राजनीतिक में जागरूक व सक्रिय बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है । उनके समर्थक रहे व उनकी पार्टी से निकले नेताओं की लम्बी फेहरिस्त है जो आज विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रभावी नेता हैं । आगरा कालेज से पोस्ट ग्रेजुएट व ला ग्रेजुएट चौधरी चरण सिंह 1937 में प्रोविंसिएल असेंबली के लिए मेरठ की छपरौली सीट से चुने गए । 1938 में उन्होंने किसानों के हित के लिए एग्रीकल्चर प्रोडक्ट प्राइस बिल प्रस्तुत किया जो यूपी में लागू होने के बाद देश के कई राज्यों ने भी लागू किया था । गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और जेलयात्रा भी करनी पड़ी । स्वतन्त्र भारत में 1950 में यूपी में गोविन्द वल्लभ पंत की कांग्रेस सरकार में राजस्व मंत्री रहते हुए उन्होंने क्रन्तिकारी भूमि सुधार क़ानून बनाकर उसे लागू कराया जो देश में इस तरह का पहला कानून था ।
राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार उस समय प्रसिद्धि पायी जब 1959 के नागपुर अधिवेशन में उन्होंने कांग्रेस के सर्वेसर्वा और देश के प्रधानमंत्री नेहरू जी के सहकारिता खेती के प्रस्ताव का दृढ़ता से विरोध किया क्योंकि वे जानते थे कि किसानों का अपनी जमीन से भावनात्मक लगाव होता है और सहकारिता खेती भारतीय किसानों के लिए उपयुक्त नहीं थी । इस विरोध का खामियाजा उनको कांग्रेस पार्टी में अपना महत्व कम होने के रूप में भुगतना पड़ा परंतु वे अपने सिद्धान्तों पर अडिग रहे । 1967 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर भारतीय क्रांति दल नामसे अपनी अलग पार्टी बना ली । इसके बाद वे दो बार उ0प्र0 के मुख्यमंत्री रहे । मुख्यमंत्री रहते हुए अल्पकाल में ही उन्होंने प्रशासनिक दृढ़ता और भ्रष्टाचार विरोधी की जो छवि बनायी उसे आज भी लोग कहानी किस्सों की तरह याद करते है । वे कांग्रेस के विरोध में विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास में अनवरत लगे रहे और इसी कड़ी में सोसलिस्ट पार्टी के मधु लिमये, जार्ज फर्नाडीज आदि कई नेताओं को शामिल कर के लोक दल नामक पार्टी बनायीं । स्वतंत्रता आंदोलन में जेलयात्रा के बाद उन्हें इंदिरा गांधी के आपातकाल में पुनः जेल जाना पड़ा क्योंकि इंदिरागांधी का गहन विरोध उनके कट्टर समर्थक राज नारायन द्वारा ही किया गया था । विपक्षी एकता की उनकी मुहिम जनता पार्टी के बनने के साथ अपनी चरम परिणीति पर पहुंची ।
1977 के लोक सभा चुनाव में जनता पार्टी को भारी बहुमत मिला जिसमें उनकी पार्टी लोकदल का घटक सर्वाधिक प्रभावी था । जनता पार्टी ने लोकदल के ही चुनाव चिन्ह हलधर किसान को अपनाकर उस पर चुनाव लड़ा था । पर उनकी अपनी नीतियों को कार्यान्वित करने के प्रयासों को उस समय गहरा धक्का लगा जब अपने समर्थकों का बहुमत होने के बाबजूद जयप्रकाश नारायण के प्रभाव के कारण मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री चुना गया । फिर भी उस समय प्रांतीय सरकारों में यूपी , बिहार , हरियाणा , राजस्थान , दिल्ली , हिमाचल और उड़ीसा में उन्हीं की पार्टी से आये उनके समर्थक मुख्यमंत्री बने । चौधरी चरण सिंह जाट , यादव , कुर्मी , गूजर आदि जातियों के साथ साथ भूमिहार और त्यागियों में तो लोकप्रिय नेता थे ही बल्कि मुसलमानों का भी उन्हें व्यापक समर्थन प्राप्त था । इस प्रकार मध्य जातियों को राजनीतिक पटल पर स्थापित करने और राजनीती की मुख्यधारा में लाने का श्रेय उन्ही को जाता है ।
जनता पार्टी के शासनकाल में वे गृहमंत्री , वित्तमंत्री व उप प्रधानमंत्री रहे । गृहमंत्री के रूप में उनकी तुलना सरदार पटेल से की जाने लगी थी । जनता पार्टी में विघटन के बाद वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधान मंत्री बने । कांग्रेस पार्टी के समर्थन से प्रधानमंत्री बनने के उनके इस निर्णय की कुछ लोग आलोचना भी करते है परंतु वास्तविकता यह है कि कांग्रेस पार्टी द्वारा कुछ दिनों बाद ही अपने समर्थन के बदले उसके नेताओं के विरुद्ध कोर्ट में चल रहे आपातकाल के केसों को वापस करने की शर्त लगाई उन्होंने प्रधानमंत्री के पद को ठुकराकर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और अपने सिद्धांतों से न झुकने का मार्ग अपनाया ।
जनता पार्टी के विघटन के बाद उ0प्र0 में उन्होंने अपने पुत्र अजीत सिंह को न चुनकर जमीन से जुड़े नेता मुलायम सिंह यादव को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना था । परंतु उनके पुत्र की राजनीतिक अपरिपक्वता और वीपी सिंह की कुटिल चाल के कारण मुलायम सिंह व अजीत सिंह एक नहीं रह सके और उनका बनाया लोकदल परिवार अनेक टुकड़ों में विभक्त हो गया । उनके इस सपने के टूटने का ही परिणाम है कि अब तक कोई किसान हितचिंतक नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुँच पाया है । बिहार के कर्पूरी ठाकुर , नीतीश कुमार , लालू यादव और शरद यादव , उ0प्र0 के राम नरेश यादव , राज नारायण , मुलायम सिंह यादव , के सी त्यागी , रशीद मसूद , हरियाणा के चैधरी देवी लाल , राजस्थान के कुम्भाराम आर्य , उड़ीसा के बीजू पटनायक आदि नेता उन्हीं की पार्टी से निकले हुए नेता हैं । ग्रामीण अर्थशास्त्र के गहन चिंतक व मर्मज्ञ थे इस विषय पर उनके द्वारा कई पुस्तकें भी लिखी गयी थीं ।
राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार उस समय प्रसिद्धि पायी जब 1959 के नागपुर अधिवेशन में उन्होंने कांग्रेस के सर्वेसर्वा और देश के प्रधानमंत्री नेहरू जी के सहकारिता खेती के प्रस्ताव का दृढ़ता से विरोध किया क्योंकि वे जानते थे कि किसानों का अपनी जमीन से भावनात्मक लगाव होता है और सहकारिता खेती भारतीय किसानों के लिए उपयुक्त नहीं थी । इस विरोध का खामियाजा उनको कांग्रेस पार्टी में अपना महत्व कम होने के रूप में भुगतना पड़ा परंतु वे अपने सिद्धान्तों पर अडिग रहे । 1967 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर भारतीय क्रांति दल नामसे अपनी अलग पार्टी बना ली । इसके बाद वे दो बार उ0प्र0 के मुख्यमंत्री रहे । मुख्यमंत्री रहते हुए अल्पकाल में ही उन्होंने प्रशासनिक दृढ़ता और भ्रष्टाचार विरोधी की जो छवि बनायी उसे आज भी लोग कहानी किस्सों की तरह याद करते है । वे कांग्रेस के विरोध में विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास में अनवरत लगे रहे और इसी कड़ी में सोसलिस्ट पार्टी के मधु लिमये, जार्ज फर्नाडीज आदि कई नेताओं को शामिल कर के लोक दल नामक पार्टी बनायीं । स्वतंत्रता आंदोलन में जेलयात्रा के बाद उन्हें इंदिरा गांधी के आपातकाल में पुनः जेल जाना पड़ा क्योंकि इंदिरागांधी का गहन विरोध उनके कट्टर समर्थक राज नारायन द्वारा ही किया गया था । विपक्षी एकता की उनकी मुहिम जनता पार्टी के बनने के साथ अपनी चरम परिणीति पर पहुंची ।
1977 के लोक सभा चुनाव में जनता पार्टी को भारी बहुमत मिला जिसमें उनकी पार्टी लोकदल का घटक सर्वाधिक प्रभावी था । जनता पार्टी ने लोकदल के ही चुनाव चिन्ह हलधर किसान को अपनाकर उस पर चुनाव लड़ा था । पर उनकी अपनी नीतियों को कार्यान्वित करने के प्रयासों को उस समय गहरा धक्का लगा जब अपने समर्थकों का बहुमत होने के बाबजूद जयप्रकाश नारायण के प्रभाव के कारण मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री चुना गया । फिर भी उस समय प्रांतीय सरकारों में यूपी , बिहार , हरियाणा , राजस्थान , दिल्ली , हिमाचल और उड़ीसा में उन्हीं की पार्टी से आये उनके समर्थक मुख्यमंत्री बने । चौधरी चरण सिंह जाट , यादव , कुर्मी , गूजर आदि जातियों के साथ साथ भूमिहार और त्यागियों में तो लोकप्रिय नेता थे ही बल्कि मुसलमानों का भी उन्हें व्यापक समर्थन प्राप्त था । इस प्रकार मध्य जातियों को राजनीतिक पटल पर स्थापित करने और राजनीती की मुख्यधारा में लाने का श्रेय उन्ही को जाता है ।
जनता पार्टी के शासनकाल में वे गृहमंत्री , वित्तमंत्री व उप प्रधानमंत्री रहे । गृहमंत्री के रूप में उनकी तुलना सरदार पटेल से की जाने लगी थी । जनता पार्टी में विघटन के बाद वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधान मंत्री बने । कांग्रेस पार्टी के समर्थन से प्रधानमंत्री बनने के उनके इस निर्णय की कुछ लोग आलोचना भी करते है परंतु वास्तविकता यह है कि कांग्रेस पार्टी द्वारा कुछ दिनों बाद ही अपने समर्थन के बदले उसके नेताओं के विरुद्ध कोर्ट में चल रहे आपातकाल के केसों को वापस करने की शर्त लगाई उन्होंने प्रधानमंत्री के पद को ठुकराकर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और अपने सिद्धांतों से न झुकने का मार्ग अपनाया ।
जनता पार्टी के विघटन के बाद उ0प्र0 में उन्होंने अपने पुत्र अजीत सिंह को न चुनकर जमीन से जुड़े नेता मुलायम सिंह यादव को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना था । परंतु उनके पुत्र की राजनीतिक अपरिपक्वता और वीपी सिंह की कुटिल चाल के कारण मुलायम सिंह व अजीत सिंह एक नहीं रह सके और उनका बनाया लोकदल परिवार अनेक टुकड़ों में विभक्त हो गया । उनके इस सपने के टूटने का ही परिणाम है कि अब तक कोई किसान हितचिंतक नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुँच पाया है । बिहार के कर्पूरी ठाकुर , नीतीश कुमार , लालू यादव और शरद यादव , उ0प्र0 के राम नरेश यादव , राज नारायण , मुलायम सिंह यादव , के सी त्यागी , रशीद मसूद , हरियाणा के चैधरी देवी लाल , राजस्थान के कुम्भाराम आर्य , उड़ीसा के बीजू पटनायक आदि नेता उन्हीं की पार्टी से निकले हुए नेता हैं । ग्रामीण अर्थशास्त्र के गहन चिंतक व मर्मज्ञ थे इस विषय पर उनके द्वारा कई पुस्तकें भी लिखी गयी थीं ।
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