स्वच्छ हुआ आकाश बादलों का
जमघट है भागा
नील गगन में फैली चादर
,नीली नीली आभा
पोधों के रंग ढंग बदले हैं
, वृक्षों पर हरियाली
पुष्पों से आवृत्त लताएँ ,
अद्भुत है वह माली
वर्षा ऋतु में नहा धोकर
ज्यों, अल्हड यौवन जागा
ना शीतल ना गर्म हवा है ,
मौसम हुआ सुहाना
सर्दी का आगमन प्रतीक्षित
,वर्षा ऋतु का जाना
शुष्क हवा ने त्यागी बनकर,
अधिक नमी को त्यागा
अरुणोदय की छटा निरखने,
सुबह सुबह तुम जागो
भ्रमरों का गुंजन सुनकर ,
तितली के पीछे भागो
जो ऊषा अमृत से वंचित , है वह बहुत अभागा
शिशिर और हेमंत हटे तब फिर वसंत आएगा
सरसों के खेतों में जीवन ,
फिरसे खिल जायेगा
प्रियतम का सन्देश बताने ,
फिर बोलेगा कागा
प्रकृति करे मौसम परिवर्तन
, उसके खेल निराले
प्रकृति नियंता ने रच डाले
, सभी नदी अरु नाले
उसकी ही इच्छा से जुड़ता ,
पुनः प्रेम का धागा
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