Thursday, December 24, 2015

भाई चारा

भाई चारा
भूरे व मुन्ना की  जान पहिचान  विचित्र परिस्थिति में हुई थी  | हुआ यह था कि  जब पहलीबार मुन्ना काम  की खोज में कसबे में आया तो नयी जगह को देख भौचक था | उसकी कोई न तो उस कसबे में जान पहिचान  थी और न कोई रिश्तेदारी | वह तो हालातों का मारा घरवालों से लड़ भिड़कर चला आया था |
                              वह बारहवीं तक अपने गांव के पास के कालेज में पढ़ा था और पढ़ने के मामले में वह काफी होशियार भी मना जाता था , परन्तु आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण घरवाले उसकी आगे की पढाई जारी  नहीं रखवा पाए थे तथा छोटी उम्र में ही उसकी शादी करके वे अपना फर्ज पूरा करना मान बैठे थे | शादी शुदा होने पर अपने साथ बीबी बच्चों की भी जरूरतें पूरी करने में आर्थिक तंगी आढे  आने लगी थी | घर की  मारी हालत ऐसी न थी कि  उसे उसके निजी खर्चों के लिए कुछ मिल पाता , घरवालों से झगडा होने का मुख्य  कारण भी  यही था |
                                   घर से चलते समय उसने  सोचा था कि कोई ना कोई काम  मिल ही जायेगा और उसकी दिनचर्या चल निकलेगी | एक दो दिन  यहीं रेलवे स्टेसन पर रात गुजार चुका था पर लाख कोशिश के बाबजूद उसे कोई काम नहीं मिल पाया था |  अब उसकी अंटी भी ढीली होने लगी थी | काम की  तलाश में वह ऐसे  ही घूम  रहा था कि उसने देखा  सड़क पर एक आदमी को कई मुस्टंडे पीट रहे हैं  | पिटनेवाला   बेचारा स्वयं को  उनसे अपनी रक्षा कर पाने में असमर्थ पा  रहा था परन्तु आस पास उपस्थित भीड़ और आने जाने वाला कोई भी व्यक्ति  उसकी सहायता के लिए आगे  नहीं आ  रहा था | मुन्ना ने जब यह देखा तो अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार उस व्यक्ति के बचाव में कूद पड़ा | थोड़ी देर की हाथापाई  के बाद उस को वह बचाने में  सफल हो गया | मुस्तंडे मुन्ना के आगे बेबस होकर भूरे को छोड़  कर भाग खड़े हुए  थे | किसी एकदम अनजान व्यक्ति के द्वारा अपनी जान जोखिम में डालकर उसके बचाव करने से भूरा  बहुत प्रभावित हुआ था  और आभार व्यक्त करते हुए उसके बारे में जानकारी की थी  | अंत में यह पता लगने पर कि  उसकी  जान पहिचान का यहाँ कोई   नहीं है और वह काम की  तलास में कसबे में  आया है , उसे अपने घर लेगया था |
                            वह दिन है कि आज दोनों की दोस्ती गहराती गयी है | यहाँ तक कि  अब तो उनके परिवार एक दूसरे से इतने घुल मिल गये है कि परिवार में खुशी या गम का कोई भी मौका हो मुन्ना व भूरे साथ साथ ही दिखाई देते हैं | उनकी दोस्ती की कसबे में मिसाल दी जाने लगी है | लोग यह जानने में भूल कर जाते है कि मुन्ना मुन्ना सिंह है या मुन्ने खान और भूरे जिसका पूरा नाम भूरे खान है , उसको भूरे सिंह समझ बैठते हैं |
                                                  मुन्ना को याद  है कि जब वह भूरे के साथ उसके घर पहुंचा था तो घर के लोगों का पहनावा खासकर औरतों के बुरखे  को देखकर वह जान पाया  था कि भूरे हिंदू नहीं मुसलमान है और अनजाने में ही उसने मुसलमान की सहायता की है | पर उसका दिल यह मानने को तैयार नहीं था कि  ऐसा करके उसने कोई गलत काम किया है | उसे लग रहा था कि उसमें और भूरे में कोई फर्क नही  है बल्कि  भूरे भी उसकी ही तरह हाड  मांस का बना इंसान है | फिर भूरे की आत्मीयता और सहायता  करने के एवज में दिखाई गयी सज्जनता  उसे अपने निर्णय को उचित मानने के लिए प्रेरित कर रही थी | उसके अपने गाँव में कोई मुसलमान  नहीं था और उसने दूसरों से मुसलमानों के बारे में जितना सुना था वह उसके दिमाग में था | परन्तु भूरा और उसके घरवालों का अच्छा व्यवहार उसकी पुरानी  धारणा को गलत सिद्ध  कर रहा था | उसका कसबे में अन्य  कहीं ठिकाना भी नहीं था इसलिए मन में कुछ दुविधा की स्थिति होने के बाबजूद वह भूरे के उसी  के घर रुकने के आग्रह को अस्वीकार नहीं कर पाया था |
                          देखो मुन्ना ये तुम्हारी भाभी जान हैं , वह मेरी अम्मी जान और बैठक में बैठे अब्बा जान हैं ......... भूरे ने जब अपनी पत्नी , मम्मी और पिताजी से उसका परिचय कराया था तो उसके हाथ अनायास ही अभिवादन के लिए जुड  गये थे | भाभी जान ने चाय का प्याला पकडाते  हुए उसके घर परिवार के विषय में पूछने पर वह कोई झूट नहीं बोल पाया था | और देखते ही देखते दो चार दिन में ही भूरे की माँ उसे अपनी अम्मी जान सी ही लगने लगी थी | भूरे ने उसे अपनी जान पहिचान के एक कारखाने में काम दिलवा दिया था जिसे वह मेहनत  से करने लगा था | दो चार महीने बाद ही कुछ कमाई करके जब वह अपने गाँव गया तो अपनी पत्नी व बच्चों के साथ ही लौटकर आया था | भूरे ने गाँव जाने से पहले ही उसे पडौस की एक कलौनी में किराये पर मकान दिलवा दिया था जिसमें उसका परिवार रहने लगा था |
                                     मुन्ना को याद  है कि जब भूरा के संपर्क में आने के बाद पहलीबार वह अपने गाँव गया और अपने परिवार वालों और जान पहिचान वालों को अपने दोस्त भूरा के मुस्लिम होने के बारे में बताया तो किसी की  भी पहली प्रतिक्रिया अच्छी नहीं थी | हिंदू समाज में मुसलमानों के सम्बन्ध कई प्रकार के पूर्वाग्रह हैं जो सच्ची झूंटी सुनी सुनाई बातों पर आधारित हैं | यद्यपि यह सच  नहीं है क्योंकि अच्छे और  बुरे लोग हर समाज में होते हैं अतः पूरे  समाज के लिए एक जैसी अवधारणा बना लेना अक्सर गलत ही होता है | मुसलमानों के प्रति हिंदुओं की ऐसी सोच के पीछे कुछ ऐतिहासिक घटनाओं का भी हाथ है पर वे उन विदेशी आक्रांताओं के विषय में ही सही है जो  देश में लूट पाट  करने के उद्देश्य से ही आये  थे | आज के अधिकांश मुस्लमान इस देश की मिटटी से पैदा हुए हैं और इस देश की  ही संतान हैं और अधिकांश के पूर्वज भी हिन्दुस्तानी ही थे | जो विदेशी मूल के भी हैं वे भी शदियों  से इसी देश में रहते रहते पूरी तरह  हिन्दुस्तानी होचुके  है | अतः अब यह देश जितना हिंदुओं का है उतना ही मुसलमानों का भी है | मुन्ना भूरे व उसके परिवार वालों के अच्छे व्यवहार को देख चुका था और उससे पूरी तरह प्रभावित था अतः जब कोई भी उनके प्रति शंका जाहिर करता तो मुन्ना उसे उनके वर्ताव के विषय में बताकर और उनकी अच्छाइयां गिनाकर उन्हें निरुत्तर कर देता था |
                                      भूरे के पांच  बच्चे थे जिनमें उम्र का बहुत कम अंतर था | बल्कि हर एक सवा साल के बाद भूरे की  पत्नी माँ बन जाती  थी | जल्दी जल्दी बच्चे होने और घर कि मारी हालत  ठीक न होने के कारण भूरे की  पत्नी जवानी में ही बूढी सी दिखाई देने लगी थी | अपनी पत्नी के माध्यम से जब एक बार उसे यह मालूम हुआ कि भाभी जान तो उम्र में उसकी पत्नी से भी एक दो साल छोटी हैं तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ | उसने अधिक बच्चे होने और जल्दी जल्दी बच्चे होने से उत्पन्न बुरे परिणामों के  विषय में भूरे से बात की और यह मानते हुए कि भूरे शायद पढ़ा लिखा नहीं है उसने  इस स्थिति को शिक्षा के अभाव से जोड़ते हुए उसे समझाया | परन्तु जब उसने जाना कि भूरे भी मैट्रिक तक  पढ़ा है तो उसने  उससे इस विषय में खुलकर बात की | अपनी पत्नी से कहकर भाभी जान को भी जल्दी जल्दी और अधिक बच्चे होने की हानियों के बारे में समझाया | किसी तरह भूरे व उसकी पत्नी तो इस बात को मान  गये कि परिवार का छोटा होना और बच्चों में तीन चार साल का अंतर होना अच्छी बात है , परन्तु भूरे की  अम्मी यह मानने को तैयार न  थी | उनका कहना था कि इस्लाम में बच्चों को रोकना नाजायज है और यह कि बच्चे तो अल्ला की नेमत होते हैं और जो अल्ला के विधान में दखल देता है वह दोजख का भागी होता है ...... आदि आदि |
                        एक दिन अवसर देखकर मुन्ना ने भूरे से इस बिंदु पर फिर  बात की और कहा कि  वह यह बताए कि किस धार्मिक ग्रन्थ में ऐसा लिखा है कि परिवार नियोजन इस्लाम के खिलाफ है | उसने यह भी कहा कि उसने इसी उद्देश्य से कुरान पूरी पढकर देखी है उसमें ऐसा कोई उल्लेख उसे नहीं मिला है | भूरे खुद इतना  पढ़ा लिखा था उसने भी कुरान को अच्छी तरह पढकर देखा परन्तु ऐसी कोई बात कुरआन में लिखी नहीं मिली | अब तो वह इस बात से आश्वस्त होगया कि उसके समाज में कई बातें केवल अन्धविश्वास के रूम में प्रचलितN  हो गयीं हैं जबकि धार्मिक उपदेशों में ऐसा कहीं नहीं है | उसने अपने अब्बा जान को विश्वास में लेकर अम्मी जान को भी समझा लिया और सरकारी अस्पताल जाकर पत्नी का परिवार नियोजन का आपरेशन करा लिया | फिर तो वह परिवार नियोजन के लाभों से अन्य लोगों को भी समझाने लगा और इसके बाद उसने  कई मिलने वालों मुसलमान भाइयों  को समझाकर आपरेशन के लिए राजी किया |    
                                                       मुन्ना व भूरे दोनों प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति बन चुके थे और सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगे थे | दोनों ने मिलकर प्लास्टिक के डिब्बे बनाने की एक छोटी फैक्ट्री लगा ली थी जिसके लिए बैंक से ऋण ले लिया था | इस प्रकार दोनों मित्रों के परिवार शांति व सुखपूर्वक रहने लगे थे | उन दोनों की दोस्ती लोगों के लिए मिसाल बन गयी थी |

चिकना घड़ा

कहते हैं चिकने घड़े पर पानी नहीं रुकता है । वैसे तो यह एक मुहावरा मात्र है पर जब ये मुहावरा देश की सबसे पुराने राजनीतिक दल पर लागू होता हो तो यह चिंता का विषय बन जाता है । कांग्रेस पार्टी द्वारा सदन नहीं चलने दिया गया और मोदी सरकार को gst जैसे महत्वपूर्ण बिल को जानबूझकर पास नहीं होने दिया गया । कांग्रेस पार्टी एक ओर कहती है कि gst तो उनका ही लाया गया बिल है परंतु अपने निहित स्वार्थ के कारण उसे पास नहीं होने देती । सदन न चलने देने के नित नए बहाने खोजे गए और दोनों सदनों में हंगामा किया गया । प्रिंट मीडिया में रोज संपादकीय लिखकर आलोचना होती रही  , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी तीखी बहस चली पर कांग्रेस पार्टी पर इन सबका कोई असर नहीं हुआ । ऐसा लगता है जैसे पार्टी पर अब किसी आलोचना का कोई प्रभाव नहीं होता है । उसके नेता अंधे बहरे हो गए हैं जिन्हें कोई टीका टिप्पड़ी सुनाई नहीं देती । यह स्थिति लोकतंत्र के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है ।
                            नेशनल हेराल्ड के मामले में कोर्ट का नोटिस आने के बाद सोनियां और राहुल अपना संतुलन खो बैठे और सीधे सरकार को ही इसके लिए कोसने लगे । इस मुद्दे को लेकर कई दिन तक सदन की कार्यवाही बाधित की गयी  जबकि तथ्य यह है कि इस कोर्ट केस में सरकार या सत्ताधारी पार्टी का कोई हाथ नहीं है । यह केस भी 2013 में दर्ज किया गया था जब बीजेपी सत्ता में नहीं थी और केस दायर करने वाले सुब्रमंयम स्वामी बीजेपी के सदस्य भी नहीं थे । इससे यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस पार्टी को न तो न्यायपालिका पर विश्वास है और न देश की सर्वोच्च पंचायत सदन पर ही । इससे यह भी पता लगता है कि गांधी परिवार के सामने पूरी पार्टी कितनी नि सहाय है । वस्तुतः कांग्रेस पार्टी गांघी परिवार के चाटुकारों का एक समूह मात्र हो ऐसा प्रतीत होने लगा है ।
अन्य विपक्षी दलों ने भी कांग्रेस पार्टी के गलत कदम का जिस तरह समर्थन किया और देश हित को भी उपेक्षित कर दिया यह देश की जनता के लिए गहन चिंता का विषय है । अब समय आज्ञा है कि संविधान में ऐसी अराजक स्थिति से बाहर निकलने  का कोई समाधान खोजा  जाय ।  इसके लिए राज्य सभा की शक्तियों को सीमित करने पर भी विचार किया जा सकता है क्योंकि जनता द्वारा सीधे चुना गया सदन लोक सभा ही है । ऐसी व्यवस्था की जाय जिससे लोक सभा द्वारा पारित कोई बिल राज्य सभा न रोक पाये । अन्यथा  अराजकता की यही स्थिति बनी रहेगी और देश को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है ।

किसान नेता चौधरी चरण सिंह

23 दिसंबर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी  चरण सिंह का जन्म दिवस है । वे  अपनी ईमानदारी , स्पष्टवादिता , दृढ़ता , और ग्रामीण भारत के हितों के कट्टर प्रवक्ता के रूप में जाने जाते थे । मध्य जातियों के लोगों को राजनीतिक में  जागरूक व सक्रिय बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है । उनके समर्थक रहे व उनकी पार्टी से निकले नेताओं की लम्बी फेहरिस्त है जो आज विभिन्न राजनीतिक दलों के  प्रभावी नेता हैं । आगरा कालेज से पोस्ट ग्रेजुएट व ला ग्रेजुएट चौधरी चरण सिंह 1937 में प्रोविंसिएल असेंबली के लिए मेरठ की छपरौली सीट से चुने गए । 1938 में उन्होंने किसानों के हित के लिए एग्रीकल्चर प्रोडक्ट प्राइस बिल प्रस्तुत किया जो यूपी में लागू  होने के बाद देश के कई राज्यों ने भी लागू किया था । गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर वे  स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और जेलयात्रा भी करनी पड़ी । स्वतन्त्र भारत में 1950 में यूपी में  गोविन्द वल्लभ पंत की कांग्रेस सरकार में राजस्व मंत्री रहते हुए  उन्होंने क्रन्तिकारी भूमि सुधार क़ानून बनाकर उसे  लागू  कराया जो देश में इस तरह का पहला कानून था ।
                   राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार उस  समय प्रसिद्धि पायी  जब 1959 के नागपुर अधिवेशन में उन्होंने  कांग्रेस के सर्वेसर्वा और देश के प्रधानमंत्री नेहरू जी  के सहकारिता खेती के प्रस्ताव का दृढ़ता से विरोध किया क्योंकि वे जानते थे कि किसानों का अपनी जमीन से भावनात्मक लगाव होता है और सहकारिता खेती भारतीय किसानों के लिए उपयुक्त नहीं थी । इस विरोध का खामियाजा उनको कांग्रेस पार्टी में अपना महत्व कम होने के रूप में  भुगतना पड़ा परंतु  वे अपने सिद्धान्तों पर अडिग रहे  । 1967 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर भारतीय क्रांति दल नामसे अपनी अलग पार्टी बना ली । इसके बाद वे दो बार उ0प्र0 के मुख्यमंत्री रहे । मुख्यमंत्री रहते हुए  अल्पकाल में ही उन्होंने प्रशासनिक दृढ़ता और भ्रष्टाचार विरोधी की जो छवि बनायी उसे आज भी लोग कहानी किस्सों की तरह याद करते है । वे कांग्रेस के विरोध में विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास में अनवरत लगे रहे और इसी कड़ी में सोसलिस्ट पार्टी के मधु लिमये,  जार्ज फर्नाडीज आदि कई  नेताओं को शामिल कर के लोक दल नामक पार्टी बनायीं । स्वतंत्रता आंदोलन में जेलयात्रा के बाद उन्हें इंदिरा गांधी के आपातकाल में पुनः जेल जाना पड़ा क्योंकि इंदिरागांधी का गहन विरोध उनके कट्टर समर्थक राज नारायन द्वारा ही किया गया था । विपक्षी एकता की उनकी मुहिम जनता पार्टी के बनने के साथ अपनी चरम परिणीति  पर पहुंची ।
              1977 के लोक सभा चुनाव में जनता पार्टी को भारी  बहुमत मिला जिसमें उनकी पार्टी लोकदल का घटक सर्वाधिक प्रभावी था । जनता पार्टी ने लोकदल के ही चुनाव चिन्ह हलधर किसान को अपनाकर उस  पर चुनाव लड़ा था । पर उनकी अपनी नीतियों को कार्यान्वित करने के प्रयासों को उस समय गहरा धक्का लगा जब अपने समर्थकों का बहुमत होने के बाबजूद जयप्रकाश नारायण के प्रभाव के कारण  मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री चुना गया । फिर भी उस समय प्रांतीय सरकारों में यूपी , बिहार , हरियाणा , राजस्थान , दिल्ली , हिमाचल और उड़ीसा में उन्हीं की पार्टी से आये उनके समर्थक मुख्यमंत्री बने । चौधरी चरण सिंह जाट , यादव , कुर्मी , गूजर आदि जातियों के साथ साथ भूमिहार और त्यागियों में तो  लोकप्रिय नेता थे ही  बल्कि मुसलमानों का भी उन्हें व्यापक समर्थन प्राप्त था । इस प्रकार  मध्य जातियों को राजनीतिक पटल पर स्थापित करने और राजनीती की मुख्यधारा में लाने का श्रेय  उन्ही को जाता है ।
                   जनता पार्टी के शासनकाल में वे गृहमंत्री , वित्तमंत्री व उप प्रधानमंत्री रहे । गृहमंत्री के रूप में उनकी तुलना  सरदार पटेल से की  जाने लगी थी । जनता पार्टी में विघटन के बाद वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधान मंत्री  बने । कांग्रेस पार्टी के समर्थन से प्रधानमंत्री बनने के उनके इस निर्णय की कुछ लोग आलोचना भी करते है परंतु वास्तविकता यह है कि कांग्रेस पार्टी द्वारा कुछ दिनों बाद ही अपने समर्थन के बदले  उसके नेताओं के विरुद्ध कोर्ट में चल रहे  आपातकाल के केसों को वापस  करने  की शर्त लगाई  उन्होंने प्रधानमंत्री के पद को ठुकराकर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और अपने सिद्धांतों से न झुकने का मार्ग अपनाया  ।
               जनता पार्टी के विघटन के बाद  उ0प्र0 में उन्होंने अपने पुत्र अजीत सिंह को  न चुनकर जमीन से जुड़े नेता मुलायम सिंह यादव को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना था । परंतु उनके पुत्र की राजनीतिक अपरिपक्वता और वीपी सिंह की कुटिल चाल के कारण मुलायम सिंह व अजीत सिंह एक नहीं रह सके और उनका बनाया लोकदल परिवार अनेक टुकड़ों में विभक्त हो गया । उनके इस सपने के टूटने का ही परिणाम है कि अब तक कोई किसान हितचिंतक नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुँच  पाया  है । बिहार के कर्पूरी ठाकुर , नीतीश कुमार , लालू  यादव और शरद यादव , उ0प्र0 के राम नरेश यादव , राज नारायण , मुलायम सिंह यादव , के सी त्यागी , रशीद मसूद , हरियाणा के चैधरी देवी लाल , राजस्थान के कुम्भाराम आर्य , उड़ीसा के बीजू पटनायक आदि नेता उन्हीं की पार्टी से निकले हुए नेता हैं । ग्रामीण अर्थशास्त्र के गहन चिंतक व मर्मज्ञ  थे  इस विषय पर उनके द्वारा कई पुस्तकें भी लिखी गयी थीं ।

Monday, July 20, 2015

         कुत्ते और आदमी

प्रातः भ्रमण पर निकले कवि को दिखे
सड़क  पर घूमते चार कुत्ते
साथ साथ चलते इतराते इठलाते
भाई चारे का सबक सा सिखलाते
उसे लगा जैसे वे दे रहे हों चुनौती
हमारे सभ्य समाज को
हमारे वर्तमान को हमारे आज को

जैसे कह रहे हों
हम कुत्तों को तुम मनुष्यों ने बहुत बदनाम किया है
अपनी कमी छुपाने को क्या क्या नाम नहीं दिया है
लड़ते खुद हो और कहते हो
कुत्तों की तरह लड़ते हो
हमें बदनाम करने के नये नये जुमले गढ़ते हो

राजनीति में व्यापार में , समाज में परिवार में
मेलों में , रेलों में यहाँ तक कि जेलों में 
तुम कहाँ नहीं लड़ते हो
पर अपना दोष दूसरों पर मढ़ते हो

अरे तुम तो संसद में भी हमारी तरह लड़ते हो
कुर्सी माइक पेपरवेट फेंक फेंक कर झगड़ते हो
भाई से भाई , सास से बहु , ससुर से जमाई
मालिक से नौकर , निर्लज्ज होकर
बताओ कहाँ नहीं भिड़ते हो
हमें झगड़ालू बताते हो  हमसे छिड़ते हो
अब  तो लगता है हमें यू टर्न लेना पड़ेगा
“ आदमियों की तरह लड़ते हो “ यह जुमला
अपने भाई कुत्तों से कहना पड़ेगा

तुम तो हमारी प्राकृतिक क्रियाओं को भी गलत नाम देते हो
“ कुत्ते हो टांग उठाकर मूतते हो “ यह कहते हो
तो तुम भी तो दीवारों पर थूकते हो
सीडियां हों या फर्श पीक मरने से नहीं चूकते हो
सडक का किनारा हो या दीवारों का पिछवाडा
बस अड्डा रेलवे स्टेसन सबका कर देते हो कबाड़ा

अरे तुमने तो संतत्व को भी कर दिया है लांछित
कई आशाराम रामपाल कोर्ट में हैं वांछित
बात आत्मा परमात्मा की करते हो
पर आश्रमों में हद दर्जे की ऐयाशी करते हो

तुम्हें समझाने के लिए शर्म का ताज पहनना पड़ता है
आमिर से लेकर मोदी तक को सामने आना पड़ता है
अरे तुम कब के सफाई पसंद हो
अंतर केवल यह है कि
हम खुले में हैं और तुम कमरे में बंद हो 
 


 



                 बहता पानी
कलकल करता बहता पानी कलकल करता समय चले
सर्वनियन्ता  की शक्ति से तेरी जीवन ज्योति जले

फिर भी क्यों मदमत्त हुआ क्यों क्षण भंगुर जीवन तेरा
पुण्यार्जन करले कुछ वन्दे जीवन गुजरे हाथ मले

बहु प्रपंच छल कपट कर रहा भौतिकता में फंसा हुआ
जागेगा जब तक निद्रा से तब तक जीवन शाम ढले

परहित परमारथ शुचिता इनको जीवन में अपनाकर
करे भलाई मानव सेवा तब निकले परिणाम भले

सद्गुण के अपनाने से सुचिता दयालुता आएगी
परमेश्वर देंगे सद्भुद्धि कुविचार न उतरे कभी गले

मन की पवित्रता नैतिकता आती है नित सत्संगति से
अच्छे विचार आजाने का परिणाम  सदा हितकर निकले


Monday, July 13, 2015

आज मुझे फिर याद आगयी मंदी पोखर सावन की
पानी से भर चुकी धगेली वरखा  सन् सत्तावन की

कभी गाँव की  तंग गलियों में नंगे पैरों  चलने की
ऊंची नीची पगडण्डी पर गिरने और सम्भलने की
लगे कंकड़ी तो रुक जाना चिलम चुराना बाबन की

धर्मपाल शिवदान रमलुआ तेरसिंघ अरु वो सलुआ
यार पुराने याद आ रहे राम प्रताप और वो कलुआ
जग्गो की दुकान परचूनी चक्की राम खिलावन की

गुल्ली डंडा लभे तांचिया कंचों के वे दोनों खेल
बात बात होती थी लड़ाई अगले दिन होता था मेल
रथ का मेला और देवछट नामी चाट महावन की

जुते खेत का खेल कबड्डी ठेका मार सनूने का
पोखर में तैराकी करते  हुड़दंग  फाग महीने का
याद आगयी बिहारी जी की व्रज की मांटी पावन की

फूल डोल रसियों का दंगल रास मण्डली फत्ते की
सीसे वाली बड़ी लालटिन  कुरसी टूटे हत्ते की
बचपन के  वे खेल  शरारत चुगली रोज  लगावन की