Thursday, December 10, 2009

पिछले संदेश में धर्मनिरपेक्षता की बात होरही थी । भारत में आजकल इस शब्द का बिल्कुल उल्टा अर्थ लगाया जारहा है। सही अर्थ में धर्मनिरपेक्षता का मतलब देश के कानून की नजर में सभी धर्म समान माना जाना तथा धर्म के आधार पर कोई भेदभाव न करना है। परन्तु वोट की राजनीति ने धार्मिक तुष्टीकरण की ऐसी घटक पृथा डालदी है कि वोट मिलने न मिलने को ध्यान में रखकर सभी नीतियां बनाई जारही हैं । बढती जनसँख्या आज की गंभीर समस्या है परन्तु उसपर कोई कार्य इसलिए नहीं किया जारहा है कि उससे एक धर्म विशेष के लोगों के नाराज होने का खतरा है। बहुत सी दकियानूसी परम्पराएँ समाज में ब्याप्त हैं परन्तु उनका विरोध नहीं होरहा क्योंकि वोट छिटकजाने का भय है।

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