Monday, July 13, 2015

आज मुझे फिर याद आगयी मंदी पोखर सावन की
पानी से भर चुकी धगेली वरखा  सन् सत्तावन की

कभी गाँव की  तंग गलियों में नंगे पैरों  चलने की
ऊंची नीची पगडण्डी पर गिरने और सम्भलने की
लगे कंकड़ी तो रुक जाना चिलम चुराना बाबन की

धर्मपाल शिवदान रमलुआ तेरसिंघ अरु वो सलुआ
यार पुराने याद आ रहे राम प्रताप और वो कलुआ
जग्गो की दुकान परचूनी चक्की राम खिलावन की

गुल्ली डंडा लभे तांचिया कंचों के वे दोनों खेल
बात बात होती थी लड़ाई अगले दिन होता था मेल
रथ का मेला और देवछट नामी चाट महावन की

जुते खेत का खेल कबड्डी ठेका मार सनूने का
पोखर में तैराकी करते  हुड़दंग  फाग महीने का
याद आगयी बिहारी जी की व्रज की मांटी पावन की

फूल डोल रसियों का दंगल रास मण्डली फत्ते की
सीसे वाली बड़ी लालटिन  कुरसी टूटे हत्ते की
बचपन के  वे खेल  शरारत चुगली रोज  लगावन की

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