कुत्ते और आदमी
प्रातः भ्रमण पर
निकले कवि को दिखे
सड़क पर घूमते चार कुत्ते
साथ साथ चलते इतराते
इठलाते
भाई चारे का सबक सा
सिखलाते
उसे लगा जैसे वे दे
रहे हों चुनौती
हमारे सभ्य समाज को
हमारे वर्तमान को
हमारे आज को
जैसे कह रहे हों
हम कुत्तों को तुम
मनुष्यों ने बहुत बदनाम किया है
अपनी कमी छुपाने को
क्या क्या नाम नहीं दिया है
लड़ते खुद हो और कहते
हो
कुत्तों की तरह लड़ते
हो
हमें बदनाम करने के
नये नये जुमले गढ़ते हो
राजनीति में व्यापार
में , समाज में परिवार में
मेलों में , रेलों
में यहाँ तक कि जेलों में
तुम कहाँ नहीं लड़ते
हो
पर अपना दोष दूसरों
पर मढ़ते हो
अरे तुम तो संसद में
भी हमारी तरह लड़ते हो
कुर्सी माइक पेपरवेट
फेंक फेंक कर झगड़ते हो
भाई से भाई , सास से
बहु , ससुर से जमाई
मालिक से नौकर ,
निर्लज्ज होकर
बताओ कहाँ नहीं
भिड़ते हो
हमें झगड़ालू बताते
हो हमसे छिड़ते हो
अब तो लगता है हमें यू टर्न लेना पड़ेगा
“ आदमियों की तरह
लड़ते हो “ यह जुमला
अपने भाई कुत्तों से
कहना पड़ेगा
तुम तो हमारी
प्राकृतिक क्रियाओं को भी गलत नाम देते हो
“ कुत्ते हो टांग
उठाकर मूतते हो “ यह कहते हो
तो तुम भी तो
दीवारों पर थूकते हो
सीडियां हों या फर्श
पीक मरने से नहीं चूकते हो
सडक का किनारा हो या
दीवारों का पिछवाडा
बस अड्डा रेलवे
स्टेसन सबका कर देते हो कबाड़ा
अरे तुमने तो संतत्व
को भी कर दिया है लांछित
कई आशाराम रामपाल
कोर्ट में हैं वांछित
बात आत्मा परमात्मा
की करते हो
पर आश्रमों में हद
दर्जे की ऐयाशी करते हो
तुम्हें समझाने के
लिए शर्म का ताज पहनना पड़ता है
आमिर से लेकर मोदी
तक को सामने आना पड़ता है
अरे तुम कब के सफाई
पसंद हो
अंतर केवल यह है कि
हम खुले में हैं और
तुम कमरे में बंद हो
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