Monday, August 29, 2016

आसाराम और आस्मुहम्मद

                                                      
                                                  आसाराम और आस मुहम्मद दो मित्र हैं जो दो पडौसी  गावों के रहने वाले हैं  | आसाराम के घर पर  शादी समारोह हो या  दशठोन  की दावत , आस मुहम्मद न केवल उपस्थित रहता है बल्कि सक्रिय  भागीदारी भी करता है | इसी प्रकार आस मुहम्मद के घर पर उसके गाँव में होने वाले प्रत्येक आयोजन में आसाराम का रहना भी अनिवार्य है | दोनों की मित्रता बचपन से ही चल रही है जो दोनों गाँव के लोगों के अतिरिक्त आसपास के गाँवों में भी उदाहरण  बन चुकी है | किसी भी सार्वजनिक आयोजन में इन दोनों को साथ साथ देखा जा सकता है क्योंकि दोनों गावों में से किसी में भी होने वाले  हरेक आयोजन में इन दोनों का होना प्रायः निश्चित सा है | यहाँ तक कि आसाराम के सभी रिश्तेदार आस मुहम्मद को और आस मुहम्मद के सभी रिश्तेदार आसाराम को पहिचानते  हैं |  आसाराम का गाँव हिन्दुओं का है जबकि आस  मुहम्मद के गाँव में सभी मुसलमान हैं |
                                             कई बार ऐसे अवसर आये हैं जब आसाराम के गाँव में उसके घर पर  होने वाले फंक्शन में लोग आपस में बात  करने में ऐसा कुछ  कह जाते हैं जो किसी भी मुसलमान को सुनने में अच्छा  न लगे पर  आस मुहम्मद ऐसी बातों  को सुनकर भी अनसुना कर देता है | इसी तरह जब आसाराम आस मुहम्मद के गाँव में होने वाले जलसों में होता है तो वहां उपस्थित लोग भी आसराम के समक्ष इसी प्रकार की स्थिति पैदा कर देते हैं , पर वह भी उसे भीड़ की मानसिकता समझकर उपेक्षित कर  देता है | लोगों की यह आदत होती है कि वे दूसरों की आलोचना में बड़ी रूचि लेते हैं और यदि बात धर्म की हो रही हो तो अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानकर प्रायः दूसरे धर्म की आलोचना करते हैं | आसाराम और आस मुहम्मद अलग अलग धर्मों के हैं इसलिए उन्हें इस तरह की स्थिति का कई बार सामना करना पड़ता है पर वे अपनी परिपक्व सोच के चलते उससे प्रभावित नहीं होते |  दोनों मित्र एक दूसरे की भावनाओं को भलीभांति समझते हैं इसलिए उनमें कभी मत वैभिन्य नहीं होता है | वैसे दोनों गाँव के लोगों में भी आपसी भाईचारा है और एक दूसरे के काम आने में अथवा खेती किसानी के काम में आपस में सहयोग करने में कोई परहेज नहीं है | हिन्दुओं के त्यौहारों जैसे होली दिवाली पर पडौस के गाँव के मुसलमान भी शामिल होते हैं और होली पर खूब होली के रंगों में रंग जाते हैं | बल्कि होली की टोली जब गाँव में निकलती है तो ढोलक बजाने का जिम्मा मुसलमानों के गाँव के सुल्तान पर ही होता है क्योंकि वह ढोलक बजाने में पारंगत है | हर वर्ष होने वाली राम लीला में आसाराम राम की भूमिका निभाता है  और आस मुहम्मद लक्ष्मण की भूमिका निभाता है | लक्ष्मण परशुराम संवाद में तो आस मुहम्मद द्वारा निभायी जाने वाली भूमिका को लोग बेहद पसंद करते हैं | उस समय कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता कि इस भूमिका को निभाने वाला हिन्दू न होकर एक मुसलमान युवक है | ईद के पर्व पर हिन्दू लोग अपने मुसलमान मिलने वालों के घर जाकर उनकी ख़ुशी में शामिल होते हैं और बड़े  चाव से ईद पर बनी  सिमई खाते हैं | मंदिर के सामने के मैदान में हर वर्ष ईद का मेला लगता है जिसमें हिन्दू लोग भी उत्साह से सहभागी बनते हैं |     
                                             दोनों गावों के मध्य एक बड़ी पोखर है जिसके चारों  तरफ खुली परती जमीन पड़ी है | उसी मैदान में एक प्राइमरी पाठशाला , पंचायत भवन व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र  है | ये सभी सुविधाएँ दोनों गाँवों के लिए साझा सुविधाएँ हैं | स्कूल में दोनों गाँवों के बच्चे साथ साथ पढ़ते हैं और आगे पड़े मैदान में क्रिकिट, कबड्डी और फुटबॉल  आदि खेल भी खेलते हैं | तालाब  में जब वरसात का पानी भर जाता है तो दोनों गाँव के बच्चे उसमें तैराकी सीखते हैं |  उसी मैदान के एक किनारे पर प्राचीन शिवमंदिर बना हुआ है जिसमें हिन्दुओं के गाँव के लोग पूजा पाठ करने आते हैं | बगल के गाँव के मुसलमान भी मंदिर के चबूतरे पर बैठे रहते  हैं | मंदिर में कोई आयोजन होता है तो प्रसाद के वितरण के समय  मुसलमान भी प्रसाद ग्रहण करने में संकोच नहीं करते हैं | हाँ  कोई मुसलमान मंदिर के अन्दर नहीं जाताहैं  और न पूजा पाठ में  भाग लेता है | दोनों गाँव के लोगों की सकल सूरत व बोली चाली  में भी कोई खास फर्क नहीं है | सभी लोग देखने में एक जैसे ही लगते हैं फिर वह हिन्दू हो या मुसलमान |  जो मुसलमान लम्बी दाडी रखते हैं या गोल टोपी पहन  लेते हैं वही  पहिचान में आते हैं कि वे हिन्दू नहीं मुसलमान  हैं | बड़े बूढ़े बताते हैं कि पहले उस गाँव के लोग भी हिन्दू ही थे जिन्होंने मुसलमान धर्म अपना लिया था | धर्म परिवर्तन का क्या कारण  था इस विषय में कई किवदंतियां प्रचलित हैं पर इस बिंदु पर कभी कोई गम्भीर चर्चा नहीं करता है |
                                                                पर पिछले दस बीस साल से धीरे धीरे दोनों गावों की मारी हालत व जनसंख्या घनत्व में अंतर आता गया है,  जो अब साफ साफ दिखने लगा है | मुस्लिम आबादी वाले गाँव में गरीबी और अशिक्षा अधिक है |  एक पड़े लिखे वयोवृद्ध व्यक्ति बताते हैं कि चालीस पचास वर्ष पहले दोनों गावों में सभी परिवारों में पांच  से लेकर सात आठ तक बच्चे होना सामान्य था  पर अब शिक्षा के प्रसार के बाद हिन्दुओं के गाँव में तो परिवार दो तीन बच्चों तक सीमित होने लगे हैं पर मुस्लिम आबादी वाले गाँव में ऐसा नहीं हुआ है  | साक्षरता व शिक्षा का प्रतिशत हिन्दुओं के गाँव में काफी सुधरा है | दूसरी ओर मुस्लिम आबादी वाले गाँव में साक्षरता व शिक्षा का प्रतिशत हिन्दुओं के गाँव से काफी कम है | हर परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण खेती किसानी करने वाले परिवार मजदूर परिवरों में बदलने लगे हैं | हिन्दुओं के गाँव में भी खेती बंट जाने से परिवारों की आर्थिक गतिविधि पर असर पड़ा है पर मुसलमानों के गाँव में यह प्रभाव  स्पष्ट दिखाई देने लगा है  | निरक्षर मुस्लिम माँ बाप बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी नहीं समझते और कच्ची उम्र में ही उन्हें छोटे मोटे धन्दों में लगा देते हैं | मुसलमानों के जो बच्चे स्कूल आते भी हैं उनमे से काफी बच्चे प्राइमरी के बाद ही पढाई लिखाई छोड़ देते हैं |
                                                 आस मुहम्मद और आसाराम दोनों ग्रेजुएट हैं और शिक्षा विभाग में प्राइमरी के टीचर हैं | कई बार वे दोनों मित्र बैठकर इस बिंदु पर चर्चा भी करते हैं कि आखिर मुसलमानों का गाँव शिक्षा व आधुनिकता की दौड़ में पीछे क्यों छूटता जा रहा है | आस मुहम्मद क्योंकि पढ़ा लिखा है इसलिए उसने तो अपने बच्चों की संख्या दूसरों की तुलना में सीमित रखी है तथा अपने सभी बच्चों को शिक्षित भी करा रहा है | आस मुहम्मद आसाराम से कोई बात छुपता नहीं है | वह यह स्वीकार करता है कि शिक्षा का प्रसार कम होपने के कारण  उसके धर्म के लोगों में दकियानूसी  कुछ अधिक है | उसे स्वीकार करने में संकोच नहीं होता कि गाँव की मस्जिद का मौलवी जो खुद मदरसे का पढ़ा है , कोई विधिवत शिक्षित व्यक्ति नहीं है | उसने लोगों के मन में यह बात बिठाल दी है कि इस्लाम में बच्चों की पैदावार रोकना हराम है | आस मुहम्मद लोगों को समझाने का प्रयास भी करता है पर वे आस मुहम्मद जैसे पढ़े लिखे लोगों के समझाने पर भी नहीं समझते | मौलवी ऐसे लोगों को  दीनभ्रष्ट बताकर लोगों को  उनसे दूर रहने के लिए कह देता है | आसाराम ने भी अपने मित्र आस मुहम्मद के साथ मिलकर उसके गाँव के लोगों को समझाने का प्रयास किया है पर चाहकर भी वे  गाँव के अशिक्षितऔर  अनपढ़ लोगों की सोच नहीं बदल पा रहे हैं | मौलवी ने गाँव की मस्जिद के पास ही एक कमरे में मदरसा चालू कर दिया है जिससे प्राइमरी स्कूल में आने वाले मुस्लिम बच्चों की संख्या और कम हो गयी है |  
                                                        एक बार आसाराम को किसी निजी कार्य से तीन चार दिन के लिए गाँव से बाहर जाना पड़ता है | वह वहां से  जब  गाँव वापस आता है तो गाँव की स्थ्तित देखकर दंग  रह जाता है | गाँव के बाहर बने प्राइमरी स्कूल में पुलिस वालों की भीड़ दिखाई देती है | सामने मैदान में पुलिस की कई गाड़ियाँ खडी हैं , एक पीएसी का ट्रक भी खड़ा दिखाई देता है | सडक के किनारे बनी मोती सिंह की दुकान जली हुई दिखती  है | सडक पर कई जगह फटे कपड़ों के टुकड़े पड़े हैं | सडक और उसके आस पास की जमीन  कई जगह रक्त से लाल हो गयी है | शिव मंदिर के बाहर भी पुलिस तैनात  है | अन्य  दिनों स्कूल और उसके सामने का  मैदान बच्चों के शोर गुल से जीवंत रहता था पर  वहां आज अजीब सी स्तब्धता है | गाँव के लोग कम ही दिखाई  दे रहे हैं | जो हैं भी वे डरे सहमे से हैं | आसाराम एक व्यक्ति के पास जाकर प्रश्नभरी नजरों से देखता है तो वह आसाराम को पिछले दो तीन दिनों में घटी घटना का जो विवरण देता है उसे जानकर वह हतप्रभ रह जाता है |
                                          हुआ यह था कि जिस दिन आसाराम गाँव से बाहर गया था उसी रात को दोनों गावों के मध्य पोखर पर बने शिव मंदिर में किसी ने गाय के  गोस्त के टुकड़े रख  दिए थे | जब अगली सुबह औरतें और आदमी शिव मंदिर में पूजा करने  के लिए गये तो मंदिर में मांस पड़ा  देखकर अचंभित होगये और पूजा पाठ भूलकर शोर मचाने  लगे | मंदिर में लोगों को चिल्लाते देखकर किसी उन्हौनी की आशंका में आस पास उपस्थित लोग भी मंदिर की ओर दौड़ने लगे | मंदिर में मांस मिलने की खबर पूरे गाँव में फ़ैल गयी | मंदिर पर लोगों की भीड़ बढ़ने लगी | लोग तरह तरह की आशंका व्यक्त करने लगे | कोई बोला यह तो हमारे देवता का अपमान है  किसी ने जान बूझकर शिव मंदिर को अपवित्र किया है  | जितने लोग उतनी बातें | तभी किसी ने खबर फैलादी कि यह तो मुसलमानों का काम है | वे मंदिर को अपवित्र करके मन्दिर को  यहाँ से हटवाना चाहते हैं और मंदिर की जमीन पर कब्ज़ा करना चाहते हैं | किसी ने याद दिलाया कि कैसे इस घटना के कुछ दिन पूर्व मुसलमानों के गाँव के लोगों ने उसी मैदान में मंदिर के बराबर में मस्जिद बनाने का प्रयास भी किया था जिसेउस समय लोगों को  समझा बुझाकर टाल दिया गया था | अब तो कुछ लोगों ने दोनों घटनाओं को जोडकर मुसलमानों की स्पष्ट साजिश होने का निष्कर्ष निकाल लिया | इस बात को लेकर लोग उत्तेजित होने लगे और बदला लेने की बात करने लग |
                                          उधर मुसलमानों के गाँव में बनी मस्जिद में सूअर का मांस पाए जाने पर पूरे गाँव के मुसलमान इकट्ठे हो गये थे  और किसी हिन्दू की करतूत मानकर इस्लाम की तौहीन करने का आरोप लगाने लगे थे  | इसी दौरान किसी ने मंदिर पर हिन्दुओं की भीड़ इकट्ठी होने की खबर वहां एकत्रित लोगों को बता दी | अविश्वास और आशंका की भावना बलवती होने लगी और भीड़ में से किसी ने इस्लाम खतरे में होना बताकर अल्ला हो अकबर का नारा उछाल  दिया | लोगों में इस अपमान का बदला लेने की आवाज उठने लगी | फिर  तो  अल्ला हो अकबर के नारों के साथ भीड़ मंदिर की ओर बढने लगी | कुछ अति उत्साही लोग भागकर अपने घरों से  लाठी और बल्लम भाले भी निकाल कर  ले आये  | मंदिर पर तो भीड़ पहले से इकट्ठी थी ही , दूसरी तरफ से मुसलमानों की भीड़ आते देख लोगों को विस्वास होगया कि इस में जरूर  मुसलमानों की ही साजिश है  |  उन्होंने  औरतों और बच्चों को वहां से घर भेज  दिया और पुरुष लोग  लाठी डंडे आदि हथियार लेकर लड़ने को तैयार हो गये | दोनों ओर की भीड़ पर जूनून सा सवार होगया था | उत्तेजना और क्रोध में मनुष्य का विवेक नष्ट होजाता है यही हुआ | दोनों ओर की उन्मादी भीड़ में से किसी ने एक दूसरे से कुछ भी जानने की आवश्यकता नहीं समझी |  परिणाम यह हुआ कि मंदिर के सामने मैदान में दोनों ओर की उन्मादी भीड़ के बीच  भयंकर दंगा शुरू होगया | लोग धर्मांध हो एक दूसरे पक्ष की भीड़ पर टूट पड़े |  किसी का हाथ टूटा , किसी के पैर में फ्रैक्चर हुआ और किसी का सर फटा | वही लोग जो कल तक एक दूसरे के साथ उठते बैठते थे , काम करते थे , खाते पीते थे  आज एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये थे | शिक्षा के मंदिर के सामने का मैदान वहशी भीड़ के संघर्ष का अखाड़ा बन गया था | दोनों ओर के लोगों के खून से कई जगह की जमीन रक्त रंजित होने लगी थी | उन्मादी लोगों की भीड़ बिना कुछ सोचे समझे मरने मारने पर आमादा थी जैसे उनके सोचने समझने की शक्ति ही समाप्त हो गयी हो |
                                         आस मुहम्मद  उस दिन आसाराम के काम से ही उसके घर पर गया था | जब उसे इस घटना का पता चला तो वह दौड़ा दौड़ा घटनास्थल पर  आया | दोनों गाँव के लोगों को इस तरह लड़ता देखकर वह हतप्रभ रह गया |  उसने दोनों तरफ के लोगों को समझाने का भरसक प्रयास किया , उनके हाथ पैर जोड़े , पैरों में पड़ा, रोकने की हर कोशिस की    पर बहशी भीड़ में  उसकी किसी ने नहीं सुनी | इसी बीच बचाव करने में  उसके पेट में किसी ने बल्लम से प्रहार कर  दिया और वह घायल होकर  बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा | इसी दौरान  किसी ने पास के पुलिस थाने  को खबर करदी | गनीमत रही की पुलिस जल्दी ही घटना स्थल पर आगयी और लोगों को झगडा बंद करने के लिए ललकारा | उसका असर न होने पर  पुलिस ने  हवाई फायर किये जिससे  भीड़ तितर बितर होगयी | और पुलिस झगडा बंद करने में कामयाब होगयी |  तब तक कई लोग घायल हो चुके थे जिन्हें पुलिस वालों ने पास के अस्पताल पहुँचाया | कस्बे का  अस्पतालथा जिसमें इतने लोगों की चिकित्सा करने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी | घायलों का काफी खून बह चूका था  जिसके कारण पांच लोगों ने खून अधिक  बह जाने और खून चड़ने की त्वरित व्यवस्था न हो पाने के कारण  दम  तोड़ दिया |  मरने वालों में  दो लोग  एक गाँव के और तीन लोग दूसरे गाँव के थे | कई लोग गंभीर घायल थे जिनमें आस मुहम्मद भी शामिल था |
                                                                 घटना का विवरण सुनकर  आसाराम बहुत दुखी हुआ | उसे पश्चाताप हो रहा था कि घटना के  दिन वह गाँव में क्यों नहीं रहा | उसे लग रहा था कि वह होता तो आस मुहम्मद के साथ मिलकर जरूर लोगों को समझा लेता और यह दुखद घटना टल सकती थी | उसने स्वप्न  में भी  नहीं सोचा था कि आपसी भाई चारे से रहने वाले पडौसी गावों के लोग इस तरह जानवर बन जायेंगे | पर हुआ वही जो नियति को मंजूर था |   अब उसने सोच विचारकर  निश्चय किया कि उसे क्या करना चाहिए और क्या  करना है |
                                                        आसाराम पुलिस अधिकारीयों के पास गया|  अपना परिचय देकर पुलिस वालों से बात की तथा अपना उद्देश्य बताया | पुलिस वालों की मदद से दोनों गाँवों के समझदार लोगों को बुलाया तथा उनसे बात की | उन लोगों को बताया कि मंदिर और मस्जिद दोनों में मांस डालने का काम किसी शरारती असामाजिक तत्व का काम था जो दोनों गाँव के लोगों के आपसी मेल मिलाप भाई चारे को  भंग करना चाहता था | झगडे के समय तो लोगों की बुद्धि कुंद हो गयी थी पर जब पुलिस के हस्तक्षेप से दंगा बंद होगया था तो दोनों पक्ष के लोगों को यह बात पता चल चुकी थी कि मंदिर और मस्जिद दोनों में मांस के टुकड़े रखकर किसी घ्रणित मानसिकता के व्यक्ति ने ही यह षड्यंत्र किया था | इसलिए अपनी भूल से सब लोग पहले ही अवगत हो चुके थे | इसलिए जब दोनों पक्ष के समझदार लोग आपस में मिले तो उन्हें समझाने में आसाराम को अधिक मेहनत नहीं करनी पडी | गयी  दोनों गाँव के पन्द्र्ष बीस लोगों की एक सद्भावना समिति बनायीं जो आसाराम की अगुआई में  घायलों को देखने हॉस्पिटल पहुंची और लोगों की चिकित्सा का उचित प्रबंध करवाया | आस मुहम्मद के विषय में डाक्टरों ने बताया कि इनकी चोट घटक तो नहीं है पर खून बह जाने के कारण खून की कमी होगयी है अतः  तुरंत खून चढाने की आवश्यकता है  | संयोग से आस मुहम्मद और आसाराम दोनों का खून एक ही ग्रुप का था | आसाराम ने खून देकर अपने मित्र आस मुहम्मद की जान बचायी |

                                                   अब हॉस्पिटल में भारती सभी लोग स्वस्थ होकर वापस आ चुके हैं | अनजाने और बिना सोचे विचारे निर्णय लेने से दोनों गांवों के मध्य जो अविश्वास पैदा हुआ था उसे आसाराम और आस मुहम्मद ने कई बार लोगों को एक जगह इकठ्ठा करके और मीटिंग करायी है जिससे पुनः पुराणी स्थित वापस आने लगी है |   इस घटना के बाद जो  समिति बनी थी  वह न केवल दोनों  गाँव के झगड़ों का समाधान करती है बल्कि  जन कल्याण के अन्य काम भी अपने हाथ में लिए हैं | गाँव की गलियों की साफ सफाई करने , शौचालयों का निर्माण करवाने और परिवार को सीमित रखने की शिक्षा भी लोगों को इसी समिति के लोग देते हैं जिसे गाँव वालों ने मानकर विकास के कई काम किये भी हैं | मुस्लिम आबादी वाले गगनव में भी परिवार नियोजन व पढाई लिखाई का महत्व लोग समझने लगे हैं जिसका उनके जीवन पर प्रभाव पड़ने लगा है |       

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