बापू यही चाहते थे तुम एइसा धर्म बनाओ
सबको हो स्वीकार धर्म जो आज वही अपनाओ
पंडित करले अपनी पूजा पढ़े नमाज नमाजी
सभी उसी मालिक के बन्दे क्या पंडित क्या काजी
अपने कर्मों से शुभ आशीष दोनों ही पजाओ
पूजा पद्धति अलग रहे तो रहती है रहने दो
अल्ला राम मसीह कहे कोई कहता है कहने दो
मन्दिर मस्जिद गुरद्वारे में साझी ज्योति जलाओ
होली तीज दिवाली जिसकी उसे मना लेने दो
ईद मुबारक किस्मस दे यदि आता है आने दो
अपनी खीर खिलाकर उसको उसकी सिमई खाओ
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